क्रिकेट ने खेल को हड़प लिया, सियासत ने संस्था को

संक्षेप:

  • क्रिकेट का जुनून भारतीयों के सर चढ़ कर बोलता है
  • सरकार का भी सौतेला रवैया खेलों के प्रति रहा है
  • कप्तान विराट कोहली को रायडू पसंद नहीं थे

By: मदन मोहन शुक्ला

क्रिकेट का जुनून भारतीयों के सर चढ़ कर बोलता है। अक्सर क्रिकेट के मैदान पर भारतीय दर्शक अजूबी वेश -भूषा एवं विभिन्न भाव-भंगिमा के साथ तैनात रहता है अपने क्रिकेट के भगवान का खेल देखने के लिए। ज्यों-ज्यों खेल आगे बढ़ता है अगर भारत जीत की ओर है तो जूनून तूफानी हो जाता है, अफ़सोस भारत अगर हार रहा है दर्शक के साथ-साथ पूरा देश शोक में डूब जाता है। मानों कोई गमी हो गई हो। माशा-अल्लाह अगर मैच पाकिस्तान से हो तो देश की जीत , मानो इस्लामाबाद को फ़तह कर लिया हो और अगर हार गए तो मानो कश्मीर  हाथ से निकल गया हो तो यह है भारतीयों का क्रिकेट प्रेम।

लेकिन हमारे यह क्रिकेट के भगवान अपने निजी स्वार्थ के लिए 123 करोड़ जनता की भावनाओं के साथ कैसे खिलवाड़ करते है इसका एक उदाहरण जब 2017 में चैंपियन ट्रॉफी के बीच में मुख्य कोच अनिल कुंबले और विराट कोहली में तनातनी चल रही थी और क्रिकेट एडवाइजरी कमेटी की सलाह को दरकिनार करते हुए विराट की बात को माना गया था और रवि शास्त्री को कोच बनाया गया था तब सी0ओ0ए0 क्या कर रहा था। इस वर्ल्ड कप की हार की नींव उसी दिन पड़ गयी थी क्योंकि भारत के कप्तान को लगने लगा था कि जब वह कोच चुन सकता है तो फिर अंतिम एकादश को चुनने से कौन रोक सकता है। उस समय के क्रिकेट के एक दिग्गज ने तंज़ कसते हुए  दैनिक जागरण से एक इंटरव्यू में कहा था कि कल कप्तान कोई बड़ी बात नहीं चयनकर्ता को भी चुनने लगे।

ये भी पढ़े : मुजफ्फरनगर: 26 फरवरी से होगा डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट लीग का आयोजन


लेकिन दर्शक के लिए क्रिकेटर भगवान ही है तभी तो धोनी के सेमीफाइनल में रन आउट होने पर दो लोगो ने अपनी जान गवां दी। क्रिकेट के इस जूनून ने किस तरह दूसरे खेलों जिसमें फुटबाल, हॉकी, टेनिस, वॉलीबॉल और एथेलीट से जुड़े खेलों को गर्त में पंहुचा दिया है और सरकार का भी सौतेला रवैया इन खेलों के प्रति रहा है । 2019-20 का स्पोर्ट्स का बजट 2216 करोड़ था जो पिछले बजट से मात्र 200 करोड़ ही ज्यादा है कमोबेश अगर बी0सी0सी0आई0 की कमाई का आकलन करे तो एक साल में इससे ज्यादा कमाई कर लेता है और तो और सरकार भी इस कमाई की प्रति नरमी बरतती है टैक्स में छूट की सुविधा दे रखी है।

भारत सेमीफाइनल में हार गया पूरा देश शोक में डूब गया। ट्वीटर पर संवेदना और ढाढ़स दिलाने की मानो होड़ लग गयी ,कोई भी पीछे नहीं।लेकिन काश ऐसा जूनून दूसरे खेलों के प्रति होता।सवाल उठता है भारत हारा या खेल? ठीक समानांतर भारतीय एथेलीट अपने बलबूते उभर कर आता है पर हैसियत नहीं।हारी हुई टीम के विराट और धोनी के वैभव के सामने उसकी उपलब्धि बौनी साबित होती है।

स्टार धाविका दुती चंद जिसने इटली के नेपोली में वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में गोल्ड मैडल जीत कर इतिहास रच दिया और विश्व के इस खेल में गोल्ड मैडल जितने वाली पहली महिला बन गई लेकिन यह उपलब्धि क्रिकेट के शोर में दब कर रह गयी। जब भारत क्रिकेट में हारा तो 100 ट्वीट क्रिकेट टीम को ढाढ़स दिलाने और संवेदना व्यक्त करने में किये गए। यह 100 ट्वीट देश की मानी जानी हस्तियों के है। वहीं इस स्टार धाविका की उपलब्धि पर केवल 11 ट्वीट। उसमें पीएम, राष्ट्रपति,खेल मंत्री व् चंद आदिवासी बेल्ट के मुख्यमंत्रियों के,बाकी सामान्य व्यक्ति के थे। वही कहावत है समर्थवान का साथ भगवान भी देता, इन्सान दे रहा है तो कौन सी बड़ी बात है ।

