जानिए हरिद्वार में क्यों मनाया गया दादा-दादी दिवस

संक्षेप:

  • रुड़की के मनाया गया दादा-दादी दिवस
  • बच्चों ने बनाए दादा-दादी के लिए सुंदर कार्ड
  • अच्छे परिवार के लिए ग्रैंड पैरेंट्स का होना अनिवार्य: प्राचार्य 

हरिद्वार: बढ़ती महंगाई, भौतिक सुखों की चाह, सीमित आय, समयाभाव जैसे कारणों से परिवार टूटते जा रहे हैं। संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार ने ले ली है। आज बच्चे स्वयं को भावनात्मक रूप से असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। ऐसे में उन्हें परिवार के बड़े-बुजुर्गों की छत्र-छाया की परम आवश्यकता है। उनके सानिध्य में बच्चा प्रेम, अनुशासन और सम्मान करने का महत्व सीखता है।

इसी के मद्देनजर उत्तराखण्ड में दादा-दादी दिवस मनाया गया जिसमें स्कूलों और कॉलेजों में कार्यक्रम आयोजित किए गए। रुड़की के केंद्रीय विद्यालय नम्बर एक में भी दादा-दादी सम्मान दिवस समारोह मनाया गया।

कार्यक्रम के दौरान बच्चों ने दादा-दादी के लिए सुंदर कार्ड बनाए। कार्यक्रम में बेस्ट दादा-दादी को अवार्ड अर्णव और धानी देकर सम्मान किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य विपिन त्यागी ने बताया कि स्कूल का मुख्य उद्देश्य समय-समय पर ऐसे दिवस का आयोजन करना है, ताकि बच्चों के ज्ञान में बढ़ोत्तरी हो सकें। बच्चों को बड़ों का सम्मान करने की सीख मिल सके।

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उन्होंने बताया कि अच्छे परिवार के लिए ग्रैंड पैरेंट्स का होना अनिवार्य है। दादा-दादी से ही हमारा परिवार खुशहाल होता है। दादा-दादी से हमें संसार की विविध प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं। साथ ही उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि बच्चों को मां-बाप से ज्यादा प्यार दादा-दादी से मिलता है। उन्होंने कहा कि बच्चों और उनके दादा-दादी का रिश्ता बड़ा अनमोल होता है। उन्होंने बताया कि स्कूल में इस तरह के समागम को करवाने के पीछे उनका उद्देश्य नौनिहालों उनके दादा-दादी में प्यार के अनमोल रिश्ते को बल देना है।

कार्यक्रम में बतौर मुख्यातिथि पहुंचे वरिष्ठ वैज्ञानिक एनआईएच संजय जैन ने कहा एकल परिवार के बढ़ते चलन ने बच्चों को दादी- दादा से मिलने वाले स्नेह और संस्कार से दूर कर दिया है। हालात को देखते हुए बच्चों मेंग्रैंड पेरेंट्स के प्रति प्रेम बढ़ाने के को लेकर इस तरह के आयोजन बेहद आवश्यक है।

उन्होंने बच्चों को दादा- दादी के महत्व के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। साथ ही उनके द्वारा बच्चों मिलने वाले संस्कार पर विस्तार से चर्चा की गई। उन्होंने कहा वह बहुत भाग्यशाली होते है जिनकी तीन पीढि़यां एक छत के नीचे रहती हैं। जीवन का सबक सीखने के लिए बड़े बुजुर्गों का साया बेहद जरूरी है, जो किताबों में नहीं मिलती। कार्यक्रम में बच्चों ने विभिन्न प्रस्तुति पेश की, साथ ही साथ बच्चों के दादा-दादी द्वारा भी प्रस्तुतियां पेश की गई।

कार्यक्रम में अध्यापगणों ने दादा-दादी पर बोलते हुए कहा कि जब समाज से संस्कार, सज्जनता, सरलता, सहृदयता, एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव जैसे मानवीय मूल्यों का ह्रास होने लगता है तब हमें इन मूल्यों को बचाये रखने के लिए विशेष प्रयास की आवश्यकता होती है। इसी क्रम में अपने बड़े-बुजुर्गों को सम्मान देने के लिए दादा-दादी दिवस मनाया जाना जरूरी है।

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