हरिद्वार: गंगा में विसर्जित की गई मशहूर कवि गोपालदास 'नीरज' की अस्थियां

संक्षेप:

  • कवि गोपालदास `नीरज` की अस्थियां गंगा में विसर्जित
  • बेटे ने की भारत रत्न देने की मांग
  • शिक्षा के क्षेत्र में भी दिया काफी योगदान

हरिद्वार: दिवंगत वरिष्ठ कवि और साहित्यकार गोपालदास `नीरज` की अस्थियां आज हरिद्वार पहुंचीं, जहां पूरे विधि-विधान के साथ अस्थियों को गंगा में विसर्जित किया गया।

गंगा घाट पर `नीरज` के बेटे, उनके पौत्र समेत कई परिजन मौजूद रहे। बीते 19 जुलाई को लम्बी बीमारी के चलते कवि गोपालदास का निधन हो गया था। गोपालदास `नीरज` जीवन के 93 बसंत देख चुके थे। उनका हरिद्वार से गहरा लगाव रहा। उनके पुत्र मिलन प्रभात हरिद्वार स्थित बीएचइएल संस्थान में कार्यरत है। जिससे मिलने गोपालदास `नीरज` अक्सर हरिद्वार आया करते थे।

वरिष्ठ कवि और साहित्यकार गोपालदास `नीरज` के बेटे मिलन प्रभात ने अपने पिता के लिए भारत सरकार से सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न देने की मांग की है। उन्होंने कहा कि गोपालदास का पुत्र होना उनके लिए गौरव की बात है। साथ ही उनके पिता की मृत्यु से देश को भी भारी क्षति हुई है।

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तीर्थ पुरोहित का कहना है कि दिवंगत `नीरज` का अस्थि विसर्जन हरकी पैड़ी के ब्रह्मकुंड में करवाया गया है। आत्मा की शांति के लिए पिंड दान और अन्य कार्य पूरे विधि-विधान से सम्पन्न कराए गए हैं।

19 जुलाई बुधवार को 93 वर्षीय गोपालदास सक्सेना `नीरज` का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के ट्रॉमा सेंटर में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था। वह कई दिनों से फेफड़ों में गंभीर संक्रमण की चपेट में थे।

गोपालदास सक्‍सेना का जन्म 4 जनवरी 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था। नीरज जीवन भर कविता लिखने में लगे रहे। गोपालदास का बचपन गरीबी में बीता था। गोपालदास ने कई हिन्‍दी फिल्‍मों के लिए गाने लिखे। हिन्‍दी फिल्‍म जगत में उनकी पहचान एक ऐसे लेखक के रूप में थी जो हिन्‍दी और उर्दू दोनों ही भाषाओं में बेहद सरलता से गाने लिख सकता था। उनका कलम नाम `नीरज` था और लोग उन्हें इसी नाम से जानते थे।

लेखन के अलावा `नीरज` ने शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी योगदान दिया। वह अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्‍दी साहित्‍य के प्रोफेसर थे। 2012 में वह अलीगढ़ स्थित मंगलायतन यूनिवर्सिटी के चांसलर भी रहे। `नीरज` को 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्म भूषण से भी सम्‍मानित भी किया गया।

`कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे`, `जीवन की बगिया महकेगी`, `काल का पहिया घूमे रे भइया!`, `बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ, आदमी हूं- आदमी से प्यार करता हूं`, `ए भाई! ज़रा देख के चलो`, `शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब`, `लिखे जो खत तुझे`, `दिल आज शायर है`, `खिलते हैं गुल यहां`, `फूलों के रंग से`, `रंगीला रे! तेरे रंग में` जैसे कई गीतों को लिखकर गोपालदास `नीरज` अपने चाहने वालों के दिल में हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गये।

उनकी अनेक कविताओं के अनुवाद गुजराती, मराठी, बंगाली, पंजाबी, रूसी आदि भाषाओं में भी हुए। दिनकर उन्हें हिंदी की `वीणा` मानते तो अन्य लोग उन्हें `संत कवि` से संबोधित करते थे। 

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