कर'नाटक': जानिए क्या है 'हॉर्स ट्रेंडिंग' और कैसे शुरू हुआ?

संक्षेप:

  • पॉलिटिक्स में क्या होती है `हॉर्स ट्रेडिंग`
  • कब से होता है भारतीय पॉलिटिक्स में इसका प्रयोग
  • कहां-कहां हैं दल-बदल के खिलाफ कानून

कर्नाटक में जारी सियासी तूफान के बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में राज्य में सरकार गठन के खिलाफ दायर याचिकाओं को लेकर सुनवाई हुई. इस मामले में कोर्ट ने कर्नाटक में शनिवार शाम चार बजे शक्ति परीक्षण करवाने के निर्देश दिए हैं. यानी अब कल फैसला होगा कि कर्नाटक में येदियुरप्‍पा सरकार रहेगी या नहीं. लेकिन इस रस्साकशी के बीच एक शब्द जो बार-बार अखबारों और ख़बरों की हेडलाइन बना रहा है, वो है `हॉर्स ट्रेडिंग`. आपने भी कर्नाटक के चुनाव के संदर्भ में यह शब्द सुना या पढ़ा होगा. तो हम आपको बताते है कि आखिर राजनीति में ये`हॉर्स ट्रेडिंग` होता क्या है?

`हॉर्स ट्रेडिंग` जिसका शाब्दिक अर्थ है `घोड़ों की बिक्री`. असल में इस शब्द की शुरुआत कैंम्ब्रिज डिक्शनरी से हुई थी. करीब 18वीं शताब्दी में इस शब्द का इस्तेमाल घोड़ों की बिक्री के दौरान व्यापारी करने लगे, लेकिन इसके साथ किस्से जुड़े कि इसके राजनीतिक मायने भी निकाले जाने लगे. 18वीं शताब्दी की शुरुआत यानी 1820 के करीब जब घोड़ों के व्यापारी अच्छी नस्ल के घोड़ों की खरीद-फरोक्त करते थे और कुछ अच्छा पाने के लिए किसी तरह के जुगाड़ या चालाकी के लिए जो तकनीक अपनाते थे, उसे ही हॉर्स ट्रेडिंग कहा गया. बताया जाता है कि इस दौरान व्यापारी अपने घोड़ों की कहीं पर छुपा देते थे, कहीं पर बांध देते थे या फिर किसी और अस्तबल में पहुंचा देते थे. फिर अपनी चालाकी, पैसों के लेन-देन के दमपर सौदा किया जाता था.

एक किस्सा ये भी...

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इसके अलावा पुराने जमाने में जब भारत के व्यापारी अपने कारिंदों को अरब देश में घोड़े खरीदने के लिए भेजते थे. तो वापस आते वक्त कुछ घोड़े मर जाते थे, लेकिन अपने मालिकों को संतुष्ट करने के लिए वो घोड़ों की पूंछ दिखाकर ही गिनती पूरी कर लिया करते थे. यानी 100 घोड़े खरीदे, तो 90 दिखाए बाकी 10 की पूंछे दिखाकर कहा कि वो तो मर गए. मालिक यकीन कर लेते थे. तो बाद में कारिंदों ने 100 के पैसे लेना शुरू किया और सिर्फ 90 ही घोड़े खरीदे. मतलब 10 घोड़ों का फायदा उठाना शुरू कर दिया. इसे भी हॉर्स ट्रेडिंग के किस्सों से जोड़ा गया.

पॉलिटिक्स में क्या होती है `हॉर्स ट्रेडिंग`

जब एक पार्टी विपक्ष में बैठे हुए कुछ सदस्यों को लाभ का लालच देते हुए अपने में मिलाने की कोशिश करती है, जहां यह लालच पद, पैसे या प्रतिष्ठा का हो सकता है, इस किस्म की विधायकों की खरीद फरोख्त को पॉलिटिक्स में हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है.

ऐसा उन स्थिति में होता है जब किसी भी एक पार्टी को सरकार बनाने के लिए बहुमत न मिला हो और उसे बहुमत सिद्ध करने के लिए बाहर से मदद चाहिए. इस लटके हुए फैसले को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए सभी पार्टियां यह कोशिश करती हैं कि किसी तरह से विपक्षी, निर्दलीय या अन्य छोटी पार्टियों के विधायक उन्हें समर्थन दे दें और उनकी सरकार बन जाए. इसके लिए साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग किया जाता है. चालाकी, पैसा, लाभ के पदों की वजह से यही हॉर्स ट्रेडिंग कहलाती है.

