महाशिवरात्रि पर भूलकर भी न करें ये काम, जानिए शुभ मुहूर्त

संक्षेप:

  • महाशिवरात्रि 2018
  • बन रहे ऐसे संयोग कि दो बार होगा शिव पूजन
  • यहां जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त

हरिद्वार: इस बार शिवरात्रि का पूजन 13 व 14 फरवरी की रात्रि में दो बार किया जा सकता है। शिवरात्रि का योग दोनों रात्रियों में बना रहेगा। महानिशीथ काल 13 फरवरी की मध्य रात्रि में उपलब्ध होगा। महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव का विवाह हुआ था।

लाखों शिव भक्त शिवरात्रि के समय हरिद्वार से गंगा जल ले जाकर  देश के विभिन्न मंदिरों में चढ़ाते हैं। भारतीय प्राच्य विद्या सोसायटी के अध्यक्ष ज्योतिषाचार्य डा. प्रतीक मिश्र पुरी के अनुसार इस बार 13 फरवरी की रात 10.35 बजे से चतुर्दशी प्रांरम्भ हो रही है।

यह तिथि पूरी रात रहेगी। अगले दिन 14 फरवरी को मध्य रात्रि में 12.45 तक चतुर्दशी तिथि बनी रहेगी।  इसके बावजूद जो लोग महानिषीथ काल में पूजा करते हैं वे 13 की रात्रि में ही कर पाएंगे। समूचे उत्तरांखंड, उत्तरप्रदेश , हरियाणा, पंजाब, हिमाचल एवं जम्मू-कश्मीर में महानिषीथ काल 13 की रात्रि में 12.15 बजे से रात्रि1.6 बजे तक बना रहेगा। यह काल शिव पूजा का श्रेष्ठ काल है। इस समय की गई पूजा उत्तम कही गई है। 14 फरवरी की रात शिवरात्रि तो अवश्य रहेगी, किंतु महानिषीथ काल उपलब्ध नहीं होगा। 

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डा. मिश्रपुरी ने बताया कि पंचागों में अशुद्धता तथा सोशल मीडिया पर अनेक गलत जानकारियों के कारण सामान्य जन शिव पूजा को लेकर भ्रमित हो गए हैं। वास्तव में यह पर्व दोनो ही दिन जल चढ़ाने का पर्व है। कांवड़ का जल दोनों ही दिन चढ़ाया जा सकता है। शिवरात्रि का व्रत दोनों दिन रखा जा सकता है।

ज्योतिष शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि सकाम कर्म में तिथि, बार, नक्षत्र का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। जो श्रृद्धालु निष्काम भक्ति में विश्वास करते हैं, उनके लिए व्रत का महत्व है। प्रत्येक त्योहार व व्रत का आधार ज्योतिषीय घटना है। अनेक पर्व सूर्यास्त के बाद के पर्व है। जबकि कुछ पर्व केवल दिन के पर्व है। दीपावली की भांति शिवरात्रि का पूजन रात में किया जाए तो अधिक लाभ होगा।

पूरे उत्तराखंड में निषीथकाल का विचार किया जाता है। यह पर्व 13 फरवरी को पड़ेगा,अत: जो उत्तराखंडवासी व्रत रखते है उन्हें 13 फरवरी को व्रत रखना होगा। इसी रात्रि में चार पहर पूजा होगी। इस बार शिवरात्रि मंगलवार को मकर के चंद्रमा और सूर्य के नक्षत्र में पड़ रही है। यह शिवराकत्रि सभी धरतीवासियों के लिए बहुत शुभ साबित होगी।

महाशिवरात्रि पर व्रत रखना है और भगवान भोले को खुश करना चाहते हैं तो पूजा करते समय इन नियमों का पालन करें, सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।

काले रंग के कपड़े ना पहनें

महाशिवरात्रि का त्योहार शिवभक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है। लेकिन भूलवश शिव जी को प्रसन्न के लिए ऐसी कुछ गलतियां कर देते हैं जिससे उनकी पूजा पूरी नहीं हो पाती है। पहली बात, शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को यदि प्रसन्न करना चाहते हैं तो इस दिन काले रंग के कपड़े ना पहनें। कहा जाता है की भगवान शिव को काला रंग पसन्द नहीं है, जिसके कारण इस दिन काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

ये सभी चीजें भूलकर भी न चढ़ाएं

भगवान शिव को सफेद फूल बहुत पसंद होता है, लेकिन केतकी का फूल सफेद होने के बावजूद भोलेनाथ की पूजा में नहीं चढ़ाना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करते समय शंख से जल अर्पित नहीं करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा में तुलसी का प्रयोग वर्जित माना गया है। शिव की पूजा में तिल नहीं चढ़ाया जाता है। तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है, इसलिए भगवान विष्णु को तिल अर्पित किया जाता है लेकिन शिव जी को नहीं चढ़ता है।

भगवान भोलेनाथ को ये भी पसंद नहीं

भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी टूटे हुए चावल नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर नारियल का पानी नहीं चढ़ाना चाहिए। शिव प्रतिमा पर नारियल चढ़ा सकते हैं, लेकिन नारियल का पानी नहीं। हल्दी और कुमकुम उत्पत्ति के प्रतीक हैं, इसलिए पूजन में इनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। बिल्व पत्र के तीनों पत्ते पूरे होने चाहिएं, खंडित पत्र कभी न चढ़ाएं। चावल सफेद रंग के साबुत होने चाहिएं, टूटे हुए चावलों का पूजा में निषेध है। फूल बासी एवं मुरझाए हुए न हों।

महाशिवरात्रि पर ऐसे करें शिव पूजा

महाशिवरात्रि पर शिवपूजा करने के लिए सबसे पहले मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। घर के आस-पास में शिवालय न हो तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर भी पूजा की जा सकता है।

जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके महाशिवरात्रि का व्रत समाप्त करें। सूर्योदय से पहले ही उत्तर-पूर्व में पूजा आरती की तैयारी कर लेनी चाहिए। सूर्योदय के समय पुष्पांजलि और स्तुति कीर्तन के साथ महाशिव रात्रि का पूजन संपन्न होता है। उसके बाद दिन में ब्रह्मभोज भंडारा के द्वारा प्रसाद वितरण कर व्रत संपन्न होता है।

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