दलबदलू कानून में लोचा ही लोचा, खुलेआम लोकतंत्र का चीरहरण

संक्षेप:

  • कर्नाटक में केवल लालच की हुई जीत
  • सरकार गिराने-बनाने का काम कांग्रेस भी करती थी
  • पार्टी को तोड़ने या सरकार गिराने वालों के ख़िलाफ होने चाहिए कड़े कानून

By: मदन मोहन शुक्ला

कर्नाटक में पिछले कई दिनों से लोकतंत्र का चीरहरण हो रहा था उसका पटाक्षेप येदियुरप्पा के विश्वासमत हासिल करने से ठीक एक दिन पहले विधानसभा स्पीकर के आर रमेश कुमार ने 17बागी विधायकों को अयोग्य ठहरा कर एक सन्देश दिया लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। पिछले कई दिनों से बीजेपीे जो गेम खेल रही थी उसमें बीजेपी तो सरकार बना ले गई लेकिन बागी विधायक जिनके बड़े-बड़े ख्वाब मंत्री से लेकर करोड़ों रुपये कमाने के थे वे मिट्टी में मिल गए। रह गया हाथ केवल अयोग्य होने का दर्द वह भी ऐसा की 2023 तक चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे। लेकिन 13 माह पुरानी कुमार स्वामी सरकार को गिरा दिया। यहाँ जीत हुई तो केवल लालच की,लोकतंत्र, ईमानदारी  और कर्नाटक के लोग हार गए।

एक तरह से देखा जाय तो मैं स्पीकर की तारीफ करूंगा। यह कोई पहली घटना नहीं है। किस तरह से विधायक, सांसद अपनी पार्टी से दगा करते हैं जिसने विश्वास करके टिकट दिया फिर वह उस जनता को धोखा देते है जिसने इनको विधायक ,सांसद बनाया कि वे वहां जाकर बेहाल जनता के दुःख दर्द के खिलाफ आवाज़ उठाकर इंसाफ दिलाएंगे, लेकिन अफ़सोस यह खुद रक्षक से भक्षक बन कर खुलेआम लूट खसूट करने लगे ,विरोधी दल से मिल कर सरकार गिराने की ही साजिश रच डाली। यह कोई पहली घटना नहीं है। पहले भी सरकारें गिराने -बनाने का खेल चलता रहा है ।पहले यह खेल कांग्रेसी किया करते थे अब बीजेपी कर रही है। 2014 ,जबसे मोदी सत्तासीन हुए तबसे यह गेम उनके सिपहसालार तथाकथित चाणक्य अमित शाह ने गोवा से लेकर अरुणाचल प्रदेश होते हुए मेघालय, मणिपुर तक अपना सिक्का कायम किया। दुर्भाग्य तो यह है कि इनको चेक एवं बैलेंस करने के लिए कानून तो बना है लेकिन इसका तोड़ भी हमारे नेताओं के पास है। इसकी बानगी 1993 के नरसिम्हा राव सरकार के अल्पमत में आने और विश्वासमत में जे0एम0एम0, अजित सिंह गुट के सहयोग से सरकार तो बच गई, लेकिन कानून से बचने  का जो गेम हुआ वह बेमिसाल है। सरकार आरोपों में घिर गई कि सांसदों की खरीद फरोख्त यानि हॉर्स ट्रेडिंग हुई।

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1996 मे सरकार गिरने के बाद सी बी आई ने मामला दर्ज किया कि नरसिम्हा राव अन्य लोगों के साथ आपराधिक साजिश में शामिल रहें । इनके साथ कई विधायक और सांसद भी शामिल रहें। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम 1998 (पी सी ए) के तहत कथित रिश्वत देने वालों के खिलाफ आरोप लगें। रॉव के अलावा कांग्रेसी वीरप्पा मोइली के अलावा कथित रिश्वत लेने वालों में झामुमो सांसद शिबू सोरेन और 8 जनता दल अजित गुट के सांसद शामिल थे।

आरोपी व्यक्तियों ने बचाव  की दो लाइनें अपनाई । एक संविधान के अनुच्छेद 105 में सांसद को कोर्ट द्वारा उसके या उसके द्वारा दिए गए मत के सम्बन्ध में मुकदमें से छूट प्रदान की गई है। दो ,संसद का सदस्य पी सी ए में उस शब्द की परिभाषा के अनुसार लोक सेवक नहीं था। इसलिए इस नियम के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इसका यह मतलब यह हुआ कि विश्वास प्रस्ताव में उनकी कार्यवाही किसी भी अदालत द्वारा जाँच के अधीन नहीं है।

लेकिन विशेष न्यायधीश ,दिल्ली और बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रतिवादियों द्वारा प्रतिरक्षा दावों को खारिज़ कर दिया।कोर्ट ने फैसला सुनाया की अदालत के सामने असली सवाल दिए गए वोट के सम्बन्ध में नहीं था बल्कि एक विशेष तरीके से मतदान के बदले रिश्वत मांगने और स्वीकार करना जो अवैध कार्य था।अदालत ने तय कर दिया कि ये पी सी ए के दायरे में है।

