Birthday Special: जब यौन शिक्षा से जुड़ा केस हार गए थे अंबेडकर

संक्षेप:

  • आंबेडकर की 127वीं जयंती
  • जानिए कौन से केस हार गए थे
  • भरना पड़ा था 200 रुपए जुर्माना

लखनऊः 14 अप्रैल को संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की 127वीं जयंती है। इस मौके पर पूरा देश उन्हें नमन करते हुए उनके आदर्शों पर चलने की कसमें खा रहा है। आधुनिक विचार और समाज की नीव रखने में उनका योगदान भी कम नहीं है। इन्हीं में से एक है रघुनाथ धोंडो कर्वे का केस, जिसे बाबासाहेब बी.आर आंबेडकर ने लड़ा और हार गए। आंबेडकर जयंति (14 अप्रैल) के मौके पर जानिए इस केस के बारे में।

20वीं सदी की शुरुआत में महाराष्ट्र के रहने वाले रघुनाथ धोंडो कर्वे अपनी पत्रिका "समाज स्वास्थ्य" के लिए उस वक्त के रूढ़िवादियों के निशाने पर रहते थे। कर्वे अपनी पत्रिका में यौन शिक्षा, परिवार नियोजन, नग्नता, नैतिकता जैसे उन विषयों पर लिखा करते थे जिस पर उस दौर में भारतीय समाज में खुले तौर पर चर्चा नहीं हुआ करती थी। वो तर्कसंगत और वैज्ञानिक बातें लिखते। इस दौरान उनके कई दुश्मन बन गये। लेकिन उन्होंने लिखना जारी रखा। 1931 में कर्वे को पहली बार पुणे में रूढिवादी समूह ने उनके एक लेख `व्यभिचार के प्रश्न` के लिए अदालत में घसीटा। कर्वे को गिरफ्तार किया गया। दोषी ठहराए जाने के बाद 100 रुपए जुर्माना भी लगा। हाईकोर्ट में जज ने उनकी अपील खारिज कर दी।

दूसरी बार हुए गिरफ्तार

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फरवरी 1934 में कर्वे दोबारा गिरफ्तार किए गए। इस बार समाज स्वास्थ्य के गुजराती संस्करण में पाठकों द्वारा निजी यौन जीवन के बारे में सवाल के जवाब दिए। इस लेख में उन्होंने प्रश्न हस्तमैथुन और समलैंगिकता के विषय में प्रश्नों के खुलकर उत्तर दिए। रूढिवादियों को अच्छा नहीं लगा और उन पर फिर केस हुआ। इस बार उनका केस बी.आर.आंबेडकरने लड़ा। ये वो वक्त था जब बाबासाहेब पुना पेक्ट और गोलमेज सम्मेलन में भाग ले चुके थे।  मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यामूर्ति मेहता के सामने दलील रखी गई। बीबीसी से बातचीत में मराठी नाटककार प्रोफेसर दल्वी बताते हैं कि न्यायाधीश ने उनसे पूछा कि हमें इस तरह के विकृत प्रश्नों को छापने की आवश्यकता क्यों है और यदि इस तरह के प्रश्न पूछे जाते हैं तो उनके जवाब ही क्यों दिये जाते हैं?

ये दी दलील

केस में बीआर. आंबेडकरने दलील दी कि यौन शिक्षा और यौन संबंध समाज स्वास्थ्य का विषय है। ऐसे में आम पाठक उसके विषय में प्रश्न पूछता है तो उसका जवाब क्यों नहीं दिया जाना चाहिए। अगर कर्वे को इसका उत्तर नहीं देना दिया जाए तो इसका मतलब है पत्रिका को बंद कर दिया जाना चाहिए। आंबेडकरने दलील दी कि कोई यौन मामलों पर लिखता है तो इसे अश्लील नहीं कहा जा सकता। हर यौन विषय को अश्लील बताने की आदत को छोड़ दिया जाना चाहिए। इस मामले में हम केवल कर्वे के जवाबों पर नहीं सोच कर सामूहिक रूप से इस पर विचार करने की जरूरत है।  हालांकि, तर्क अदालत में विफल रहे और आंबेडकर ये लड़ाई अदालत में हार गए।आखिर में कोर्ट ने अश्लीलता के लिए कर्वे पर एक बार फिर 200 रुपये का जुर्माना लगाया।

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