गोरखपुर: रमजान के आखिरी जुमा पर अदा की गई नमाज

संक्षेप:

  • मस्जिदों में नमाजियों की भीड़ उमड़ी
  • खुशियों में सभी को शरीक करने की अपील
  • रमजान का मकसद- लोग दूसरों की तकलीफों को समझें

गोरखपुर: रमजान के आखिरी जुमा पर शहर की मस्जिदों में नमाजियों की भीड़ उमड़ी। मस्जिदों के बाहर और छतों पर भी नमाज पढ़ने की व्यवस्था की गई। पेश इमामों ने जुमे की तकरीरों में रोजा, फितरा, जकात के संबंध में जानकारी दी। नमाज के बाद देश और दुनिया में खुशहाली, भाईचारे और अमन चैन की दुआ कराई गई। ईद की खुशियों में सभी को शरीक करने की अपील की गई।

एसएसपी, एसपी सिटी, एसपी सिटी और सभी थानों के इंस्पेक्टर सुरक्षा और यातायात की व्यवस्था बनाए रखने को गश्त करते रहे। जुमा तकरीरों में कहा गया कि रमजान के महीने के दौरान रोजेदारों में भूख, प्यास समेत हर तरह की सख्ती बर्दाश्त करने की आदत हो जाती है। रमजान का मकसद यह है कि लोग दूसरों की तकलीफों को समझें। लोग दूसरों की मदद अपने सामर्थ्य के अनुसार करते रहें जिससे कोई भी जीवन के लिए जरूरी चीजों से वंचित न रहे। लोग फितरा-जकात जरूर निकालें। पेश इमामों ने इसकी अहमियत बताई।

रोजेदार ने बताया कि यदि आपका रिश्तेदार गरीब हो और वह शर्म की वजह से अपनी तकलीफ न बताता तो हो तो अन्य तरह से उसकी मदद करें। नेक-नीयती जरूरी है। फितरा ईद की नमाज से पहले दें। लोगों से कहा गया कि जिस तरह रमजान में इबादत की है उसी तरह पूरे साल करें। 

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ईद उल फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है। मुस्लिम रमजान के बाद फितरा और जकात देकर गरीबों की मदद करते हैं। इस दिन सेवइयां और खीर बनाने का रिवाज है। माना जाता है कि रमजान के पाक महीने में ही कुरआन शरीफ का धरती पर अवतार हुआ था। इसलिए इस पूरे महीने कुरआन शरीफ पढ़ी जाती है। रोजे के दौरान मुस्लिमों को झूठ बोलने और बुरे कामों से बचने की हिदायत दी जाती है।

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