क्रिकेट खिलाड़ियों की आमदनी की अगर बात करे तो 2018-19 में कुल कमाई 1800 करोड़ , विराट कोहली की ही केवल कमाई 171 करोड़ रही।यह केवल क्रिकेट से है। विज्ञापन अन्य से कमाई सो अलग। बी0सी0सी0आईं0विराट ,रोहित शर्मा को 7 करोड़ सालाना एवं धोनी को 5 करोड़।टीम 11 पर कुल 55 से 57 करोड़ का खर्चा आता है। सारे भारतीय टीम के क्रिकेटर की जो कमाई होती है वह अन्य खेलों के सारे खिलाड़ियों की कुल कमाई का चार गुना होती है। क्रिकेट का खिलाड़ी अगर पहले 11 में नहीं है तब भी वह सालाना 11 करोड़ तक कमा लेता है।

अब ज़रा सरकार द्वारा अन्य खेलों के लिए आवंटित बजट का संज्ञान लेते हैं तो 2019-20 के लिए नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन को पिछले बजट से 13 लाख कम यानि 245 करोड़, स्पोर्ट्स ऑथरिटी ऑफ़ इंडिया को 450 करोड़, नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फण्ड मात्र 70 करोड़, खिलाड़ियों को खेल के लिए प्रोत्साहित करने के लिए राशि 411 करोड़। खेलो इंडिया के लिए बजट 601 करोड़, 50 करोड़ की वृद्धि। राज्य,नेशनल एवं कॉलेज स्तर पर इंसेंटिव का फण्ड 230 करोड़। अगर क्रिकेट के बजट से तुलना करें तो यह मात्र 6 महीने के बजट के बराबर होगा। जो बजट अन्य खेलों के लिए आवंटित है उसका 40 फीसदी तो अधिकारियों पर खर्च हो जाता है।

अब भारत ने फाइनल नहीं खेला लॉर्ड्स के मैदान में, ऐसे में बड़ी संख्या में लोग फाइनल देखने नहीं पहुंचे फिर विज्ञापन कौन देता?सीधे-सीधे कमाई में 150%की गिरावट आई होगी।

आंकड़ों की नज़र से देखें स्टार स्पोर्ट्स ने 2015 से 2023 तक प्रसारण राईट 1200 करोड़ में खरीद रखा है इसके एवज में विज्ञापन मुफ्त में मिलता है। कमाई 1500 करोड़ की होने की है। आई पी एल से 2500 करोड़। विज्ञापन अगर भारत खेल रहा है तो 10 सेकंड का 20 लाख,अन्य देश 10 सेकंड का 6 लाख, अगर पाकिस्तान भारत के खिलाफ है तो 10 सेकंड का 30 लाख। फाइनल में भारत के न होने पर केवल 10-12 लाख ही मिले होंगे। इतना अपार धन स्टेक पर है फिर भी भारतीय क्रिकेट अंदरूनी राजनीती का शिकार है जिसकी परिणीति भारत के सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से हार से हुई। कारण खिलाड़ियों के चुनाव में एक व्यक्ति की मनमानी। 2015 वर्ल्ड कप के बाद से ही भारतीय टीम चौथे नंबर के बल्लेबाज को खोज रही थी जो अबांती रायडू पर जाकर पूरी होती है न्यूज़ीलैंड के खिलाफ़ वेलिंग्टन में 3 फरवरी को भारत के चार विकेट 18 रन पर गिर चुके थे ।चौथे नंबर पर उतरे रायडू ने 113 गेंदों पर 90 रन की पारी खेलकर भारत को जीत दिलाई । लेकिन सेमीफाइनल में चौथे नंबर पर रायडू की कमी हार का कारण बनी। इसी तरह मोहम्मद शमी जो अफगानिस्तान के खिलाफ संकट मोचक बन कर आये, हारा हुआ मैच जिताया। मैच में हैट्रिक लेकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया लेकिन न्यूज़ीलैंड के खिलाफ न खेलना आश्चर्यचकित करता है।

कप्तान को रायडू पसंद नहीं था। रायडू जानता था इस कप्तान के रहते कभी भी टीम में वापसी नहीं होगी लिहाज़ा सन्यास लेने की घोषणा कर दी।कप्तान विदेश में पिच को समझने, अंतिम एकादश का सही चयन , टॉस जीतकर सही फैसला करने में असफल रहे। स्थिति यहाँ तक पहुँच चुकी है कि खिलाड़ी खुद पूछ रहे हैं कोच और गेंदबाज़ी कोच कब जा रहें है। विराट को लेकर भी टीम में आक्रोश है खास तौर से विजय के चयन और रायडू को टीम में न लेकर।लेकिन विराट का मैनेजमेंट पर पकड़ इतनी मज़बूत है कि उसकी बात को ही बल मिलेगा। लेकिन इसका असर खिलाड़ी के खेल पर पड़ रहा है वह दिन दूर नहीं जब विद्रोह की लौ न भड़क जाये।

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Lucknow की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।