पढ़िए हरिद्वार के बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर की कहानी

संक्षेप:

  • सावन शुरू होते ही मंदिरों में उमड़ रही  भक्तों की भीड़
  • यहां शिव और माता पार्वती का पहली बार हुआ था मिलन
  • भोले के लिए सती ने किया था तप

हरिद्वार: धर्मनगरी हरिद्वार के मंदिरों में सावन शुरू होते ही भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। जगह-जगह भोले के भक्त जलाभिषेक कर रहे हैं। हरिद्वार के बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर को आदिकाल से ही महाकाल भोलेनाथ धाम के रूप में जाना जाता है।

भगवान शिव के जीवन से जुड़ी कई कथाओं में हरिद्वार का जिक्र प्रमुखता से होता है। एक मान्यता के अनुसार हरिद्वार के बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में बाबा भोलेनाथ का जुड़ाव इसी बात से समझा जा सकता है कि शिव और पार्वती का मिलन यहीं हुआ था। पुराणों में बताया गया है कि पहले शिव ने दक्षेश्वर के राजा दक्ष की पुत्री सती को पत्नी के रूप में पाया और फिर उन्हीं माता सती ने यज्ञ कुंड में भस्म होकर हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया।

बिल्व पर्वत के बारे में कहा जाता है कि, माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। जिसके लिए देव ऋषि‍ नारद ने पार्वती को एक सलाह दी थी। सुझाव के मुताबिक, पार्वती ने हरिद्वार स्थित बेलपत्रों से घिरे मनोरम बिल्व पर्वत पर आकर शिव की कठोर तपस्या की थी और भोलेनाथ को प्रसन्न कर दोबारा उनकीं पत्नी बनने का वरदान मांगा था।

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आपको बता दें, विश्व प्रसिद्ध हर की पैड़ी से थोड़ी ही दूरी पर बिल्व पर्वत स्थित है, जहां प्रतिष्ठित बिल्वकेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। यहां शेषनाग के नीचे लिंग रूप में बिल्वकेश्वर महादेव विराजे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि, सावन के दिनों में यहां अगर भक्त भोले बाबा के दर्शन करते हैं तो उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने यहां 12 सालों तक केवल बेलपत्र खाकर भगवान शिव के लिए तप किया था। लेकिन जब पीने के लिए पानी की समस्या आयी तब देवताओं के आग्रह पर स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने अपने कमंडल से गंगा की जलधारा प्रकट की थी।

यह स्थान आज बिल्वकेश्वर मंदिर से महज 50 कदम की दूरी पर गौरी कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि तपस्या के दौरान माता पार्वती इसी गौरी कुंड में स्नान किया करती थीं। इसके अलावा कुंड का पानी पिया करती थीं। भगवान शिव ने माता पार्वती से प्रसन्न होकर बिल्वकेश्वर के रूप में विराजने का आशीर्वाद दिया था। इसी लिए सावन में लोग दूर-दूर से यहां बेलपत्र चढ़ाने के लिए आते हैं।

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