अबू सलेम को उम्रकैद, जानिए कैसे बना सरायमीर का सरगना अंडरवर्ल्ड डॉन?

  • Thursday | 7th September, 2017
  • crime
संक्षेप:

  • अबू सलेम के अंडरवर्ल्ड डॉन बनने का सफर
  • सरायमेर से शुरु हुई थी अपराध की ये कहानी
  • खौफ का दूसरा नाम है अबू सलेम

NYOOOZ आज आपको बताने जा रहा है कि कैसे सरायमीर का एक छोटा से सरगना ने अंडर वर्ल्ड डॉन तक का सफर तय किया।  1993 मुम्बई ब्लास्ट मामले में सलेम को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गयी है। 

पहले जानिए क्या हुआ कोर्ट में

12 मार्च साल 1993 को मुंबई में हुए सीरियल बम ब्लास्ट में विशेष अदालत स्पेशल टेरेरिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (टाडा) ने सजा का ऐलान कर दिया. अबु सलेम और मुस्तफा डोसा इस मामले में मुख्य आरोपी थे. मुस्तफा की 28 जून को हार्टअटैक से मौत हो गई थी. मुंबई में हुए इन 13 बम धमाकों में 257 लोग मारे गए थे. बता दें कि फैसला सुनाते समय सभी दोषी धार्मिक किताबें पढ़ रहे थे. इस दौरान फैसला आने में थोड़ा समय लगा. जज ने अबु सलेम को भी उम्र कैद की सजा सुनाई. अबु सलेम को एक केस में दो लाख रुपये का जुर्माना और टाडा एक्त के तहत 25 साल की सजा.

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रिपोर्ट के मुताबिक, सजा सुनाते समय अबु सलेम मुस्कुरा रहा था। जज ने तीसरे आरोपी रियाज सिद्दिकी को 10 साल की सजा सुनाई गई। जज ने करीमुल्लाह को उम्र कैद की सजा सुनाई। वह टाइगर मेमन का करीबी है। हथियार सप्लाई करने का दोषी ठहराया गया. उसपर 7.5 लख रुपये का जुर्माना भी लगा है। इससे पहले अदालत 16 जून को कोर्ट ने अबु सलेम, मुस्तफा दौसा, उसके भाई मोहम्मद दोसा, फिरोज अब्दुल राशिद खान, मर्चेंट ताहिर और करीमुल्लाह शेख को दोषी करार दिया था।

कब हुआ था ब्लास्ट
12 मार्च, 1993 में हुए मुंबई बम धमाकों में 257 लोग मारे गए थे और 713 घायल हुए थे. ये धमाके बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, एयर इंडिया बिल्डिंग और `सी रॉक` जैसे होटल सहित शहर की 12 जगहों पर हुए थे। सलेम के अलावा साल 2005 में पुर्तगाल से दोसा, करिमुल्लाह खान, फिरोज अब्दुल राशिद खान, रियाज़ सिद्दीकी, ताहिर मर्चेंट और अब्दुल कय्यूम को भी प्रत्यर्पित किया गया था.

बचपन में आजमगढ़ की गलियों में कंचा खेलकर पला-बढ़ा `सलिमवा` आज अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम बन चुका है। इसके पीछे की रियालिटी बहुत रोमांचक है। आजमगढ़ से 35 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा सरायमीर अंडरवर्ल्ड की दुनिया में एक चर्चित नाम है। और हो भी क्यों नहीं यहीं की गलियों में कंचा खेलकर पला बढ़ा एक साधारण सा लड़का अब डॉन बन चुका है। जी हां यहां बात हो रही है अंडरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम की जिसे बचपन में सब सलिमवा के नाम से बुलाते थे।

1960 के दशक में पठान टोला के एक छोटे से घर में अधिवक्ता अब्दुल कय्यूम के यहां दूसरे बेटे अबू सालिम का जन्म हुआ। वकील होने की वजह से अब्दुल कय्यूम का इलाके में काफी दबदबा था, लेकिन एक सड़क हादसे में हुई मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई। घर की खराब माली हालत देख अबू सालिम को यहीं एक साइकिल ठीक की दुकान में नौकरी करनी पड़ी। वह काफी दिनों तक यहां पर मोटरसाइकिल और साइकिल के पंक्चर ठीक करता रहा। कुछ दिनों तक उसने नाई का भी काम किया और लोगों की दाढ़ी भी बनाई।