हालांकि कुछ लोग इसे `चाणक्य-नीति` मानकर इसे राजनीति का एक जरूरी हिस्सा भी मानते हैं. राजनीति की यही उठापटक इसे दिलचस्प लेकिन कूटनीतिक बनाती है. कर्नाटक के चुनावों में इस शब्द का प्रयोग कांग्रेस ने बीजेपी के लिए किया है. कांग्रेस का आरोप है कि बीजेपी अब उनके कुछ विधायकों को अपने साथ मिलाने के लिए गंदी राजनीति खेल रही है. फिलहाल कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी बीजेपी के येदियुरप्पा ने 104 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री की शपथ ली है. लेकिन जल्द ही उन्हें किसी भी तरीके से बहुमत साबित करना होता. यही कारण है बीजेपी जोड़-तोड़ में लगी हुई है.

इससे पहले गोवा चुनावों के समय कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि केंद्रीय सत्ता वाली यह पार्टी कांग्रेस के विधायकों को पैसे, SUV गाड़ियों और पदों का लालच दे रही है. गोवा में वोटों की गिनती से ये साफ था कांग्रेस ने 17 सीटें और बीजेपी ने 13 सीटें जीती थीं. बीजेपी ने लोकल पार्टियों की मदद से बहुमत सिद्ध कर दिया और सरकार बना ली थी.

कहां से आया ये शब्द

इस शब्द का प्रयोग पहले वाकई में घोड़ों की खरीद फरोख्त के संदर्भ में ही होता था. करीब 1820 के आस-पास घोड़ों के व्यापारी अच्छी नस्ल के घोड़ों को खरीदने के लिए बहुत जुगाड़ और चालाकी का प्रयोग करते थे. व्यापार का यह तरीका कुछ इस तरह का था कि इसमें चालाकी, पैसा और आपसी फायदों के साथ घोड़ों को किसी के अस्तबल से खोलकर कहीं और बांध दिया जाता था.

राजनीति में इस शब्द का कोई औचित्य नहीं होता है, लेकिन पिछले कुछ समय में इसका इस्तेमाल बढ़ा है. जब राजनीति में नेता दल बदलते हैं, या फिर किसी चालाकी के कारण कुछ ऐसा खेल रचा जाता है कि दूसरी पार्टी के नेता आपका समर्थन कर दें तब राजनीति में इसे हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है. भारत में इसे दल-बदलना, दल-बदलू भी कहते हैं. इसको लेकर अपने देश में कानून भी है.

कब से होता है भारतीय पॉलिटिक्स में इसका प्रयोग

माना जाता है कि भारत की राजनीति में इस शब्द और संदर्भ का प्रयोग 1967 से होता चला आ रहा है. 1967 के चुनावों में हरियाणा के विधायक गया लाल ने 15 दिनों के अन्दर ही 3 बार पार्टी बदली थी. आखिरकार जब तीसरी बार में वो लौट कर कांग्रेस में आ गए तो कांग्रेस के नेता बिरेंद्र सिंह ने प्रेस कांफ्रेस में कहा था कि `गया राम अब आया राम बन गए हैं.`

हालांकि भारत में इस दलबदली को रोकने के लिए कानून भी बनाया गया था. 1985 में राजीव गांधी ने संविधान के 52वें संशोधन में `दल-बदल विरोधी कानून` पारित किया था. इसके हिसाब से विधायकों को अपनी पार्टी बदलने की वजह से पद से निष्कासित किया जा सकता है. फिलहाल कर्नाटक के मामले में इस कानून के हिसाब से किसी भी पार्टी के लोगों की संख्या उनकी पार्टी की कुल संख्या के दो-तिहाई से अधिक नहीं हो सकते. ऐसा होने पर सभी को अयोग्य ठहराया जा सकता है.

कहां-कहां हैं दल-बदल के खिलाफ कानून

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में ही दल-बदल के खिलाफ कानून बनाए गए हैं. राजनीति कहीं की भी हो, उसमें बहुत सी कूटनीति हर देश में पाई जाती है. लेकिन ऐसे विधायकों के खरीदने और उनके बिकने के किस्से पाए जाते हैं. कुछ देश हैं जिन्होंने भारत की ही तरह इससे निपटने के लिए कानून बनाए हैं. इन देशों में बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका और केन्या जैसे विकासशील देश हैं. लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा कोई भी कानून किसी विकसित देश जैसे कनाडा, फ्रांस, जर्मनी या यूके में नहीं है.

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