मैग्सेसे रवीश को, आईना सरकार को सब कुछ ठीक नहीं 

संक्षेप:

  • मैग्सेसे पुरस्कार से नवाज़े गए रवीश कुमार बधाई के पात्र
  • पत्रकारिता स्टूडियो में ही सिमट कर रह गई है
  • क्या अब पत्रकारिता के लिए माहौल है?

By: मदन मोहन शुक्ला

गोदी मीडिया रूपी स्याह-काली बुझे हुए चिराग के गर्भ से एक पुंज उभरता है जिसकी रोशनी से पत्रकारिता अपने को धन्य मानती है वह हैं रवीश कुमार। जिन्हें मैग्सेसे पुरस्कार से नवाज़ा गया वह बधाई के पात्र हैं। इन्होंने जिन विपरीत परिस्थितियों में भी पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धान्तों के दायरे में रहते हुए जिस निर्भीक पत्रकारिता, जो भारत में अपवाद हो गयी है और एक बहुत ही बुरे दौर से गुज़र रही है उसको अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई। इसमें एन0 डी0 टी0वी0 के मालिक डॉ0 प्रणय रॉय का भी पूरा सहयोग रहा अपने व्यापारिक हित की परवाह न करते हुए चट्टान की तरह पीछे खड़े रहे वह ज़्यादा बधाई के पात्र हैं। लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू बहुत ही डरावना एवं भयावह है यह तो वही समझ सकता है जिसने इसकी टीस दर्द को भोगा है, समझा है। लेकिन ग्राउंड रिपोर्टिंग को तरजीह दी। सिस्टम- सरकार कैसे दिगभ्रमित-मार्गभर्मित करती है उस सच को चुनिंदा पत्रकारों ने उजागर किया और उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा ।लेकिन जो मिशन था उस पर अडिग रहे।

लेकिन अधिकतर तथाकथित पत्रकार जिनको सरकार से सवाल पूछना चाहिए था अगर कुछ सरकारी स्तर पर गलत हो रहा है ।लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।पत्रकारिता स्टूडियो में ही सिमट कर रह गई और पूंजीवादिता के रौ में चल पड़ी।आज अधिकतर न्यूज़ चैनल को चलाने वाले बड़े बड़े औधोगिक घराने जिनको केवल सरकार से तालमेल बिठाकर अपने व्यापार को दिन दूने रात चौगने बढ़ाना है।न कि सत्ता में बैठे लोगों को नाराज़ करना।यहाँ संपादक की भूमिका मात्र जनसंपर्क अधिकारी की होती है ।वह अपने मालिक के व्यापारिक नफा नुकसान का लेखा -जोख़ा रखे और सरकार से उसकी कमियों पर पर्दा डालने के एवज में पुरस्कार की आस रखे।

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अगर हम इतिहास के पन्नों को पलटे तो इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के मालिक राम नाथ गोयनका का नाम आयेगा जिन्होंने पत्रकारिता के मूल्यों को काफी ऊंचाइयों तक ले गए ,अगर उन्हें वन मैन आर्मी कहा जाये तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी।किस तरह वह इंदिरा गांधी की नीतियों का खुल कर विरोध करते थे जिसके एवज़ में सत्ता के कोपभाजन  का शिकार भी बनना पड़ा था ।लेकिन आज परिस्थीती इससे भिन्न है आज मीडिया पूरी तरह से सरकार के सामने नतमस्तक है।

मौजूदा वक्त में विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश के सामने सबसे बड़ा सवाल कि राजनीतिक सत्ता ने लोकतंत्र,संविधान और चौथे पाये यानि मीडिया को भी हड़प लिया।यह एक अनूठा सच है कि भारत के भीतर इतना ज़्यादा अँधियारा हो चला है मौजूदा सत्ता पूरे देश, संस्थान को बताना चाहती  है कि भारत के भीतर का अंधियारा और उनके भीतर के उजियारों को ढकने की कोशिश अब पारदर्शी हो चुकी है।और मीडिया भक्ति रस और चापलूसी में मद-मस्त।

