संत गोपालदास को प्रशासन ने वापस मातृ सदन छोड़ा, स्वामी सानंद के निधन पर दिया बड़ा बयान

संक्षेप:

  • संत गोपालदास को प्रशासन ने वापस मातृ सदन छोड़ा
  • स्वामी सानंद को लेकर दिया बड़ा बयान
  • जानिए क्या है संथारा तपस्या

हरिद्वार: गंगा के लिए अनशन कर रहे संत गोपालदास को आज पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने वापस मातृ सदन छोड़ गए. मातृ सदन पहुंचे गोपालदास ने ऋषिकेश एम्स के मेडिकल सुपरिटेंडेंट पर गंभीर आरोप लगाए हैं.

आपको बता दें कि गोपाल दास की बिगड़ती हालत को देखते हुए कुछ दिन पहले हरिद्वार प्रशासन और पुलिस ने उन्हें एम्म ऋषिकेश में भर्ती कराया था.

स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद  (प्रो. जीडी अग्रवाल) की मौत के बाद उनके आंदोलन के आगे बढ़ाते हुए संत गोपाल दास ने हरिद्वार के मातृ सदन में गंगा की रक्षा के लिए अनशन शुरू कर किया था. मातृ सदन में संत गोपाल दास ने आज से  संथारा तपस्या की घोषणा भी कर दी है और इस क्रम उन्होंने मौन व्रत शुरू कर दिया है.

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गंगा की स्वच्छता निर्मलता और अविरलता को लेकर वन संरक्षण व स्वामीनाथन आयोग की मांग को लेकर संत गोपाल दास 24 जून से आमरण अनशन पर हैं. स्वामी सानंद  की मौत के बाद वो मातृ सदन पहुंचे थे. उसी रात पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने गोपाल दास को एम्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया था. संत गोपाल दास का आमरण अनशन अभी भी जारी है..

आज मातृ सदन पहुंचने के बाद गोपाल दास ने एम्स हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट पर दबाव बनाने के आरोप लगाए है. दास का कहना है कि मेडिकल सुपरिटेंडेंट यह चाहते थे कि उनके द्वारा यह बयान दिया जाए की उन्हें जबरदस्ती अनशन कराया जा रहा है.

गोपाल दास ने एम्स हॉस्पिटल की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि एम्स हॉस्पिटल सुरक्षित नहीं है. एम्स हॉस्पिटल में स्वामी सानंद की मृत्यु स्वाभविक मृत्यु नहीं है. स्वामी सानंद के प्राणों का हनन एम्स हॉस्पिटल में हुआ. वही संत गोपाल दास अब संथारा से तपस्या करेंगे और इसकी शुरुआत आज मौन व्रत से शुरू कर दिया है.

स्वामी शिवानंद का कहना है कि स्वामी सानंद को मारा गया है. एम्स के सुपरिटेंडेंट किसके दबाव में ये सब कर रहे हैं, इसकी जांच होनी चाहिए. मातृ सदन तपस्थली है.  गंगा की स्वच्छता तक ये तप जारी रहेगा. संथारा तपस्या स्वामी सानंद के संकल्प को जिंदा रखने के लिए की जा रही है.

क्या है संथारा तपस्या

सल्लेखना (समाधि या सथारां) मृत्यु को निकट जानकर अपनाये जाने वाली एक जैन प्रथा है. इसमें जब व्यक्ति को लगता है कि वह मौत के करीब है तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है. दिगम्बर जैन शास्त्र अनुसार समाधि या सल्लेखना कहा जाता है, इसे ही श्वेतांबर साधना पध्दती में संथारा कहा जाता है.

सल्लेखना दो शब्दों से मिलकर बना है सत्+लेखना. इस का अर्थ है - सम्यक् प्रकार से काया और कषायों को कमज़ोर करना. यह श्रावक और मुनि दोनों के लिए बतायी गयी है. इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है, जिसके आधार पर व्यक्ति मृत्यु को पास देखकर सबकुछ त्याग देता है. 

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