City Star: लखनऊ के शरद बना रहे भिखारियों को कर्मयोगी

संक्षेप:

  • 22 लोग बेग्गींग छोड़ काम कर रहे हैं
  • भिखारियों को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य
  • जिलों के भिखारी केंद्रों में कोई भिखारी नहीं

लखनऊः समाज में रहने वाले लोगों में हमने अक्सर देखा है कि एक बात जरूर कहते हैं कि मैं समाज के लिए कुछ करना चाहता हूं या चाहती हूं लेकिन कर नहीं पा रही क्योंकि किसी का सहयोग नहीं है। अक्सर हम देखते हैं कि कुछ लोग रेड लाइट पर भीख मांगते बच्चों को देखकर कहते हैं कि मेरा बस चले तो इन सबको मदद करूं और बस कुछ ही समय बाद सरकार और नेताओं, अधिकारियों को कोसने लगते हैं लेकिन प्रयास कुछ नहीं करते।

लेकिन कहते हैं न कि एक हाथ की पांचो उंगलियां एक जैसी नहीं होती इसी समाज में कुछ इतिहास रचने वाले भी होते हैं। आपको बात दें कि लखनऊ के शरद पटेल भी समाज में भिखारियों को एक नई दिशा में ले जाकर इतिहास रच रहे हैं। आखिर कैसे इनके दिमाग में भिखारियों के लिए कुछ करने की बात आयी इस बात को NYOOOZ ने शरद से खास बातचीत में जाना।

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पेश हैं बातचीत के कुछ अंश:

NYOOOZ: आखिर भिखारियों के लिए कुछ करने की सोच कैसे आई?

शरद: मैं रहने वाला हरदोई का हूं तो समय-समय पर अपने घर जाता था तो चारबाग़ स्टेशन के पास एक नत्था होटल है जिसके करीब कई भिखारी बैठे रहते थे और नशीले पदार्थों का सेवन करते थे। तो उनको देखकर लगा कि इनके खाने की कुछ व्यवस्था करनी चाहिये। लेकिन साल 2013 में जब हमने मास्टर ऑफ सोशल वर्क में एडमिशन लिया।तो मैं रोज यूनिवर्सिटी जाता था उस समय एक भिखारी ने कहा कि 10 रुपये दे दो कुछ खाना है। मैंने उसे पैसे नहीं दिए बल्कि ले जाकर दुकान पर खाना खिलवाया। मेरे दिमाग में यह तो पहले से ही था कि खाने की भिखारियों के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए। लेकिन एक दिन मुझे लगा कि खाना देना इस समस्या का हल नही है। मुझे लगा कि भिखारियों को ट्रेन करना चाहिए जिससे कि वह आत्मनिर्भर हो सकें। इसी सोच के साथ हमने 2 अक्टूबर 2014 में भिक्षा वृत्ति मुक्ति अभियान चलाया जो आज तक चल रहा है।

NYOOOZ: ज़रा अपने इस अभियान के बारे में बताएं कि कैसे काम कर रहा है और कितने लोग जुड़े हैं?

शरद: साल 2014 में जब हमने शुरू किया उस समय मनहेंद्र प्रताप और जयदीप सिंह जो कि मेरे साथ ही फाइनल ईयर कर स्टूडेंट थे। बोले कि पहले हिमने यह जानने की कोशिश की कि आखिर यह क्यों भीख मांगते हैं। हमने डेटा को कलेक्ट करने की कोशिश की और आरटीआई भी डाली। तो पता चला कि यूपी ने 7 ज़िलों में भिखारियों के लिए बेगर फॉर्म है लेकिन किसी मे भी कोई भिखारी नहीं है। हमने देखा कि वहां पर अधिकारियों और कर्मचारियों को अच्छी सैलरी मिल रही है। इस कार्य के बाद हमने भिखारियों से रिलेशन बनाने का कार्य किया है। रिलेशन बनाने कर बाद हमने उनके कुछ काम करवाने शुरू किए जैसे आधार बनवाना और पेंशन दिलवाना।

NYOOOZ: अभी तक आपने क्या कार्य किया और बाहर से क्या सहायता मिली?

शरद: हमने लगभग 30 भिखारियों का इलाज करवाया। ये करना हमने 2014 से शुरू किया, बड़ी बात तो ये है कि हमे सरकार से कोई मदद नही मिली। मदद नहीं मिली तो हम भिखारियों के लिए चंदा करते थे। इसके अलावा कई भिखारियों के राशनकार्ड और आधारकार्ड बनवाये। लेकिन कुछ और करने के लिए आगे बड़े तो कोई सपोर्ट नही मिला सरकार से लेकर जिला अधिकारी तक। हमारे प्रयास से 22 लोग बेग्गींग छोड़कर छोटे छोटे कार्य कर रहे हैं जैसे 5 लोग रिक्शा चला रहे है यह प्रयास भी हमारा ही था।

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