इतने से उसके परिवार का पालन पोषण नहीं हो पा रहा था जिससे ऊबकर वह दिल्ली चला गया और वहां पर ड्राइवर की नौकरी करने लगा। दिल्ली से वह मुंबई पहुंचा और कुछ दिनों तक डिलीवरी ब्वॉय के रूप में काम करने के बाद वह दाऊद के छोटे भाई अनीस इब्राहीम के संपर्क में आया।

अनीस से मुलाकात के बाद अबू सलेम की जिंदगी बदल गई और यहीं से शुरू हुई `सलिमवा` की डॉन अबू सलेम बनने की कहानी। 12 मार्च 1993 मुंबई में अलग जगहों पर 12 बम विस्फोट हुए, जिसमें करीब 257 लोगों की मौत हो गई और 713 अन्य लोग घायल हुए। इस बम ब्लास्ट में अबू सलेम का नाम आया। पूरे सरायमीर को शक की निगाह से देखा जाने लगा। इससे उसकी मां सालों तक बीड़ी बना कर खर्च चलाने वाली माँ ने अपनी आखिरी सांस तक अबू सलेम को मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़ने और 1993 के सीरियल बम धमाकों में शामिल होने के लिए माफ नहीं किया था।

मां की मौत के बाद अबू सलेम आजमगढ़ आया था। स्‍थानीय लोग बताते हैं कि अबू सलेम काफी डरा हुआ लग रहा था। एक भी मिनट मुंबई पुलिस के जवानों के पास हटा नहीं। उसे यूपी पुलिस पर भी भरोसा नहीं था। उसके खिलाफ आजमगढ़ में भी दहेज उत्पीड़न का ए‌क मामला चल रहा है। वर्ष 1998 में अबू सलेम ने दुबई में अपना किंग्स ऑफ कार ट्रेडिंग का कारोबार शुरू किया। इसी कंपनी के स्टेज शो के दौरान ही उसकी दोस्ती फिल्‍म अभिनेत्री मोनिका बेदी से हुई। कहते हैं कि दोनों एक दूसरे को बेपनाह मोहब्बत करने लगे। यहां तक कि दोनों के बीच निकाह की भी खबर आई। हालांकि, मोनिका और अबू ने सार्वजनिक रूप से कभी भी इन रिश्‍तों को नहीं स्‍वीकारा।

अबू सलेम पुर्तगाल से 11 नवंबर, 2005 को भारत प्रत्यर्पित किए जाने तक वह फरार था। तब से लेकर अब तक विभिन्न मामलों में उसपर मुकदमा चल रहा है और मुंबई तथा ठाणे की जेलों में बंद रहा है। उस पर जेल में दो बार जानलेवा हमला भी हो चुका है। अबू सलेम पर जून, 2013 नवी मुंबई के तलोजा जेल में गोली भी चली थी। इसमें वो बच गया। वर्ष 1993 में मुंबई बम विस्फोट के बाद माफिया डॉन अबू सलेम पुलिस से छिपने के लिए अपने गृह जिले आजमगढ़ भाग आया था।

यहां उसने अपने `शूटरों` का ऐसा नेटवर्क खड़ा किया जिससे पूरे देश में आजमगढ़ कुख्यात हो गया। आगे की स्लाइड में जानें कैसे काम करता था सलेम का नेटवर्क आजमगढ़ में गाड़ियों को ठीक गुजारा करने वाला अन्डरवर्ल्ड डॉन अबू सलेम अच्छी कमाई की तलाश में दिल्ली के रास्ते मुंबई पहुंचा। कुछ दिनों तक डिलीवरी ब्वाय के रूप में काम करने के बाद उसकी मुलाकात दाऊद के छोटे भाई अनीस इब्राहीम से हुई।

पुर्तगाल ने प्रत्यर्पण संधि के तहत सौंपा था अबू सलेम को

सलेम और उसकी महिला मित्र अभिनेत्री मोनिका बेदी को तीन साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद पुर्तगाल ने 11 नवंबर, 2005 को भारत को सौंपा था। पुर्तगाल ने कुछ शर्तों पर प्रत्यर्पण को मंजूरी दी थी। प्रत्यर्पण की शर्त के अनुसार सलेम को दोषी पाये जाने पर न तो मौत की सजा दी जायेगी और न ही उसे 25 साल से अधिक हिरासत में रखा जाएगा। अबू सलेम के प्रत्यर्पण के समय भारत ने पुर्तगाल को इन शर्तों के पालन को आश्वासन दिया था। 

 

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