इसकी सीधा फार्मूला कहीं न कहीं नफा-नुकसान पर आकर टिकता है। अगर 2013  के पहले प्रचार प्रसार पर सरकारी बजट को देखें तो तो यह 1400-1500 करोड़ के आस-पास। नेशनल चैनलों के टी0आर0पी0 के आधार आवंटित होता था।इसमें जिसकी टी आर पी और बिड ज्यादा होती थी उसी को बड़ा हिस्सा मिलता था ।टी आर पी को बढ़ाने के चक्कर में चैनलों पर से न्यूज़ गायब हो  गयी थी जगह लेली थी कुछ बेतुके कार्यकर्मों ने जैसे क़त्ल की रात,स्वर्ग का रास्ता,क्राइम बुलेटिन आदि-आदि।शायद दर्शक इसी को खबर समझ बैठा था।लेकिन 2014 में मोदी के सत्ता में आने के बाद प्रचार प्रसार में जबरदस्त उछाल आया जो बजट 1400-1500 करोड़ का था बढ़ कर 2014-2015 में नेशनल न्यूज़ चैनल के लिए 4500 करोड़ और प्रिंट मीडिया के लिए 4000 करोड़।सत्ता प्रचार प्रसार की आड़ में चौथे पाये को विज्ञापन के एवज़ में भारी भरकम पूंजी की फंडिंग से यह सन्देश देने लगी अब हम जो चाहेंगे वह करना होगा।इसका असर यह हुआ मीडिया धीरे धीरे अपने में सिमटने लगा न्यूज़ गायब होने लगी जो सरकार चाहती वही न्यूज़- प्रिंट मीडिया हमारे सामने परोसता ।वास्तविकता सरकार तक ही सीमित रह गयी ।जो इनके इस बंधन में सेंध लगाने की कोशिश करता तो सी0बी0आई0, ई डी और इनकम टैक्स रेड की तलवार लटकने लगती ।अगर आप चैनल में रिपोर्टर,एंकर या एडिटर है स्वाभिमान जाग्रत होता है लोगों को वास्तविकता से रु ब रु कराने का तो यह तय है प्रबंधन पर सरकार का डंडा और आपकी नौकरी जाना तय।

हालत यह हो गयी बजट प्रचार प्रसार पर 2018-19 में बढ़ कर न्यूज़ चैनल के लिए 6000 करोड़ और प्रिंट के लिए करीब 4500 करोड़।चुनाव का प्रचार प्रसार का फण्ड करीब 11000 करोड़।इधर सरकार बजट में इजाफा कर रही थी उधर मीडिया सरकार का भोपों बनता जा रहा था। सबसे चौंकाने वाला पहलु यह भी है कि आर0टी0आई0 के तहत एक जानकारी मिली कि गंगा सफाई अभियान पर कम खर्चा हुआ जबकि प्रचार प्रसार पर ज्यादा।और तो और हर मंत्रालय के पास प्रचार प्रसार का अलग बजट है।अगर कुल बजट की बात करे तो 2018-19 तक यह 12000 करोड़ के ऊपर चला गया।इनके योजनाओं की ग्राउंड रियलिटी जो कोई चैनल दिखायेगा नहीं ।प्रचार-प्रसार में सारी योजनाएं चुस्त-दुरुस्त एवं अमन-चैन खुशहाली से भरपूर दिखेंगी। वास्तव में वह नही होगी जो सरकार दिखा रही है।किसान की आय दुगनी हो गयी, सरकार कह रही। किसान कह रहा आय दुगनी नहीं।।पुलवामा में जो आतंकी हमला हुआ जिसमें हमारें जवान शहीद हुए इसमे कहाँ चूक हुई कैसे आर0डी0एक्स0 वैन में पहुंचा।कौन लोग ज़िम्मेदार उन पर क्या कार्यवाही हुई ?मीडिया को पता नहीं न जानने की कोशिश।

