पितृपक्ष में हरिद्वार जाने से पितरों को मिलता है मोक्ष

संक्षेप:

  • पितृ पक्ष के दौरान कौए पितरों के रूप में पितृलोक से आते हैं भू-लोक
  • नारायणी शिला मंदिर में श्रद्धालुओं की लगी भीड़
  • हरिद्वार जाने से पितरों को मिलता है मोक्ष

हरिद्वार: हरिद्वार, लोग यहां श्राद्ध पक्ष में अपने पितरों की मुक्ति के लिए आते हैं और गंगा स्नान कर पुण्य कमाते हैं. वेद पुराणों के मुताबिक पितृ पक्ष के दौरान कौए पितरों के रूप में पितृलोक से भू-लोक पर आते हैं. इसीलिए पितृ पक्ष में लोग कौओं के लिए निमित्त भोजन निकालते हैं.

माना जाता है कि पितृपक्ष में हरिद्वार जाने से पितरों को मोक्ष मिलता है. भटकती आत्माओं को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. कहा जाता है कि भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का पखवाड़ा पितरों का पखवाड़ा होता है. इन दिनों अपने पितरों को पिंडदान व श्राद्ध तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिलता है और पितृ प्रसन्न रहते हैं. जिससे घर में सुख शांति व सृमृद्धि आती है.

पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध पक्ष में किसी भी वजह से श्राद्ध नहीं कर पाता है तो वह इस पक्ष के आखिरी दिन पितृ विसृजनी अमावस्या के दिन यदि पिंडदान श्राद्ध आदि कर ले तो पितरों को सदगति मिलती है. यह भी मान्यता है कि हरिद्वार में नारायणी शिला पर अपने सभी भूले बिसरों और अज्ञात पितरों का पिंडदान व तर्पण करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.

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पितृ विसर्जन अमावस्या आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक होती है. श्राद्ध यानि श्रद्धा के साथ किया गया दान, इसी को श्राद्ध कहते हैं. हरिद्वार का नारायणी शिला मंदिर वो स्थान है, जिसे देश भर में पितृ कर्म के लिए तीन प्रमुख स्थानों से एक माना गया है. यहां पितरों के लिए श्राद्ध व पिंड़दान आदि कराने का खास महत्व माना जाता है.

पितृकर्म करने के लिए हरिद्वार आकर लोग पहले गंगा में स्नान कर खुद को पवित्र करते हैं और फिर नारायणी शिला मंदिर में अपने पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं. श्रदालुओं का कहना है कि यहां आकर मन को शांति मिलती है. 

पुराणों के अनुसार पितृ में 16 संस्कार, 16 गुणधर्म, 16 महा श्राद्ध, 16 स्वर्ग के द्वार, 16 पिंड और 16 तिथियां, श्राद्ध को समर्पित होती हैं. पुराणों में कहा गया है की माता के 8 और पिता के 8 गुण मिलाकर लड़का बनता है और इन्हीं के आधार पर 16 श्राद्ध होते हैं. पिछले 16 दिनों से पितृ पृथ्वीलोक पर थे और अब पितृलोक के लिए विदा हो रहे है.

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