महाभियोग प्रस्तावः उपसभापति के फैसले के खिलाफ SC में अपील करेगी कांग्रेस

संक्षेप:

  • `सभापति के फैसले से लोगों का विश्वास चकनाचूर हुआ है`
  • कानून के जानकारों से राय लिए बिना नोटिस को खारिज किया
  • जांच समिति फैसला करती कि आरोप साबित होते हैं या नहीं

लखनऊः प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू द्वारा खारिज किये जाने के फैसले को `असंवैधानिक और गैरकानूनी` करार देते हुए कांग्रेस ने आज कहा कि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करेगी. पार्टी ने यह भी उम्मीद जताई कि सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने पर इससे प्रधान न्यायाधीश का कोई लेनादेना नहीं रहेगा और इसके संवैधानिक पहलुओं पर गौर किया जाएगा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा, `सभापति ने कानून के जानकारों से राय लिए बिना इस नोटिस को खारिज कर दिया. यह फैसला असंवैधानिक और गैरकानूनी है` उन्होंने कहा कि जांच समिति फैसला करती कि आरोप साबित होते हैं या नहीं. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार नहीं चाहती कि इसकी जांच हो. सरकार जांच को दबाना चाहती है. सरकार का रुख न्यायपालिका को नुकसान पहुंचाने वाला है. उन्होंने कहा कि सभापति नायडू के फैसले से लोगों का विश्वास चकनाचूर हुआ है. उन्होंने कहा, ` हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे. हमें भरोसा है कि जब याचिका दायर होगी तो इससे प्रधान न्यायाधीश का कुछ लेनादेना नहीं होगा.`

दोनों पार्टियां राजनीति कर रही हैं: शिवसेना

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शिवसेना नेता अरविंद सावंत ने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "दोनों पार्टियां राजनीति कर रही हैं. महाभियोग नोटिस को जिस तरह से खारिज किया गया है, वह भी राजनीतिक कदम है. उन्हें इंतजार करना चाहिए था, नोटिस को खारिज करने के लिए ऐसी जल्दबाजी दिखाने की जरूरत नहीं थी."  

आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर आंकने वाले: नायडू

उधर, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ विक्षप की ओर से दिए गए महाभियोग का नोटिस खारिज करते हुए राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने कहा कि प्रस्ताव में न्यायमूर्ति के खिलाफ लगाए गए आरोप न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमतर आंकने वाले हैं. नायडू ने इस प्रस्ताव को नामंजूर करते हुये अपने आदेश में कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ लगाये गये प्रत्येक आरोप के प्रत्येक पहलू का विश्लेषण करने के बाद पाया कि आरोप स्वीकार करने येाग्य नहीं हैं. उन्होंने आरोपों की विवेचना के आधार पर आदेश में लिखा ‘‘इन आरापों में संविधान के मौलिक सिद्धातों में शुमार न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कम करने वाली प्रवृत्ति गंभीर रूप से दिखती है.’’

नायडू ने कहा कि वह इस मामले में शीर्ष कानूनविदों, संविधान विशेषज्ञों, संसद के दोनों सदनों के पूर्व महासचिवों और देश के महान्यायवादी के. के. वेणुगोपाल, पूर्व महान्यायवादी के. पारासरन तथा मुकुल रोहतगी से विचार विमर्श के बाद इस फैसले पर पहुंचे हैं. उन्होंने विपक्षी सदस्यों द्वारा पेश नोटिस में खामियों का जिक्र करते हुये कहा कि इसमें सदस्यों ने जो आरोप लगाये हैं वे स्वयं अपनी दलीलों के प्रति स्पष्ट रूप से अनिश्चिचत हैं.

उन्होंने कहा कि सदस्यों ने न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ कदाचार के आरोप को साबित करने के लिये पेश किए गए पहले आधार में कहा है, ‘‘प्रसाद एजूकेशन ट्रस्ट में वित्तीय अनियमितता के मामले में प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि प्रधान न्यायाधीश भी इसमें शामिल रहे होंगे.’’ इस आधार पर सदस्यों ने कहा कि देश के प्रधान न्यायाधीश को भी मामले की जांच के दायरे में रखा जा सकता है.

नायडू ने आरोपों की पुष्टि के लिए इसे अनुमानपरक आधार बताते हुए कहा कि देश के प्रधान न्यायाधीश को पद से हटाने की मांग करने वाला प्रस्ताव महज शक और अनुमान पर आधारित है. जबकि संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत न्यायाधीश को पद से हटाने के लिए कदाचार को साबित करने वाले आधार पेश करना अनिवार्य शर्त है. इसलिये पुख्ता आधारों के अभाव में यह स्वीकार किए जाने योग्य नहीं हैं.

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