लखनऊ का वो गेस्ट हाउस कांड, जिसने मायावती और मुलायम को बना दिया था दुश्मन

संक्षेप:

  • मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब `बहनजी` में गेस्टहाउस में उस दिन घटी घटना की जानकारी विस्तार से देता है
  •  1995 के गेस्टहाउस कांड में जब कुछ कथित तौर पर सपा के गुंडों ने बसपा सुप्रीमो मायावती को कमरे में बंद करके मारा और उनके कपड़े फाड़ दिए थे
  • किसी तरह मायावती ने अपने को कमरे में बंद किया था और बाहर से समाजवादी पार्टी के विधायक और समर्थक दरवाजा तोड़ने में लगे हुए थे.

मायावती के जीवन पर आधारित अजय बोस की किताब `बहनजी` में गेस्टहाउस में उस दिन घटी घटना की जानकारी विस्तार से देता है. बताया जाता है कि, 1995 के गेस्टहाउस कांड में जब कुछ कथित तौर पर सपा के गुंडों ने बसपा सुप्रीमो मायावती को कमरे में बंद करके मारा और उनके कपड़े फाड़ दिए थे. किसी तरह मायावती ने अपने को कमरे में बंद किया था और बाहर से समाजवादी पार्टी के विधायक और समर्थक दरवाजा तोड़ने में लगे हुए थे. इस बीच, कहा जाता है कि अपनी जान पर खेलकर बीजेपी विधायक ब्रम्हदत्त द्विवेदी मौके पर पहुंचे और सपा विधायकों और समर्थकों को पीछे ढकेला. बता दें कि ब्रह्मदत्त द्विवेदी की छवि भी दबंग नेता की थी. यूपी की राजनीति में इस कांड को गेस्टहाउस कांड कहा जाता है और ये भारत की राजनीति के माथे पर कलंक है. खुद मायावती ब्रम्हदत्त द्विवेदी को भाई कहने लगीं और सार्वजनिक तौर पर कहती रहीं कि अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने मेरी जान बचाई थी. जानकारी के लिए बता दें कि ब्रम्हदत्त द्विवेदी संघ के सेवक थे और उन्हें लाठी चलानी भी बखूबी आती थी इसलिए वो एक लाठी लेकर हथियारों से लैस गुंडों से भिड़ गए थे. यही वजह है कि मायावती ने भी उन्हें हमेशा अपना बड़ा भाई माना और कभी उनके खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं किया. पूरे राज्य में मायावती बीजेपी का विरोध करती रहीं, लेकिन फर्रुखाबाद में ब्रम्हदत्त द्विवेदी के लिए प्रचार करती थीं.

कहा जाता है कि जब गुंडों ने बाद में ब्रह्मदत्त द्विवेदी की गोली मारकर हत्या कर दी तब मायावती उनके घर गईं और फूट-फूट कर रोईं. उनकी विधवा ने जब चुनाव लड़ा तब मायावती ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा बल्कि लोगों से अपील की थी कि मेरी जान बचाने के लिए दुश्मनी मोल लेकर शहीद होने वाले मेरे भाई की विधवा को वोट दें. कुछ रिपोर्टों के अनुसार चीख-पुकार मचाते हुए वे (समाजवादी पार्टी के विधायक, कार्यकर्ता और भीड़) अश्लील भाषा और गाली-गलौज का इस्तेमाल कर रहे थे. कॉमन हॉल में बैठे विधायकों (बहुजन समाज पार्टी के विधायक) ने जल्दी से मुख्य द्वार बंद कर दिया, परन्तु झुंड ने उसे तोड़कर खोल दिया. फिर वे असहाय बसपा विधायकों पर टूट पड़े और उन्हें थप्‍पड़ मारने और ‌लतियाने लगे. बताया जाता है कि कम-से-कम पांच बसपा विधायकों को घसीटते हुए जबर्दस्ती अतिथि गृह के बाहर ले जाकर गाड़ियों में डाला गया था, जो उन्हें मुख्यमंत्री के निवास स्‍थान पर ले गए. इन विधायकों को राजबहादुर के नेतृत्व में बसपा विद्रोही गुट में शामिल होने के लिए और एक कागज पर मुलायम सिंह सरकार को समर्थन देने की शपथ लेते हुए दस्तखत करने को कहा गया था. उनमें से कुछ तो इतने डर गए थे कि उन्होंने कोरे कागज पर ही दस्तखत कर दिए.

