कोर्ट के आदेश पर दलित मेधावी छात्रा को बीएचयू आईआईटी में मिला दाखिला, जज ने खुद दी थी छात्रा की फीस

संक्षेप:

  • लखनऊ पीठ के आदेश व फीस भुगतान के बाद एक दलित मेधावी छात्रा को बीएचयू आईआईटी में प्रवेश मिला।
  • मुंबई निवासी एक महिला व कई आईआईटियंस  समेत अन्य लोगों ने छात्रा की मदद की पेशकश की।
  • खुद कोर्ट के समक्ष पेश होकर गुहार लगाई।

लखनऊ- इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के आदेश व फीस भुगतान के बाद एक दलित मेधावी छात्रा को बीएचयू आईआईटी में प्रवेश मिल गया। मुंबई निवासी एक महिला व कई आईआईटियंस  समेत अन्य लोगों ने छात्रा की मदद की पेशकश की है। कोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार से पूछा है कि प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला पाने वाले गरीब विद्यार्थियों की पढ़ाई को क्या कोई योजना या कोष है?

न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह ने यह आदेश छात्रा संस्कृति रंजन की याचिका पर दिया, जिसने खुद कोर्ट के समक्ष पेश होकर गुहार लगाई थी। बीते सोमवार को बड़ी पहल करते हुए न्यायाधीश दिनेश कुमार सिंह ने याची छात्रा की फीस का खुद भुगतान किया था जो पिता की गंभीर बीमारी की वजह से तय समय में सीट आवंटन की फीस नहीं दे पाई थी। कोर्ट ने स्वेच्छा से छात्रा की सीट आवंटन की 15 हजार रुपये फीस का योगदान किया जो उसे अदालत के समय के बाद दे दी गई थी। साथ ही कोर्ट ने इस असाधारण मामले में बीएचयू प्रशासन को छात्रा की सीट संबंधी कारवाई के निर्देश भी दिए थे। दरअसल, जेईई एडवांस में अनुसूचित जाति श्रेणी में छात्रा ने 1469 वीं रैंक हासिल की। छात्रा को आईआईटी बीएचयू में पांच वर्षीय तकनीकी पाठ्यक्रम में सीट मिली।

हालांकि वह तय समय से पहले मात्र 15 हजार फीस की व्यवस्था नहीं कर सकी। उसके पिता को गंभीर किडनी की बीमारी है और उन्हें किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई है। छात्रा व उसके पिता ने कई बार संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकारी को अपने हालत बताकर फीस  जमा करने का समय बढ़ाने को लिखा इसके बावजूद जब  कोई जवाब नहीं आया तो छात्रा ने खुद कोर्ट की शरण ली। कोर्ट ने संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकारी व बीएचयू प्रशासन को निर्देश दिया था कि छात्रा को पांच वर्षीय तकनीकी कोर्स (गणित व कम्प्यूटिंग) में दाखिला दें। कहा कि अगर कोई सीट खाली न हो पाए तो छात्रा को इसी कोर्स में सुपर इमर्जेंसी सीट पर पढ़ने की व्यवस्था की जाए।

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सोमवार को याची छात्रा की तरफ  से कोर्ट को बताया गया कि उसे बीएचयू आईआईटी में दाखिला मिल गया है। साथ ही मुंबई की डॉ. सोनल चौहान ने उसकी पूरी पढ़ाई का खर्च उठाने को कहा है। अदालत ने उनके इस कार्य की सराहना की है। साथ ही यह भी कहा गया कि कई आईआईटियंस, वकीलों समेत अन्य लोगों ने छात्रा की पढ़ाई में मदद करने को कहा है। कोर्ट ने उनकी इस पेशकश की भी सराहना की है। अदालत ने केंद्र व राज्य सरकार से भी पूछा है कि जो विद्यार्थी जेईई, एर्नआईटी व क्लैट जैसे संस्थानों की प्रवेश परीक्षा पास करके गरीबी की वजह से उनकी फीस नहीं भर पाते हैं उनके लिए क्या कोई योजना या कोष है? कोर्ट ने यह जानकारी अगली सुनवाई (20 दिसंबर) के पहले पेश करने को कहा है।

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