अब छोटे ट्यूमर से भी मिलेगी निजात, KGMU में ईबस तकनीकी से होगी जांच

संक्षेप:

  • KGMU में ईबस तकनीकी से होगी ट्यूमक की जांच
  • छोटी गांठों का पता लगाना होता है मुश्किल
  • ब्रांकोस्कोपी से बेहतर ईबस की जांच

लखनऊ। हमारा शरीर संरचना में जितना संयुक्त है, उसे समझना उससे भी ज्यादा जटिल कार्य है। यदि शरीर के अंदर कुछ छोटी-छोटी बीमारियां जन्म ले रही हो तो उसकी जांच कर पता लगाना और भी मुश्किल कार्य हो जाता है। चिकित्सा क्षेत्र में हमारे शरीर की जटिलताओं को आसान करने के लिए परस्पर शोध होते रहते हैं। इसी शोध का नतीजा है एंडोब्रांकियल अल्ट्रासाउंड सिस्टम (ईबस) की जांच, जो अब केजीएमयू में उपलब्ध है।

किंग जार्ज चिकित्सा विश्‍वविद्यालय में अब फेफड़े और रेस्पिरेटरी से जुड़ी सूक्ष्म बीमारियों का पता लगाने के लिए ईबस जांच शुरू कर दी गई है। इससे फेफड़ों में होने वाली छोटी-छोटी बीमारियों, गांठों या ट्यूमर आदि का पता आसानी से लगाया जा सकता है। केजीएमयू के पल्मोनरी क्रिटकल केयर विभाग ने एंडोब्रांकियल अल्ट्रासाउंड सिस्टम (ईबस) शुरू किया है। केजीएमयू में यह जांच मात्र दो हजार रुपए में होती है। इस जांच से फेफड़े के अंदर की गांठ का पता आसानी से चल जाता है।

डॉ. वेद प्रकाश ने बताया कि ईबस जांच फेफड़े के अंदर की छोटी से छोटी बीमारियां, जो सूक्ष्म रूप से पनपती हैं, उन्हें पहचानने के लिए की जाती है। फेफड़े में तीन भागों में बीमारियां होती हैं। पहली एयर बेस, दूसरी पेरेनकाइमा तथा तीसरी प्लूरा होती है। इनमें से पेरेनकाइमा में हुई बीमारियां जल्दी डायग्नोज़ नहीं हो पाती हैं। यही वजह है कि ट्यूमर या किसी तरह की गांठ का पता चलना मुश्किल हो जाता है।

ये भी पढ़े : Senior Citizen Health: बुढ़ापे में बनी रहती है इन बीमारियों का खतरा, ये लक्षण दिखें तो हो जाएं सावधान


उन्होंने बताया कि इस जांच के लिए लगभग एक करोड़ रुपए की मशीन लाई गई है, जिसमें कई एडवांस फीचर मौजूद हैं। इस जांच में ट्यूब को श्‍वसन नली में डाला जाता है। इस ट्यूब में एक छोटा कैमरा भी होता है, जिसके जरिये अल्ट्रासाउंड करने सुविधा उपलब्ध होती है। ट्यूब में कैमरे के साथ- साथ अल्ट्रासाउंड का छोटा सा प्रोब भी लगा है। प्रोब की मदद से फेफड़े के अंदरुनी हिस्सों का अल्ट्रासाउंड करते हैं। जहां पर गांठ या अनियमित विकृति दिखाई देती है। ऐसी स्थिति में प्रोब पर बैलूनिंग कर निडिल ओपेन करते हैं। इस निडिल के माध्यम से गांठ से फ्लूड या टिश्यू निकाल कर जांच के लिए भेज देते हैं।

डॉ. वेद ने बताया कि अभी यह जांच उनके यहां मात्र दो हजार रुपए में की जा रही है। यह जांच पल्मोनरी और क्रिटिकल केअर मेडिसिन विभाग में पिछले दो महीनों से शुरू हो चुकी है। यह सप्ताह में एक बार ही की जाती हैं। मरीज की हालत को देखते हुए ब्रांकोस्कोपी या ईबस जांच की जाती है। डॉक्टरों के अनुसार ब्रांकोस्कोपी की अपेक्षा ईबस की जांच ज़्यादा अच्छी होती है क्योंकि इसमें सूक्ष्म बीमारियों का भी पता आसानी से लग सकता है।

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Lucknow की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles