ऐसे में भारत कैसे बने एक विकसित देश?

संक्षेप:

  • आखिर किधर जा रहा है, भारतीय समाज?
  • 4 महीनों में भीड़ ने 29 लोगों की हत्या कर दी
  • लगातार महिलाओं के साथ रेप की खबरें  

कही मोब लिंचिंग, कही रेप, कही ट्रोल के जरिए गंदी-गंदी गालियां तो कही खुलेआम धमकी. ये तमाम घटनाएं देश को डराती है. बेकाबू भीड़ के हाथों लोगों की हत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. वाट्सएप पर अफवाहों के चलते पिछले चार महीनों में भीड़ ने 29 लोगों की हत्या कर दी है. तो वहीं देशभर में महिलाओं व युवतियों के साथ रेप की खबरे हर रोज सुनने या पढ़ने को मिल जाती है. हाल ही में मध्यप्रदेश में सात साल की एक मासूम बच्ची के साथ हुई दरिंदगी ने पूरे देश को झंझोड़ कर रख दिया है. ये सिर्फ कानून व्यवस्था के दायरे भर का मामला नहीं है बल्कि बीमार होते समाज की तस्वीर है. घटनाएं अलग-अलग लेकिन मानसिकता एक जैसी है. यौन कुंठा, पाश्विकता, धार्मिक नफरत. कही निशाने पर महिला तो कही निशाने पर धर्म. इसमें किसी सरकार की गलती नहीं है और न ही पुलिस प्रशासन की. इसमें गलती है तो सिर्फ हमारी मानसिकता की. आखिर किधर जा रहा है, भारतीय समाज? आखिर वह कौन सी मानसिकता है जो इस अमानवीय अपराध का कारण बनती है? यह साफ है कि सामाजिक में बदलाव आए बिना ये घटनाएं नहीं रुकेगी. लेकिन क्या यह बदलाव आ रहा है? जवाब आपको पता है, फिर भी मैं एक छोटा सा उदाहरण आपके सामने रख रहा हूं.

केंद्र सरकार की सबसे वरिष्ठ और सम्मानीय मंत्रियों में एक सुषमा स्वराज को तन्वी सेठ नाम की एक महिला ने ट्वीट किया, जिसमें यह शिकायत की थी कि उसका पासपोर्ट इसलिए नहीं बन पा रहा है, क्योंकि उसके पति मुसलमान है और पासपोर्ट अधिकारी ने पूछताछ के दौरान उनके साथ अभद्रता की.

सुषमा स्वराज उस समय विदेश यात्रा पर थी. लेकिन इस ट्वीट के बाद पासपोर्ट कार्यालय ने अधिकारी का तबादला कर दिया और तन्वी सेठ के नाम पासपोर्ट जारी कर दिया. बाद में हुई छानबीन में पता चला कि उस महिला ने कुछ तथ्य छिपाए थे. लिहाजा उसका पासपोर्ट रद्ध हुआ और साथ ही हर्जाना भी लगाया गया. सुषमा स्वराज और उनके मंत्रालय ने दोनों स्थितियों में वहीं किया जो एक संवदेशनील सरकारी महकमे को करना चाहिए. किसी व्यक्ति की शिकायत पर त्वरित कार्रवाई और शिकायत गलत पाए जाने पर फैसले में बदलाव. लेकिन उसके बाद से सुषमा स्वराज लगातार ट्रोलर्स के निशाने पर हैं. उनके खिलाफ लगातार अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है. एक व्यक्ति ने तो यहां तक लिखा है कि सुषमा स्वराज के पति उन्हे पीटते क्यों नहीं हैं? लेकिन फिर भी सुषमा अपने ट्रोलर्स को नीरज की इस कविता के जरिए जवाब दिया.

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निर्माण घृणा से नहीं, प्यार से होता है,

सुख-शान्ति खड्ग पर नहीं फूल पर चलते हैं,

आदमी देह से नहीं, नेह से जीता है,

बम्बों से नहीं, बोल से वज्र पिघलते हैं.

ना केवल सुषमा स्वराज बल्कि कई लोग है जिन्हें ट्विटर और फेसबुक के जरिए निशाना बनाया जाता है. कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी को तो ट्विटर पर उनकी 10 साल की बेटी से रेप की धमकी तक दी गयी है. ऐसे में एक सवाल मन में उठता है कि हम कैसे गौरवान्वित महसूस करें कि हमारा जन्म एक ऐसे देश में हुआ है, जहां नारी की पूजा की जाती है! क्या यही हमारी मानसिकता है? मैं एक और छोटा सा उदाहरण आपके सामने रख रहा हूं.

एक बार मेरे पापा से कुछ दोस्त मिलने आए थे तब में 12वीं में पढ़ रहा था. पापा ने मुझे बोला- बेटा पानी लेकर आओ, मैं पानी लाया, फिर चाय के लिए बोले, चाय भी लाया. उसके बाद मैं वहां बैठ गया तो उन्होंने मुझसे पूछा कौन से क्लास में बढ़ते हो बेटा, मैंने कहा- 12वीं में. फिर उन्होंने पापा से कहा कि आप साधारण पढ़ाई क्यों पढ़ा रहे हैं अपने बेटे को. आपकी तो इतनी पहुंच है, किसी मंत्री जी से कह कर अच्छे से इंस्टीट्यूट में एडमिशन करवा दीजिए करियर बन जाएगा. मैं उस समय काफी खुश हुआ कि कोई तो है जो पापा के सामने मेरा पैरवी कर रहा है. पर पापा ने उन्हें जवाब दिया कि मेरा मकसद अपने बच्चें को एक अच्छा इंसान बनाना है, एक अच्छा इंसान बन जाएगा तो सफल वो खुद ही हो जाएगा. पापा की ये बातें मुझे आज भी याद है. आज हमारे समाज के सभी पापा का मकसद बच्चें को एक अच्छा इंसान बनाना चाहिए. यानी हमें अपनी मानसिकता को अपने घर से ही बदलना होगा, तभी जाकर देश बदलेगा. `हम फिट तो इंडिया फिट` तो सही है लेकिन साथ-साथ हैशटैग `हम सही तो इंडिया सही` भी हो. #HumFitTohIndiaFit #HumSahiToIndiaSahi

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