लिवर के मरीजों के लिए अच्छी खबर- IIT कानपुर ने बनाया बायो आर्टिफिशियल लिवर

संक्षेप:

  • जापान ने दिया हैं टेक्निकल सपोर्ट
  • स्वदेशी आइएलबीएस और डीबीटी ने भी किया हैं सहयोग
  • एनिमल मॉडल पर किया गया हैं सफल परीक्षण

कानपुरः लिवर की समस्या से जुझ रहे लोगों के लिए एक अच्छी खबर हैं। अब उन्हें लिवर की समस्या से परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी। क्योंकि आइआइटी ने बायो आर्टिफिशियल लिवर तैयार कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यह शोध लिवर सिरोसिस की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए वरदान साबित हो सकता है। इसमें अन्य कृत्रिम लिवर की तरह लिवर सेल मरते नहीं हैं, जिससे मरीजों को जल्द ही लाभ मिलेगा। आइआइटी के विशेषज्ञों ने चूहों और सुअरों पर सफल परीक्षण किया है, जबकि 200 मरीजों के खून में प्रयोग के बेहतर परिणाम आए हैं।

इसमें जापान के वैज्ञानिकों ने तकनीकी सहयोग दिया जबकि दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइसेंस (आइएलबीएस) और केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट आफ बायोलॉजी एंड टेक्नालॉजी (डीबीटी) के साथ मिलकर कृत्रिम लिवर तैयार किया गया। आइआइटी विशेषज्ञों ने इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेटेंट कराया है। आइआइटी के बायोलॉजिकल साइंस एंड बायो इंजीनियरिंग (बीएसबीई) विभाग के विशेषज्ञों के मुताबिक दुनिया भर में कृत्रिम लिवर पर 10-15 वर्ष से काम चल रहा है। कई मॉडल बनाए गए हैं, लेकिन उनमें सेल्स पैदा नहीं होते हैं।

वह केवल फंक्शन करता है जिससे संक्रमण की संभावना अधिक रहती है। नए बायो आर्टिफिशियल लिवर को इंस्टॉल करने से पहले लैब में उसके अंदर सेल्स प्रौलिफिरेट (पैदा करना) कराए जाते हैं। इससे रोगी शरीर में लगाने पर बेहतर परिणाम आते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक सुअर और चूहों पर प्रयोग में 90 फीसद खराब लिवर भी बायो आर्टिफिशियल लिवर के इस्तेमाल से सही हो गया। इसमें वास्तविक लिवर को आराम मिल गया, जबकि कृत्रिम सेल से काम चलता रहा।

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कुछ दिनों बाद वास्तविक लिवर 70 फीसद से अधिक काम करता मिला। इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइसेंस (आइएलबीएस) ने 200 रोगियों के खून को बायो आर्टिफिशियल लिवर पर फंक्शन कराया है। इसके परिणाम काफी सकारात्मक आए हैं। सेल्स मरने की बजाए जीवित रहे। साथ ही कृत्रिम लिवर एक तरह की डायलिसिस का भी काम करता है, जिसमें नुकसानदेह पदार्थ को बाहर निकाला जा सकता है।

इस तरह से काम करेगा लिवर

विशेषज्ञों के मुताबिक बायो आर्टिफिशियल लिवर को लिवर सिरोसिस के मरीजों के शरीर से जोड़ा जा सकेगा। इससे गड़बड़ हो चुके वास्तविक लिवर को ठीक होने का समय मिल सकेगा। तब तक बायो आर्टिफिशियल काम करेगा। इस दौरान एसजीपीटी, एसजीओटू और सीरम बिलीरूबिन की मात्रा सही हो जाती है। अगर पूरी तरह लिवर खराब हो गया है, तब भी कृत्रिम लिवर से तीन से चार माह तक काम चल सकता है। फिर उसके बाद लिवर ट्रांसप्लांट कराना पड़ेगा।

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