गाय के गोबर-गोमूत्र में छिपी देश की तरक्की: हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल

संक्षेप:

  • गोरखनाथ में `भारतीय संस्कृति में गो-सेवा का महत्व` विषय पर संगोष्ठी का आयोजन
  • हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल बोले- गाय के गोबर-गोमूत्र में छिपी देश की तरक्की
  • "अगर स्वस्थ और निरोगी रहना है तो गाय का पालन और उसका संवर्धन जरूरी"

गोरखपुर: गोरखनाथ मंदिर में `भारतीय संस्कृति में गो-सेवा का महत्व` विषय पर आयोजित संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के तौर हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत गोरखपुर पहुंचे. राज्यपाल ने कहा कि गाय के गोबर और गोमूत्र में देश की तरक्की का रास्ता छिपा हुआ है.

गोरखनाथ मंदिर में `भारतीय संस्कृति में गो-सेवा का महत्व` विषय पर आयोजित संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता के तौर पर लोगों के बीच अपने विचारों को साझा करते हुए हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल ने कहा कि अगर स्वस्थ और निरोगी रहना है तो गाय का पालन और उसका संवर्धन जरूरी है, क्योंकि रासायनिक पदार्थों ने लोगों के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित किया है. भारत की देशी गायों में वह सभी तत्व मौजूद हैं जो शुद्ध दूध के साथ उन्नत खेती के लिए फायदेमंद हैं. देश को समृद्धि के रास्ते पर लाने में `गौ पालन` एक बड़ा रोल निभा सकता है.

दरअसल, राज्यपाल आचार्य देवव्रत हरियाणा के पानीपत के रहने वाले हैं और एक शिक्षक भी रहे हैं. जीरो बजट की खेती के महारथी हवन से अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं. उन्होंने कहा कि दुनिया के वैज्ञानिकों ने भारत की देसी और विदेशी नस्ल की गायों पर रिसर्च किया और परिणाम को A-1 और A-2 नाम दिया. उन्होंने कहा कि A-1 की हॉस्टन और फ्रीजन नस्ल की गाय का दूध जहर है. A-2 नस्ल भारतीय हैं जो फायदेमंद हैं.

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राज्यपाल ने कहा कि भारत की तुलसी को ले लिया जाय तो इसके गुण-धर्म की ऋषियों ने जो व्याख्या किया वहीं आज भी है. उन्होंने कहा कि मां का दर्जा सिर्फ गाय जैसी प्राणी को दिया गया, क्योंकि एक मां और गाय को बच्चे को जन्म देने में समान समय लगता है. उन्होंने कहा कि गुजरात के डॉक्टर ने गिर नस्ल की गाय पर शोध किया तो पाया कि गाय के गोमूत्र में सोना है, जिसकी एक साल में कीमत 55 हजार रुपये है. अब उस सोने को डॉ इकट्ठा करने पर शोध कर रहे हैं. राज्यपाल ने कहा कि आज से 30 साल पहले किसी तरह की गंभीर बीमारी कम सुनने को मिलती थी, जो रासायनिक खाद की देन है.

राज्यपाल ने कहा कि 18 गायों के गोबर से एक एकड़ खेती में नाइट्रोजन की कमी को पूरा किया जा सकता है. आज के दौर में जिस केचुए से जैविक खाद बनाने की बात हो रही है वह केचुआ भारतीय नहीं है. यह हैवी मेटल छोड़ते हैं, जिससे नुकसान हुआ है. राज्पपाल ने कहा कि सुभाष पालेकर जो महराष्ट्र के हैं, बजट की खेती का कॉन्सेप्ट उन्होंने ही दिया है. यह देशी गाय पर आधारित खेती है. एक गाय से 30 एकड़ की खेती करते हैं. देशी गाय के एक ग्राम गोबर में तीन सौ करोड़ जीवणु है, जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देते है. जो गाय दूध नहीं देतीं हैं उसमें पांच सौ करोड़ जीवण पैदा होते हैं.

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