डगमगाती अर्थ व्यवस्था जी0डी0पी0 6.8%,उसपर मोदी के आर्थिक सलाहकार रहे अरविन्द सुब्रमण्यम का कहना जो सरकार जी डी पी बता रही उसमें 2 से 2.5फीसदी का फर्क। अगर 6.8है तो 4.3%अगर 7 है तो 4.5%।सरकार अपना पक्ष रखने की बजाय गोल मोल जबाब दे रही है।दूसरी तरफ कुछ उद्योगपति  खुल कर कहने लगे जिसमे राहुल बजाज का कहना ,अर्थव्यवस्था बुरे हाल में व्यापार करना मुश्किल ,सरकारी आंकड़े जूठे।वर्ल्ड बैंक,आई एम एफ के आंकड़े चरमराती अर्थव्यस्था की ओर इशारा। तरक्की हो नहीं रही ,एफ डी आई आ नहीं रही।खरीदने वाला ग्राहक बाजार में नहीं।एक रिपोर्ट के अनुसार ऑटो सेक्टर में ही पिछले तीन महीनो में करीब 2.5लाख की छटनी की गई।इसी तरह रेलवे में 3लाख कर्मचारी जो 50 से ऊपर के है उनको निकालने की तैयारी।लेकिन गोदी मीडिया खामोश।टेलीकॉम सेक्टर खस्ताहाल  वोडाफ़ोन-आईडिया जिनके शेयर में अप्रत्याशित गिरावट 10 वाला शेयर 5 रु तक पहुच गए ।करीब 2.5 लाख अभी तक लोग नौकरी से निकाले जा चुँके है।लेकिन अफ़सोस इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं ।बस प्रचार प्रसार  5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यस्था का है। वह कैसे होगी? मीडिया की हिम्मत नहीं सरकार से पूछे ।वर्ल्ड बैंक द्वारा आर्थिक आधार पर दी गई रेटिंग में भारत 5वे पायदान से खिसकर  2.६५ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यस्था के साथ सातवें न0 पर फ्रांस से नीचे आ गया ।बैंको की खस्ताहाल को सुधारने के लिए आर बी आई द्वारा लगातार रेपो रेट में गिरावट आज यह 2015 के 7.5%से गिरकर 6जून 2019 में 5.75% रह गया इसमे 25 अंक की और गिरावट जिसके संकेत।लेकिन ग्राउंड रियलिटी से कौन रूबरू कराए ।

अब सवाल है क्या पत्रकारिता के लिए माहौल है?शायद नहीं,सूचनायें मिलने  के जो संसाधन  मसलन आर टी आई के  नए एक्ट के तहत आसान नहीं।विभागों से जो सूचनाये अभी तक लीक होती थी अब नामुमकिन ।अगर ऐसा हुआ तो विभाग के ज़िम्मेदार की गर्दन नपेगी तो यह चैनल भी कारगर नहीं तो आपको न्यूज़ मिलेगी नहीं,ग्राउंड रिपोर्टिंग की अनुमति नहीं तो आप जो हो रहा है उसमें बह जाए ।अपने ज़मीर को तिजोरी में बंद कर दे।

विपक्ष आज है नहीं,जो सरकार से सवाल पूछे ,मीडिया  सरकार के विज्ञापन द्वारा जो पूंजी की बरसात हो रही है उसमें भीग रहा है।तो वह सवाल पूछेगा नहीं।जनता को जो सरकार चाहेगी परोस कर देगी वही सच होगा जिसको वह सहर्ष स्वीकारेगी।धीरे धीरे शून्यता संसद -आम जन में घर कर लेगी ।राजनीतिक सत्ता तब  समझने लगेगी जो हम कर रहे सही है कोई बताने वाला नहीं आवाज़ उठाने वाला नहीं तो क्या होगा?होगा क्या वर्ल्ड का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश जो प्रेस फ्रीडम में 180 देशो में 142 वे पायदान पर है।उन देशों की श्रेणी में सबसे ऊपर होगा जहाँ  जानकारी का,सूचना का अँधेरा है। सरकार की नीतियों की मुखाफलत करने पर कोपभाजन का शिकार बनने का या उससे भी खराब स्थीति हो सकती है आपको आतंकवादी या देशद्रोही घोषित कर दिया जाय क्योंकि इसका भी इंतजाम सरकार ने कानून में बदलाव करके कर लिया है। बेहतर होगा खामोश रहें जो है उसी में मस्त रहें।

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