नवरात्रि 2017: जानिए गोरखपुर के देवी मंदिर का आजादी के परवानों से कनेक्शन

संक्षेप:

  • जंगे आजादी की लड़ाई में शक्ति मंदिर की अहम भूमिका
  • मॉ के आशीर्वाद से क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थें
  • नवरात्रि में उमड़ती है भक्तों की भीड़

- सुनील वर्मा

गोरखपुर जिले की भोजपुरिया मिट्टी अपनी क्रांति और सृजन के लिए जाना जाता है। साथ ही इस क्षेत्र को शैव और शाक्त मतों के समन्वय स्थल के रूप में भी देखा जाता है। यही कारण है कि महाभारत काल से लगातार अंग्रेजों से देश को आजाद कराने तक की लड़ाई में शक्ति मंदिर को भी अहम भूमिका रही है।

यदि जनश्रुतियों की बात करें तो प्राचीन गोरखपुर और मौजूदा सिद्धार्थनगर जिले में स्थिति पलटा देवी मंदिर के निकट ही महाभारत काल में अपने अज्ञातवास के लिए विराटनगर जाते समय पांडवों ने अपने अस्त्र छुपाये थे, और उनकी व उनके अस्त्रों की सुरक्षा के लिए यहीं पहली बार द्रौपदी ने मां जगदंबा की पूजा अर्चना की थी।

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ज्ञन्तव्य की ओर बढ़ते समय महराजगंज जिले के लेहड़ा के तत्कालीन घने जंगल में भी द्रौपदी ने मां आदिशक्ति की आराधना की थी, जिसके कारण आज भी ये दोनों मंदिर बड़ी संख्या में श्क्ति आराधकों की आस्था के केन्द्र बने हुए हैं. इसी तरह गोरखपुर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर तथा चौरी चौरा से 5 किलो मीटर कि दूरी पर स्थित हैं तरकुलहा देवी मंदिर.

इस मंदिर ने भी जंग ए आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. उस समय इस स्थान पर घना जंगल था, जिसमें एक दुर्गा मंदिर काफी पुरानी थी. यह मंदिर 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तब प्रकाश में आया जब जिले के डुमरी रियासत के बाबू बंधू सिंह को अंग्रेजों ने पकड़ा. इतिहास के पन्नों में बंधु सिंह की आजादी की लड़ाई में योगदान को भले ही उपेक्षित कर दिया गया है. मगर यह बात इस इलाके के पढ़े लिखे और अनपढ़ लोग भी भली भांति जानते हैं कि चौथेपन की उम्र में भी बिहार के जगदीशपुर के राजा बाबू कुंवर सिंह के साथ मिल कर बंधू सिंह ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में न केवल ब्रिटिश सरकार की नाक में दम कर दिया था कहा जाताहै कि अंग्रेज अधिकारियों को अगवा कर इसी देवी मंदिर पर उनकी बलि चढ़ाई थी।

एक समय वह स्थिति भी पैदा कर दिया था, जब जिले के बड़हलगंज से बलिया तक का इलाका कुद दिनों के लिए ब्रिटिश शासन से मुक्त हो गया था. बंधू सिंह गुरिल्ला लड़ाई में माहिर थे, इसलिए जब भी कोई अंग्रेज उस जंगल से गुजरता, बंधू सिंह उसको मार कर उसका सर काटकर देवी मां के चरणों में समर्पित कर देते. पहले तो अंग्रेज यही समझते रहे कि उनके सिपाही जंगल में जाकर लापता हो जा रहे हैं, लेकिन धीरे धीरे उन्हें भी पता लग गया कि अंग्रेज सिपाही बंधू सिंह के शिकार हो रहे हैं. अंग्रेजों ने उनकी तलाश में जंगल का कोना कोना छान मारा लेकिन बंधू सिंह उनके हाथ नहीं आये. मगर कुछ ही दिनों बाद इलाके के एक तत्कालीन बड़े व्यवसायी की मुखबिरी के चलते बंधू सिंह अंग्रेजों की गिर त में आ गए.

अंग्रेजों ने उन्हें गिर तार कर अदालत में पेश किया जहां उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी, 12 अगस्त 1857 को गोरखपुर में अली नगर चौराहा पर सार्वजनिक रूप से बंधू सिंह को फांसी पर लटकाया गया. बताया जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें 6 बार फांसी पर चढ़ाने की कोशिश की लेकिन हर बार फांसी का फंदा टूट जाता रहा. दूसरी ओर तरकुलहा मंदिर परिसर में स्थित ताड़ के पेड़ों का ऊपरी हिस्स्सा भी टूट कर गिरता रहा और वहां से रक्त की धर बहने लगती थी. इसके बाद बंधू सिंह ने स्वयं देवी तरकुलहा मां का ध्यान करते हुए मन्नत मांगी कि मां मुझे मुक्ति दें. कहते हैं कि बंधू सिंह की प्रार्थना देवी ने सुन ली और सातवीं बार में अंग्रेज उन्हें फांसी पर चढ़ाने में सफल हो गए. अमर शहीद बंधू सिंह को स मानित करने के लिए यहां एक स्मारक भी बना हैं.

यहां मटन बाटी है प्रसाद : यह देश का इकलौता मंदिर है जहां प्रसाद के रूप में श्रद्धालु परिसर में मटन बना कर खाना जरूरी मानते हैं. बंधू सिंह ने देवी के चरणों में अंग्रेजो के सिर चढ़ा के जो बलि कि पर परा शुरू की थी वो आज भी यहां चालू हैं. अब यहां पर बकरे कि बलि चढ़ाई जाती है, उसके बाद बकरे के मांस को मिट्टी के बरतनों में पका कर प्रसाद के रूप में बाटा जाता हैं, साथ में बाटी भी दी जाती हैं. वैसे तो पुराने समय में देवी के कई मंदिरो में बलि कि पर परा थी लेकिन समय के साथ साथ लगभग सभी जगह से यह पर परा बंद कर दी गयी लेकिन तरकुलहा देवी के मंदिर में अब भी यह परंपरा चली आ रही है. हालांकि इस पर अब काफी विवाद है और इसे बंद कराने के लिए कोर्ट में केस भी चल रहा हैं. तरकुलहा देवी मंदिर में एक माह का मेला लगता है, जिसकी शुरुआत चैत्र रामनवमी से होती हैं यह मेला एक महीने चलता हैं. यहां पर मन्नत पूरी होने पर घंटी बांधने का भी रिवाज हैं, यहां आपको पूरे मंदिर परिसर में जगह जगह घंटिया बंधी दिख जायेगी. सोमवार और शुक्रवार के दिन यहां पर काफी भीड़ रहती हैं.

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