मार्च महीने में उत्तराखंड पर मंडरा रहा खतरा!

संक्षेप:

  • चीन और भारत पर मंडरा रहा बड़ा खतरा
  • मार्च माह में हो सकता है विनाश
  • करीब 1 बिलियन क्यूबिक मीटर से ज्यादा पानी हो चुका है इकट्ठा

हरिद्वार: पूर्वी भारत के हिस्सों में बड़ा खतरा मंडरा रहा है। जिसकी चपेट में भारत के साथ ही चीन भी आ सकता है। ये खतरा ब्रह्मपुत्र नदी में बन रही तीन झीलें हैं। इन झीलों की वजह से गुजरात के भुज और उत्तराखंड के केदारनाथ आपदा से ज्यादा तबाही हो सकती है। इनमें अभी भी करीब 1 बिलियन क्यूबिक मीटर से ज्यादा पानी इकट्ठा हो चुका है जो लगातार ही बढ़ता जा रहा है।

रुड़की आइआइटी के वैज्ञानिकों की रिसर्च में सामने आया है कि चीन में ब्रह्मपुत्र नदी में पिछले दिनों आये भूकंप के बाद वहां हुए भारी भूस्खलन से नदी में 3 बड़ी अप्राकृतिक झीलें बन गई हैं। आईआईटी वैज्ञानिक नयन शर्मा का कहना है कि पिछले साल करीब डेढ़ महीने पहले 17 नवंबर को चीन के तिब्बत क्षेत्र में आए 6.4 तीव्रता के भूकंप के कारण ब्रह्मपुत्र नदी पर ये कृत्रिम झीलें बनी हैं। जिनमें तब से लेकर अबतक लगातार पानी का दबाव बढ़ता ही जा रहा है।

इतना ही नहीं जिस क्षेत्र में ये झीलें बनी है वहां पर आसपास करीब 100 ग्लेशियर भी हैं, जो तापमान बढ़ने पर पिघलते हैं जिससे झीलों में पानी की मात्रा के कई गुना ज्यादा बढ़ जाएगी और झीलों के टूटने का खतरा भी बढ़ जाएगा। नयन शर्मा की मानें तो जहां ये झीलें बनी हैं, वो जगह तिब्बत के शहर यंगची से करीब 139 किलोमीटर पर है। बताया जा रहा है कि अगर ये झीलें टूटती हैं तो इनसे निकलने वाले पानी से शियांग (अरुणाचल प्रदेश में) और ब्रह्मपुत्र (असम में) के किनारे रहने वाले लाखों लोग प्रभावित हो सकते हैं।

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ब्रह्मपुत्र नदी पर बनी झीलें अगर टूटती हैं तो करीब दो किलोमीटर से अधिक ऊंचाई से पानी गिरेगा जिसकी तीव्रता इतनी अधिक होगी कि कुछ ही घंटों में सकैड़ों किलोमीटर तक केवल पानी ही पानी नजर आएगा। आईआईटी के वैज्ञानिक प्रोफेसर नयन शर्मा के मुताबिक अभी झील में पानी लगतार बढ़ रहा है और सर्दी का मौसम होने से अभी हाल ही में कोई खतरा नहीं है। मगर दो से तीन महीने में ही ये झीलें बड़ा खतरा बन सकती हैं। उनका कहना है कि अगर इन झीलों से तबाही को कम करना है तो सरकार को तुरंत कुछ बड़े कदम उठाने होंगे। खतरे से निपटने के लिए चीन को साथ में लेकर काम करने होगा।

झीलों से पैदा हुए खतरे को कम करने के लिए उठाए जा सकते हैं ये कदम...

  • झीलों के जल स्तर को कम करने के लिए कंट्रोल ब्लास्टिंग तकनीक से छोटे-छोटे ब्लास्ट करके झीलों से पानी का स्तर कम किया जा सकता है।
  • झीलों के टूटने की हालात में इसकी तीव्रता को कम करने के लिए ब्लॉक रैम तकनीक का प्रयोग किया जा सकता है। इस तकनीक में बड़े-बड़े ब्लॉक रैम यानी बड़े विशालकाय पत्थर नदी में जगह जगह रख दिये जाते है जिससे अचानक पानी आने से उसकी तीव्रता काम हो जाती है।
  • झीलों पर सेटेलाइट से निगरानी रखना भी जरूरी है। इसके लिए सरकार को इसपर 24 घंटे निगरानी रखनी होगी जिससे झीलों में होने वाली हर गतिविधि पर निगरानी रखी जा सके।
  • झीलों की गहराई का पता लगाया जाना भी बहुत जरूरी है। लेजर आधारित "लिडार" तकनीक का प्रयोग कर इनकी गहराई का पता लगाया जा सकता है।

वैज्ञानिक नयन शर्मा का कहना है कि चीन को इससे ज्यादा नुकसान नहीं होगा मगर इन झीलों से भारत में असाम और अरुणाचल में सबसे ज्यादा तबाही हो सकती है। ये झीलें मार्च के महीने के आसपास तबाही की वजह बन सकती हैं। उनके मुताबिक वर्ष 2000 में भी ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी योवांग सांगपो में भी ऐसी ही झील बन गयी थी जिसके टूटने से भारी तबाही हुए थी। इस बार खतरा और ज्यादा बड़ा है। इसके लिए एक संयुक्त समिति का गठन कर इन झीलों पर अभी से निगरानी का काम शरू कर देना चाहिए। 

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