मामला तब सुप्रीम कोर्ट में गया,वहां पांच न्यायधीश की संविधान पीठ (पी वी नरसिम्हा राव बनाम स्टेट ,1998)द्वारा सुनवाई की गई।पीठ इस बात पर एक मत था कि पी सी ए के अर्थ ,संसद सदस्य `लोक सेवक` थे।हालांकि अनुछेद 105 द्वारा पेश किये गए परीक्षण से प्रतिरक्षा के सवाल पर उनकी राय विभाजित थी।3-2बहुमत से तय की गई उनकी राय,निम्नलिखित शब्दों में एक परामर्श पत्र में शामिल  की गई थी।जिसे कुछ वर्षो बाद राष्ट्रीय आयोग द्वारा संविधान के काम काज की समीक्षा करने के लिए परिचालित किया गया था।

जबकि रिश्वत देने वाले संसद के सदस्य हैं अनुच्छेद 105 के खंड 2 द्वारा प्रदान की गई प्रतिरक्षा को लागू नहीं कर सकतें,रिश्वत लेने वाले सांसद उस प्रतिरक्षा को आमंत्रित कर सकते हैं।यदि उन्होंने वास्तव में सदन में वोट दिया हो या मतदान किया हो ।यदि कोई रिश्वत लेने के बाद  मतदान या वोट नहीं करता ,प्रतिरक्षा लागू नहीं की जा सकती।इससे अजित सिंह गुट के उन सांसदों के खिलाफ़ रिश्वत सम्बन्धी आरोप हटा दिए गए क्योकि वे मतदान में शामिल नहीं हुए।लेकिन नरसिम्हा राव और अन्य पर मुकदमें चले।वर्ष 2000 में विशेष न्यायधीश की अदालत ने राव को तीन साल की सजा सुनाई।लेकिन अजीत सिंह ,वीरप्पा मोइली  और अन्य को बरी कर दिया।

अपील पर दिल्ली हाई कोर्ट ने नरसिम्हा राव के खिलाफ़ विशेष  न्यायाधीश के फैसले को पलट दिया और 2002 में झामुमो सांसद के स्वीकारोक्तिपूर्ण बयान के परिपेक्ष में बरी कर दिया जो समझ से परे है।

विधायक द्वारा इस्तीफा फिर विपक्षी से सरकार बनाने में भागीदार बनने के एवज में मोटी रकम एवं मंत्रिपद की आस  पर तब  ब्रेक लगा जब 35 वे संविधान संशोधन ने विधान सभा स्पीकर को शक्ति प्रदान की कि वे अपने विवेक का प्रयोग करते हुए बागी विधायकों के भविष्य को सुनिश्चित करे।इस संशोधन से कोर्ट के समीक्षा करने का अधिकार भी सीमित हो गया था एक और दिलचस्प मामला तमिलनाडु का है जिसमें स्पीकर ने विधायकों को व्हिप उलंघन के मामलें में अयोग्य घोषित न करके इन विधायकों ने जो चिट्टी राज्यपाल को सपोर्ट वापस लेने की लिखी थी  इनका यह आचरण स्पीकर की नज़रों में अपनी पार्टी की सदस्य्ता छोड़ने का इशारा उनको अयोग्य घोषित करने का मजबूत आधार है।
कर्नाटक का ड्रामा जिसमें कांग्रेस-जे डी एस की 13 माह पुरानी सरकार की बलि हो गयी इसने सोचने को मजबूर कर दिया की दल-बदलू अधिनियम (एंटी डिफेक्शन लॉ)आया राम गया राम को रोकने में अक्षम है।

जो कानून 1984 में राजीव गांधी की सरकार द्वारा लाया गया था जिसमें समय समय पर संशोधन भी होते रहे लेकिन इसमें जो कुछ कमियां हैं उनको दूर करना समय की मांग क्योंकि सरकार के गिरने -बनने में समय के साथ करोड़ों रुपए बर्बाद होते हैं तथा विकास की रफ़्तार पर ब्रेक लगता है।कुछ उदाहरण इसकी बानगी है अभी हाल ही में गोवा में 15 में से 10 कांग्रेसी विधायक पाला बदलकर बीजेपी खेमे में चलें गए।इसी तरह तेलांगना में 18 में से 12कांग्रेस के विधायक टी0आर0 एस0 में मिल गये।इसी तरह आँध्रप्रदेश में  2014 से 2019 के बीच 23 विधयाक वाई एस आर सी पी से टी डी पी में मिल गए लेकिन यह सब बेदाग कोई कार्यवाही नहीं हुई।इस तरह के सैकड़ो मामलें विधान सभा से लेकर संसद में आयें जब लोकतंत्र का मखौल उड़ाया गया।दल-बदल अधिनियम में जो कमियां है एक अवलोकन कर दूर करना ज़रूरी है तथा कानून को और कड़ा करने और दंड ऐसा हो जिसमें कानून उलंघन करने वाला एक बार सोचे।तभी इसकी वैधानिकता बनी रहेगी एक डर कानून तोड़ने वाले के दिल में रहेगा।

