भीख मांगने वाले बच्चों के लिए उत्तराखंड के अजय कर रहे अनोखा काम

संक्षेप:

  • बच्चे भीख न मांगें, इसलिए छोड़ा जूते-चप्पल पहनना
  • पढ़िए उत्तराखंड के अजय की अनूठी कहानी
  • आर्मी से रिटायर्ड हैं अजय के पिता और दादा

40 पार तापमान में जब सड़कें तवे की तरह जल रही होती हैं तब उत्तराखंड के अजय नंगे पैर इन पर चलकर यहां-वहां भीख मांग रहे बच्चों को खोज रहे होते हैं। ताकि भीख मांगने की प्रवृत्ति छुड़वाकर इन्हें पढ़ाई से जोड़ा जा सके। सितंबर 2015 से चल रहा अजय का अभियान ‘संकल्प’ 35 शहरों में 50 हजार किमी. से अधिक की यात्रा तय कर शुक्रवार को लखनऊ पहुंचा।

अलग-अलग शहरों के कई बच्चों को अब तक भीख मांगने या बालश्रम से निजात दिला चुके अजय का कहना है कि उनकी पीड़ा समझने के लिए ही 2015 से जूते-चप्पल पहनना छोड़ दिया है।

अजय ने बताया कि एक बार बच्चे को चिलचिलाती धूप में नंगे पांव भीख मांगते देखा, तब से इन मासूमों की तकलीफ समझने के लिए उनके जैसी परिस्थितियां अख्तियार कर लीं।

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लखनऊ से होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई कर चुके पिथौरागढ़ जिले के धनौड़ा गांव के 25 वर्षीय अजय उत्तर प्रदेश, राजस्थान व उत्तराखंड में सात हजार किमी पैदल और 50 हजार किमी स्कूटी से सफर कर चुके हैं। शुरुआती समय में पैदल यात्रा में काफी समय लगने के बाद अजय ने बाद में वाहनों का सहारा लिया, लेकिन जूते-चप्पल से दूरी बनाए रखी।

अभियान के तहत राजधानी पहुंचे अजय ने बताया कि वह युवाओं के बीच और स्कूल में जाकर लोगों को भिक्षावृत्ति और बाल श्रम के विरोध में जागरूक करते हैं और इनके खिलाफ आवाज उठाने की शपथ भी दिलाते हैं।

अजय के पिता और दादा दोनों की आर्मी से रिटायर्ड हैं। बताया कि नंगे पांव रहने से अभावग्रस्त लोगों की पीड़ा का अहसास बना रहता है। साथ ही इनके लिए कुछ करने की प्रेरणा मिलती है।

हर दिन 10 से 14 घंटे चलकर अजय 100 से 120 किमी. की यात्रा तक तय करते हैं। यात्रा का हर दिन का खर्च 300 रुपये तक लगभग आता है। 35वें शहर पहुंचे अजय ने बताया कि उनका लक्ष्य है कि 2025 तक वे पूरे देश के हर शहर को अभियान से जोड़ सकें।

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