लखनऊः कैप्टन से लेखक बने विनोद दुबे से खास बातचीत

संक्षेप:

  • पत्नी का मिला पूरा साथ
  • नॉन बॉलीवुड है मेरा उपन्यास
  • हंसी हंसी में `इंडियापा` नाम मिला

लखनऊः अक्सर हम सुनते हैं कि कोई पत्रकार किताब लिख रहा है या कोई टीचर किताब लिख रहा है या फिर कोई समाज सेवी। तो यह सुनकर हमको कोई बड़ा आश्चर्य नहीं होता क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए यह बहुत आम बात है। लेकिन समुद्री जहाज का कोई कप्तान जब एक लेखक बन जाए तो जरूर दिमाग में एक छटपटाहट सी होती है कि आखिर यह कैसे लेखक बन गया। दिमाग में यही सवाल आता है कि क्या इसका कोई बैकग्राउंड था इस कार्य से जुड़ा हुआ जो उसने ऐसे किया।

हाल ही में `इंडियापा` नाम से एक किताब प्रकाशित हुई है जिसको मर्चेंट नेवी के कैप्टन विनोद दुबे ने लिखा है। यह किताब ऑनलाइन भी उपलब्ध है और इसकी बिक्री बहुत तेज़ी से हो रही है।

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आखिर उन्होंने यह किताब कैसे लिखी उन्हें लिखने की प्रेरणा कहां से मिली और यह किताब अन्य कहानी किताबों से कैसे अलग है इस पर NYOOOZ ने विनोद दूबे से खास बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ अंशः

NYOOOZ: आपको किताब लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली, जरा बताएं?

विनोद दुबेः प्रेरणा की बात पर कहना चाहूंगा कि मुझे शुरू से ही लिखने का शौक था। मैं कविताएं और लेख समय-समय पर लिखता रहता था। मैंने अपना लिखना पूरी तरह से बॉम्बे में लिखना शुरू किया था उस समय मैं मर्चेंट नेवी की पढ़ाई कर रहा था। तो मैंने वहां पर कुछ अच्छा लिखा तो लोगों ने मेरे कार्य को सराहा और वहां से मेरी हल्की फुल्की पहचान एक लेखक के रूप में भी होने लगी।

वैसे अगर देखा जाए तो मर्चेंट नेवी एक अलग रास्ते पर चलने वाली नौकरी है सुबह समुद्र और शाम को समुद्र का किनारा। इसलिए लोग अक्सर सोचते हैं कि इस तरह की नौकरी में लेखन जैसा कार्य जटिल है। लेकिन मैंने अपने अंदर कुछ लिखने का ड्रीम पैदा किया तो उसको पूरा करना ही था।

वहीं कुछ समय बाद जब मैं सिंगापुर गया तो कुछ समय मिला और एक छोटी सी कहानी या एक कहानी का टुकड़ा कह लीजिए मैंने लिखा और अपने एक दोस्त को भेजा तो उसने कहा कि यह तो लाजवाब तरीके से लिखा गया है और इसको पूरा किया जाना जरूरी है। उसके बाद मैंने सोचा कि एक किताब लिखी जानी चाहिए।

NYOOOZ: आपने अपने उपन्यास का नाम इंडियापा क्यों रखा?  

विनोद दुबेः जो सवाल आपने किया वही सवाल और भी लोगों के दिमाग में चहलकदमी करता है कि आपने उपन्यास का नाम आपने इंडियापा क्यों रखा।  नाम मैंने ऐसे रखा कि एक बार में पानी के जहाज से ऑस्ट्रेलिया से जापान जा रहा था। जिस दिन यात्रा कर रहा था वह दिन करवाचौथ का तो मैं जहाज से आसमान में चांद को तलाश कर रहा था। उसी समय मेरे दो दोस्त भी जहाज में मौजूद थे तो उन्होनें मुझसे पूंछा कि क्या देख रहे हो आसमान में तो मैंने बताया चांद। उसी समय वह बोले कि यार क्या `इंडियापा` है, बस उसी शब्द को मैंने अपनी उपन्यास का नाम दिया।

NYOOOZ: आपका उपन्यास अन्य उपन्यासों से कैसे अलग है, जरा बताएं?

विनोद दुबेः मेरी जो कहानी है वह पूरी नॉन बॉलीवुड स्टोरी है जैसे हम अक्सर हिंदुस्तान की फिल्मों में देखते हैं कि एक हीरो आता है और अपने विरोधियों की पिटाई कर हीरोइन को ले जाता है वैसा मैंने कुछ भी नहीं लिखा है। मैंने इस अंदाज में लिखा है कि पढ़ने वाले को यह लगे कि सब कुछ सत्य घटना पर आधारित है। इस उपन्यास में मैंने बनारस के घाट एक लड़के और लड़की का प्रेम और अपना उत्तर प्रदेश शब्दों में बयां किया है। वहीं आप जब किसी अच्छे उपन्यास यानि किसी अच्छे लेखक द्वारा लिखे उपन्यास को पढ़ेंगे तो आपको क्लिष्ट शब्दों से गुजरना होगा लेकिन मैंने अपने उपन्यास में क्षेत्रीय भाषा और सरल हिंदी का प्रयोग किया है जो आमतौर पर उपन्यासों में कम देखने को मिलता है।

NYOOOZ: आप अपने उपन्यास का पूरा श्रेय खुद को ही देंगे या किसी और को भी, जरा बताएं?  

विनोद दुबेः बिल्कुल, मैं अपने दोस्त जिन्होंने मेरे द्वारा लिखे एक टुकड़े को किताब में तब्दील करने को कहा। साथ ही मुझे मेरी पत्नी का भी बहुत साथ मिला। जब मैं उपन्यास को लिख रहा था उस समय पल पल पर मुझे मेरी पत्नी का सहारा मिला।

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