सुप्रीम कोर्ट समय समय पर समीक्षा करता रहा नरसिम्हा राव बनाम राज्य वाले केस में कहा कि विधान सभा के स्पीकर द्वारा किसी भी दिए गए आदेश की कोर्ट समीक्षा कर सकता है इससे पहले विधान सभा के संचालक का आदेश ही सर्वोपरि होता था।इस संदर्भ में कई समितियां बनी जिसने  सुधार के सुझाव  दिए कुछ ने स्पीकर के आदेश में कमियां देखी।विधायक -सांसद के अयोग्य घोषित का अधिकार स्पीकर का न होकर राज्य में गवर्नर और केंद्र में राष्ट्रपति को चुनाव आयोग से सलाह-मशविरा करके उचित निर्णय लेना चाहिए।

इससे इस बात की तो पुष्टि हो गयी की दल-बदल अधिनियम(एंटी डिफेक्शन लॉ)करप्शन से निपटने में कामयाब नहीं है।इसीलिए इससे निपटने के लिए कड़े कानून का प्रावधान होना चाहिए ।अपराधियों को राजनीती में आने से रोकने के और कड़े कानून तथा जिस दल से यह हैं और यह दल खुले आम अगर इनके कृत्यों पर पर्दा डालते हैं। जैसा कि उत्तरप्रदेश के माखी उन्नाव का बलात्कार कांड जिसका मुख्य दोषी बांगरमऊ से बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेनेगर जिसको जिस बेशर्मी से केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार बचा रही है ।इसमें पार्टी दोषी होने पर इन पर भी दंड का प्रावधान होना  चाहिए।कोर्ट को इनको कारण बताओ नोटिस जारी करअपना पक्ष देना , "कार्यवाही दोषी के खिलाफ क्यों नहीं हो रही "मंडट्री हो।

जो विधायक पार्टी को तोड़ने या सरकार गिराने या किसी गैर राजनीतिक कारवाही में लिप्त पाये जाये इनको सदन या विधानसभा से बर्खास्त कर रिकॉल करने का अधिकार मतदाता को होना चाहिए।

कानून का समय समय पर परीक्षण तथा इसकी वैधानिकता पर जो मतभेद यदाकदा विधायी तथा कोर्ट के बीच उभरते है इसका निष्पादन तर्कसंगत तरीके से होना चाहिये।

कुछ सवाल आज भी अनुत्तरित है ।सोचने को मजबूर करतें  है कि यह कैसा प्रजातंत्र हैं जहाँ नेता दो सीट से चुनाव लड़ सकता है।आप दो जगह से वोट नहीं डाल सकते।

आप जेल में बंद हो तो वोट नहीं डाल सकते लेकिन नेता जेल में रह कर भी चुनाव लड़ सकता है।

आप कभी जेल गए हो तो आपको  ज़िन्दगी भर कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी।

लेकिन नेता चाहे जितनी बार भी हत्या ,दुष्कर्म मामले में जेल गया हो तो भी वह मंत्री ,राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री जो चाहे बन सकता है।

बैंक की मामूली नौकरी पाने के लिए ग्रेजुएट होना ज़रूरी है।लेकिन नेता अंगूठा छाप भी है तो भी वित्त मंत्री बन सकता है।

आपको सेना में मामूली सिपाही के लिए भी ग्रेजुएट के साथ 10किलोमीटर दौड़ कर दिखाना होगा।लेकिन नेता अनपढ़ गंवार है तब भी वो देश का रक्षा मंत्री बन सकता है।

जिसके खानदान मेंआज तक कोई स्कूल नहीं गया वो नेता देश का शिक्षा मंत्री बन सकता है।

जिस नेता पर कई आपराधिक मामले चल रहे हैं वह गृह मंत्री बन सकता है।

यह है हमारा भारत जहाँ लोगों की दिलचस्पी मात्र दलगत राजनीति,हिन्दू-मुस्लिम,धोखा देने वाली राष्ट्रीयता,भीड़ तंत्र को जायज़-नाजायज़ ठहराने की होड़।जो मूलभूत मुद्दे गरीबी,भूखमरी,बेरोज़गारी,असुरक्षा आदि एवं जो सवाल ऊपर खड़े किये  गए उस पर ख़ामोशी।आखिर क्यों?एक आम आदमी अपराध करके बच नहीं पता वही हमारे नेता कही अपराध करके भी मीडिया के सामने मुस्कराते हुए बिना किसी शर्म के कहते है न्याय पर भरोसा है।और न्याय भी उनके कृत्यों पर पर्दा डाल कर उनके किये अपराध की तेरही कर देता है तो समझे आप यह है हमारा प्रजातंत्र।इसको सहेजे और खुश रहें चुप रहें।

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