विधायकों को रात में काफी देर तक वहां बंदी बनाए रखा गया, जिस समय अति‌थिगृह में बसपा विधायकों को इस तरह से धर कर दबोचा जा रहा था, जैसे मुर्गियों को कसाई खाने ले जाया जा रहा हो, कमरों के सेट 1-2 के सामने, जहां मायावती कुछ विधायकों के साथ बैठी थीं. एक विचित्र नाटक ‌घटित हो रहा था, बाहर की भीड़ से कुछ-कुछ विधायक बच कर निकल आए थे और उन्होंने उन्हीं कमरों मे छिपने के लिए शरण ले ली थी. अंदर आने वाले आखिरी वरिष्ठ बसपा नेता आरके चौधरी थे, जिन्हें सिपाही रशीद अहमद और चौधरी के निजी रक्षक लालचंद की देखरेख में बचा कर लाए थे. कमरों में छिपे विधायकों को लालचंद ने दरवाज अंदर से लॉक करने की हिदायत दी और उन्होंने अभी दरवाजे बंद ही किए थे कि भीड़ में से एक झुंड गलियारे में धड़धड़ाता हुआ घुसा और दरवाजा पीटने लगा.मायावती को दो क‌निष्ठ पुलिस अफसरों हिम्‍मत ने बचाया. ये ‌थे विजय भूषण, जो हजरतगंज स्टेशन के हाउस अफसर (एसएचओ) थे और सुभाष सिंह बघेल जो एसएचओ (वीआईपी) थे, जिन्होंने कुछ सिपाहियों को साथ ले कर बड़ी मुश्किल से भीड़ को पीछे धकेला. फिर वे सब गलियारे में कतारबद्ध होकर खड़े हो गए ताकि कोई भी उन्हें पार न कर सके. क्रोधित भीड़ ने फिर भी नारे लगाना और गालियां देना चालू रखा और मायावती को घसीट कर बाहर लाने की धमकी देती रही. कुछ पुलिस अफसरों की इस साहसपूर्ण और सामयिक कार्यवाही के अलावा, ज्यादातर उपस्थित अधिकारियों ने जिनमें राज्य अतिथि गृह में संचालक और सुरक्षा कर्मचारी भी शामिल थे, इस पूरे पागलपन को रोकने की कोई कोशिश नहीं की. यह सब एक घंटे से ज्यादा समय तक चलता रहा. कई बसपा विधायकों और कुछ पुलिस अधिकारियों के ये बयान ‌स्तम्भित करने वाले थे कि जब विधायकों को अपहरण किया जा रहा था और मायावती के कमरों के आक्रमण हो रहा था, उस समय वहां लखनऊ के सीनियर सुपरिण्टेडेण्ट ऑफ पुलिस ओपी सिंह भी मौजूद थे.

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चश्मदीदों के अनुसार वे सिर्फ खड़े हुए स‌िगरेट फूंक रहे थे. आक्रमण शुरू होने के तुरंत बाद रहस्यात्मक ढंग से, अतिथि गृह की बिजली और पानी की सप्लाई काट दी गई-प्रशासन की मिलीभगत का एक और संकेत. लखनऊ के जिला मजिस्ट्रेट के वहां पहुंचने के बाद ही वहां कि परिस्थिति में सुधार आया. उन्होंने क्रोधित भीड़ का डट कर मुकाबला करने की हिम्‍मत और जागरूकता का परिचय दिया. एसपी राजीव रंजन के साथ मिलकर जिला मजिस्ट्रट ने सबसे पहले भीड़ के उन सदस्यों को अतिथिगृह के दायरे के बाहर धकेला, जो विधायक नहीं थे. बाद में पुलिस के अतिरिक्त बल संगठनों के आने पर उन्होंने सपा के विधायकों समेत सभी को राज्य अति‌‌थि-गृह के दायरे के बाहर निकलवा दिया.

यद्यपि ऐसा करने के लिए उन्हे विधायकों पर लाठीचार्ज करने के हुक्म का सहारा लेना पड़ा. फिर भी सपा के विधानसभा सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही न करने की मुख्यमंत्री के कार्यालय से मिली चेतावनी को अनसुनी करके वे अपने फैसले पर डटे रहे. अपनी ड्यूटी बिना डरे और पक्षपात न करने के फलस्वरूप रात को 11 बजे के बाद जिला मजिस्ट्रेट के लिए तत्काल प्रभावी रूप से तबादले का हुक्म जारी कर दिया गया. जैसे ही राज्यपाल के कार्यालय, केंद्र सरकार और वरिष्ठ भाजपा नेताओं के दखल देते ही ज्यादा से ज्यादा रक्षा दल वहां पहुंचने लगे, अतिथि गृह के अंदर की स्थिति नियंत्रित होती गई. जब रक्षकों ने बिल्डिंग के अंदर और बाहर कब्जा कर लिया तब गालियां, धमकियां और नारे लगाती हुई भीड़ धीरे-धीरे कम होती चली गई. मायावती और उनके पार्टी विधायकों के समूह को जिन्होंने अपने आप को कमरे के सेट 1-2 के अंदर बंद किया हुआ था, यकीन द‌िलाने के लिए जिला मजिस्ट्रेट और अन्य अधिकारियों को बार अनुरोध करना पड़ा कि अब खतरा टल गया था, और वे दरवाजा खोल सकते थे. जब उन्होंने दरवाजा खोला, तब तक काफी रात हो चुकी थी. इसी के बाद से मायवती और मुलायम सिंह के रिश्ते खराब हो गए. उसके बाद से 24 साल तक दोनों दलों के बीच ना तो चुनाव पूर्व और ना ही चुनाव के बाद कोई गठबंधन हुआ है. अब देखना यह है कि गेस्ट हाउस कांड से एसपी-बीएसपी में हुई दुश्मनी क्या अपना रुख बदलती है?

 

 

 

 

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