लखनऊ का काला इमामबाड़ा, जानिए क्या है रहस्य

संक्षेप:

  • उर्दू के शेक्सपियर मीर अनीस भी आते थे
  • मिर्जा कासिम ने बनवाया था काला इमामबाड़ा
  • करीब 300 साल पुराना है काला इमामबाड़ा 

लखनऊः राजधानी लखनऊ में कई इमामबाड़ें हैं और यहां के लोग सभी इमामबाड़ों से परिचित भी हैं फिर चाहे वह छोटा इमामबाड़ा हो, शाहनजफ़ इमामबाड़ा हो या फिर बड़ा इमामबाड़ा. लेकिन राजधानी लखनऊ में एक इमामबाड़ा ऐसा भी है जिसे बहुत ही कम लोग जानते हैं। अगर आप इंटरनेट को खंगालेंगे तो भी एक या दो लाइन से ज्यादा कुछ नहीं मिलेगा उस इमामबाड़े का नाम है काला इमामबाड़ा.

राजधानी के चौक क्षेत्र में यह इमामबाड़ा स्थित है जो कि काले रंग से रंगा हुआ है लेकिन जैसे और इमामबाड़ो की देखरेख होती है वैसी इसकी नहीं होती. लेकिन अगर इतिहास पर नज़र डालें तो यह इमामबाड़ा आज से करीब 300 साल से भी कुछ ज्यादा पुराना है जिसको मिर्ज़ा कास्सिम अली साहब ने बनवाया था.

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इस इमामबाड़े की देखरेख करने वाले जाफरी साहब ने NYOOOZ को बताया कि वैसे तो इस इमामबाड़े के निर्माण का समय बताना मुश्किल था लेकिन एक कुछ समय पहले जब हम लोग इसकी मरम्मत करवा रहे थे उस समय कुछ ईंटे मिली थीं जिस पर निर्माण की साल का परिचय था. उन्होंने कहा कि इस इमामबाड़े पर हम लोगों ने यानी जो इस क्षेत्र में रहते हैं और जो इस इमामबाड़े से सम्बन्ध रखते हैं उन्होंने इसका कायाकल्प कराया क्योंकि यह इमामबाड़ा काफी जर्जर हो चुका था. बताया कि पहले जो छत थी वो भी पुराने समय की बनी हुई थी जिसको हम लोगों ने सही करवाया.

ये हैं इमामबाड़े का अर्थ

मुस्लिम मामलों के जानकार जाफरी साहब ने NYOOOZ को बताया कि इमामबाड़े का अर्थ है इमाम का घर. उन्होंने ने बताया कि आज से कई साल पहले मुहम्मद साहब पर कुछ गलत लोगों ने हमला किया था और उनके घर तबाह हो गए थे. उसके बाद से लोगों ने इमामबाड़ों का निर्माण करवाया जिसका मतलब है कि यह ईश्वर का घर है.

यहां पर इमामबाड़े का निर्माण करवाने वाले मिर्जा कासिम साहब की कब्र भी है जो कि अब बिलकुल खंडहर हो चुकी है. 

मीर अनीस भी आते थे 

जाफरी साहब ने बताया कि भारत में उर्दू के जानेमाने कवि मीर अनीस भी इस इमामबाड़े में अपना काफी समय गुजरते थे जिनको भारत में उर्दू शेक्सपियर कहा जाता था. बताया कि मीर अनीस का कहना था कि इस इमामबाड़े में ईश्वर विराजमान है और कभी कभी कुछ अनोखी बातों की चर्चा भी करते थे. जाफरी साहब ने बताया कि मीर अनीस एक दिन कुछ पढ़ रहे थे तभी इमामबाड़े के एक हिस्से से किसी के रोने की आवाज़ आई. आपको बता दें कि अब इमामबाड़े का वो हिस्सा बंद है लेकिन और पूरा इमामबाड़ा लोगों के लिए खुला हुआ है.

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