अयोध्या केस : मध्यस्थता पर SC ने फैसला सुरक्षित रखा, कहा- भावनाओं से जुड़ा है मामला

संक्षेप:

  • अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा
  • सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से मेडिएशन के लिए पैनल के नाम सुझाने को कहा है
  • जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कोर्ट का फैसला एक बाध्यकारी चरित्र है. मध्यस्थता में हम कैसे लोगों को बाध्यकारी बना सकते हैं.

नोएडा: अयोध्या मामले में मध्यस्थता पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से मेडिएशन के लिए पैनल के नाम सुझाने को कहा है. अयोध्या मामले के अलावा सुप्रीम कोर्ट आज राफेल मामले में रिव्यू पिटिशन पर भी सुनवाई करेगा.

पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया था कि दोनों पक्षकार बातचीत का रास्ता निकालने पर विचार करें. अगर एक फीसदी भी बातचीत की संभावना हो तो उसके लिए कोशिश होनी चाहिए.संविधान पीठ ने कहा था कि ये विवाद दो धर्मों की पूजा अर्चना से जुड़ा हुआ है लिहाजा इसे कोर्ट द्वारा नियुक्त किये गए मध्यस्थ के जरिये सुलझाने की पहल की जानी चाहिए. पीठ ने कहा था कि मुख्य मामले की सुनवाई 8 हफ्ते के बाद होगी तब तक आपसी समझौते से विवाद को सुलझाने का एक प्रयास किया जा सकता है. इस पर रामलला विराजमान और हिन्दू महासभा ने विरोध जताया था, जबकि मुस्लिम पक्ष और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा था कि वो आपस में बातचीत करने के लिए तैयार है.


- रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया अयोध्या का मतलब राम जन्मभूमि. यह मामला बातचीत से हल नहीं हो सकता. साथ ही कहा कि मस्जिद किसी दूसरे स्थान पर बन सकती है. इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि आप अपना यह पक्ष मध्यस्थता के दौरान रख सकते हैं. इस पर रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया कि फिर मध्यस्थता का मतलब क्या है?

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- रामलला विराजमान की ओर से सीएस वैद्यनाथन बहस कर रहे हैं. रामलला विराजमान की तरफ से कहा गया कि हाईकोर्ट ने इस मामले में आपसी बातचीत से विवाद को हल करने की कोशिश की थी लेकिन नहीं हो पाया था.

- BJP नेता सुब्रमण्यम स्वामी: मध्यस्थता के कुछ पैरामीटर हैं और उससे आगे नहीं जा सकता. उन्होंने 1994 में संविधान पीठ के फैसले का जिक्र किया, जिसमें पासिंग रिमार्क था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अंदरूनी हिस्सा नहीं है.

- हिन्दू पक्ष ने कहा कि मान लीजिये की सभी पक्षों में समझौता हो गया तो भी समाज इसे कैसे स्वीकार करेगा? इस पर जस्टिस बोबड़े ने कहा कि अगर समझौता कोर्ट को दिया जाता है और कोर्ट उस पर सहमति देता है और आदेश पास करता है. तब वो सभी को मानना ही होगा.

- जस्टिस चंद्रचूड़: कोर्ट का फैसला एक बाध्यकारी चरित्र है. मध्यस्थता में हम कैसे लोगों को बाध्यकारी बना सकते हैं.

- जस्टिस बोबड़े: जब कोई पार्टी किसी समुदाय की प्रतिनिधि होती है, चाहे वह प्रतिनिधि के मुकदमे में कोर्ट की कार्यवाही हो या मध्यस्थता हो. उसे बाध्यकारी होना चाहिए.

 

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