हरिद्वार महाकुंभ 2021: हठयोग तपस्या की राह है मुश्किल, इन बातों को जानना है ज़रूरी

संक्षेप:

  • अध्यात्मिक ज्ञान सर्वोपरि है
  • मुश्किल हठयोग की राह होती है
  • बाबा एक साल से थारेश्वरी हठयोग कर रहे

 

हरिद्वार। सांसारिक सुख को त्याग कर संन्यास लेना आसान नहीं होता है और इससे भी मुश्किल हठयोग की राह होती है। इसमें एक हठयोगी अपने शरीर को कठोर तपस्या में झोंक कर ईश्वर को समर्पित कर देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि हठयोग केवल परमशक्ति के प्रति निष्ठा और विश्वकल्याण की भावना के साथ किया जाता है।

आज सातों शैव संन्यासी अखाड़ों का शाही स्नान है। हिमालय के उत्तुंग शिखरों, घने अरण्यों और मरुस्थलों से नागा संन्यासी व हठयोगी भी शाही स्नान के लिए कुंभ नगरी पहुंचे चुके हैं। नागा संन्यासियों का जीवन बेहद कठिन है, लेकिन हठयोग भी आसान नहीं है।

श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े के खड़ेश्वरी बाबा एक साल से थारेश्वरी हठयोग कर रहे हैं। उन्होंने अपने दोनों पांव ईश्वर को समर्पित कर दिए हैं। वे खड़े होकर ही सोते है.

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श्री तपोनिधि आनंद अखाड़े के हठयोगी दिंगबर दिवाकर भारती ने काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ज्ञानपुर भदोही उत्तर प्रदेश से बीएससी की थी। एक दिन ऐसा आया जब उन्होंने भोग विलास के जीवन को त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया। संन्यास ग्रहण करने के बाद वे दिन रात ईश्वर की आराधना में लीन हो गए।

आखिरकार वे अपना एक हाथ ईश्वर का समर्पित कर हठयोगी बन गए। दिगंबर दिवाकर भारती वे पांच वर्षों से ऊर्ध्वबाहू हठयोग कर रहे हैं। इसमें एक हाथ खड़ा रख ईश्वर को समर्पित कर दिया जाता है। उन्होंने बताया एक साइंस ग्रेजुएट होकर भी उन्होंने संन्यास इसलिए लिया क्योंकि अध्यात्मिक ज्ञान सर्वोपरि है।

दस तरह के होते है हठयोग

- 1 दंडी

ये साधु अपने साथ दंड और कमंडल रखते हैं। दंड बांस का एक टुकड़ा होता है, जो गेरुआ कपड़े से ढंका रहता है। ये किसी धातु की वस्तु को नहीं छूते। ये भिक्षा के लिए दिन में एक ही बार जाते हैं।

- 2. ऊर्ध्वबाहु

ये संन्यासी अपने इष्ट (भगवान) को प्रसन्न करने के लिए अपना एक या दोनों हाथ ऊपर उठाकर रखते हैं।

- 3. आकाशमुखी

जो संन्यासी आकाश की ओर देखते रहते हैं, उन्हें आकाशमुखी कहते हैं। ये एक कठोर साधना है, जो कम ही साधु कर पाते हैं।

- 4. थारेश्वरी

ये संन्यासी दिन-रात खड़े रहने की शपथ लेते हैं। वे खड़े-खड़े ही भोजन करते और सोते हैं। ऐसे साधुओं का हठयोगी भी कहा जाता है।

5. नखी

- जो संन्यासी सालों तक खून नहीं काटते, उन्हें नखी कहते हैं। इनके नाखून सामान्य से 20 गुना तक बड़े हो सकते हैं।

- 6. ऊर्ध्वमुखी

 ये साधु अपने पैरों को ऊपर और सिर नीचा रखते हैं। ये अपने पैरों को किसी पेड़ की शाखा से बांध कर लटकते रहते हैं।

- 7. पंचधुनी

ये साधु अपने चारों ओर आग जलाकर तपस्या करते हैं। मिट्टी के बर्तन में अंगारे लेकर अपने सिर पर रखकर भी साधना करते हैं।

- 8. मौनव्रती

ये संन्यासी मौन (कुछ न बोलने) रहने की शपथ लेते हैं। यदि इन्हें किसी से कुछ कहना होता है तो कागज पर लिखकर उसे बताते हैं।

- 9. जलसाजीवी

ये साधु किसी नदी या तालाब में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कमर तक पानी में खड़े रहकर तपस्या करते हैं।

- 10. जलधारा तपसी

ये साधु गड्ढे में बैठकर अपने सिर पर घड़ा रखते हैं, जिसमें छेद होते हैं। इस घड़े का पानी छिद्रों से इन पर निरंतर गिरता रहता है।

 

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