गोरखपुर ट्रेजडी- इंसेफेलाइटिस पीड़ितों की बिक गईं जमीनें, डॉक्टरों की जेबें हरी

संक्षेप:

  • पूर्वांचल से सटे 10 जिले, नेपाल और बिहार से पहुंचते हैं मरीज
  • डॉक्टर्स ने अपनी फर्म कंपनियां खोल ली हैं, लेते हैं 3-4 हजार रूपए फीस
  • ना जाने कितनों की जमीनें बिक गई- मेडिकल स्टोर संचालक

गोरखपुर- पिछले दिनों गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 33 बच्चों समेत 60 लोगों की मौत के बाद से राजनैतिक सरगर्मियां तेज हो गईं. विपक्ष सरकार पर हमलावर है और आरोप प्रत्यारोप का दौर भी जारी है.

लेकिन इन सब के बीच 1978 में शुरू हुई जापानीज इन्सेफेलाइटिस बीमारी ने गोरखपुर और उससे सटे आस-पास के जिलों में महामारी का रूप ले लिया है. हर साल जाने वाली सैकड़ों जानों के अलावा इस बीमारी ने कई घरों को बर्बाद भी कर दिया है. जहां एक ओर हजारों माताओं की कोख सुनी हो गई तो वहीं कईयों की जमीन जायदाद तक इस बीमारी की वजह से बिक गए.

इन्सेफेलाइटिस और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस की वजह से मरीज तो हर साल लूटते रहे, लेकिन इस बीच किसी का धंधा फला फूला तो वे थे डॉक्टर, पैथोलॉजी और दवा की दुकान का धंधा करने वाले लोग.

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गोरखपुर में पूर्वांचल से सटे करीब 10 जिले, नेपाल और बिहार के लोग इलाज कराने के लिए पहुंचते हैं. लिहाजा यहां डॉक्टरों और उनके प्राइवेट नर्सिंग होम्स की बाढ़ सी है. गोरखपुर शहर जाएं तो एक बात पर गौर जरुर करें. वह है डॉक्टर्स और उनके नर्सिंग होम्स. इनमें प्राइवेट डॉक्टर्स से लेकर सरकारी डॉक्टरों के नर्सिंग होम्स शामिल हैं. वो भी ज्यादातर गोल्ड मेडलिस्ट हैं.

इतना ही नहीं यहां बाकायदे एक रैकेट काम करता है. इसमें बिचौलिए भी होते हैं, जो दूर-दराज से मरीजों को इन डॉक्टरों के पास इलाज के नाम पर लेकर आते हैं और इन्हें 3-4 हजार रुपए तक कमीशन मिलता है.

महाराजगंज जिले में मेडिकल स्टोर चलाने वाले कृष्णा दुबे कहते हैं कि यह बीमारी इस इलाके के लिए अभिशाप से कम नहीं है. ना जाने अब तक कितनों की जमीनें तक बिक गई है. उनके मुताबिक यहां पूरा नेक्सस काम कर रहा है. डॉक्टर्स ने अपने फार्म कंपनियां तक खोल ली हैं और अपनी ही दावा लिखते हैं जो कि अन्य नामी कंपनियों की तुलना में काफी महंगी होती है.

उनके मुताबिक कम पढ़े लिखे होने की वजह से तीमारदार भी वही दवा की मांग करते हैं. उन्हें समझाने पर भी वही दवा अगर किसी दूसरे कम्पनी की है और सस्ती है तो वे नहीं लेते.

मासूमों की मौत के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे की वजह से प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले सरकारी डॉक्टरों में हड़कंप मचा हुआ है. सोमवार और मंगलवार को कई डॉक्टर अपने क्लिनिक नहीं पहुंचे. वहीं कईयों ने अपने क्लिनिक पर से बोर्ड भी हटा दिए.

ये वही डॉक्टर हैं जो सरकारी अस्पतालों में तीमारदारों से अभद्रता से पेश आते हैं, लेकिन जब वे उनके प्राइवेट क्लिनिक पर जाते हैं तो उनका व्यवहार एकदम बदल जाता है. क्योंकि इनकी इससे मोटी कमाई होती है.

सीएम योगी के सख्ती के बाद जिला प्रशासन अब ऐसे डॉक्टरों की सूची तैयार करने में लगा है जो सरकारी सुविधाओं का उपयोग अपनी प्राइवेट क्लिनिक चमकाने में लगे हुए हैं.

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