हरिद्वार में कर्मचारी राज्य बीमा योजना का बुरा हाल

संक्षेप:

  • कर्मचारी राज्य बीमा योजना हरिद्वार में तोड़ रही दम
  • चार डॉक्टरों के भरोसे चल रहे अस्पताल
  • दो पूर्व सीएम ने दिखाया था ढाई सौ बेड वाले अस्पताल का सपना 

 

हरिद्वार: सरकारों के द्वारा श्रमिकों और गरीबों के सशक्तिकरण के हजार दावे किए जा रहे हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। केंद्र सरकार की कर्मचारी राज्य बीमा योजना हरिद्वार में दम तोड़ रही है। लाखों की संख्या में श्रमिक ईएसआई पर निर्भर होने के बावजूद चार डॉक्टरों के भरोसे चल रहे अस्पताल में इलाज कराने को मजबूर है।

हरिद्वार के सिडकुल में स्थित इस जमीन पर उग रही झाड़ियां इस बात की तस्दीक कर रही है कि सालों से अपने इलाज के लिए बनने वाले ईएसआई हॉस्पिटल की राह देख रहे फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिकों का सपना अभी पूरा होता नज़र नहीं आ रहा है। हालांकि लगभग तीन एकड़ की इस जमीन पर दो अलग-अलग सरकारों के मुख्यमंत्री अस्पताल की आधारशिला रख कर जा चुके है लेकिन फिलहाल तो झाड़ियों के बीच से रखी गई उस शिला का आधार भी नज़र नहीं आता।

वर्तमान में हरिद्वार के सांसद और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री हरीश रावत ईएसआई के ढाई सौ बेड वाले अस्पताल का सपना लाखों लोगों को दिखा चुके हैं जो अभी तक साकार करने के कोई प्रयास नही हुए है। सरकारों और मुख्यमंत्रियों के बदलने का दौर तो लगातार जारी है लेकिन हरिद्वार के सिडकुल में यह जमीन अस्पताल के रूप में बदलती नहीं दिख रही। हालांकि जनप्रतिनिधि हमेशा की तरह आज भी जल्दी ही अस्पताल के निर्माण का दावा कर रहे हैं।

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हरिद्वार के लाखों श्रमिक अपनी तनख्वाह से करोड़ों का अंशदान ईएसआई को करते हैं। लेकिन सुविधा के नाम पर उन्हें सिर्फ शोषण ही मिलता है। हरिद्वार के गोविंदपुरी में एक मकान में चल रही ईएसआईसी डिस्पेंसरी मरीजों को सिर्फ अस्पतालों में रेफर करने तक ही सीमित है। इतना ही नहीं दूर-दूर से मरीज अस्पताल में पहुंचते हैं और घंटों तक लाइन में या कागजी कार्यवाही में उलझ कर ही रह जाते हैं। जिन मरीजों को निजी अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है उन अस्पतालों में ईएसआई द्वारा समय से बिल ना चुका पाने के अनुबंधित अस्पताल भी मरीजों को चिकित्सा देने से इनकार कर रहे हैं। मरीजों का कहना है की हरिद्वार में जल्दी ही अस्पताल बनना चाहिए और वर्तमान में संचालित हो रही डिस्पेंसरी में डॉक्टरों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए।

चुनावों के दौर में गरीबों के हितों की बात तो खूब की जाती है लेकिन संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को बीमा चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने जैसे विषय पर चर्चा नहीं की जाती वादे नहीं किए जाते। राज्य कर्मचारी बीमा एक स्वायत्त निगम है जिसमें 20 से अधिक कर्मचारियों वाले कार्यस्थल और इक्कीस हज़ार रुपए प्रति माह से कम वेतन पाने वाले श्रमिक आते हैं। अकेले हरिद्वार जिले में छः लाख से अधिक श्रमिक ईएसआई योजना के अंतर्गत आते हैं।

श्रमिकों को मिलने वाली यह सुविधा पूरी तरह निशुल्क नहीं होती बल्कि हर श्रमिक को अपने तनख्वाह से हर माह एक निश्चित अंश ईएसआई को देना होता है। हरिद्वार में श्रमिकों से करोड़ों रुपए अंशदान लेने के बावजूद राज्य कर्मचारी बीमा निगम पर करोड़ों रुपए का कर्ज है जिसके कारण ईएसआई द्वारा भेजे गए मरीज निजी चिकित्सालय में भी इलाज नहीं करवा पा रहे हैं।

अगर सरकारें गरीबों और श्रमिकों के हित के लिए काम कर रही हैं। अगर सरकारें श्रमिकों को चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर रही है तो फिर उत्तराखंड के हरिद्वार जैसे सर्वाधिक राजस्व देने वाले जिले में राज्य कर्मचारी बीमा निगम की इस दयनीय अवस्था का जिम्मेदार आखिर कौन है? यह एक बड़ा सवाल है और हर मजदूर इस सवाल का जवाब ढूंढ रहा है।

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