अलविदा फ्लाइंग सिख: कई वर्षों के संघर्ष के बाद भारत का सितारा बने थे फ्लाइंग मिल्खा सिंह

संक्षेप:

  • संघर्षो से भरी रही मिल्खा सिंह की जिंदगी
  • बंटवारे के बाद छिपकर दिल्ली पहुंचे थे मिल्खा सिंह
  • सेना में शामिल होने के बाद धावक के रूप में हुई पहचान

लखनऊ- फ्लाइंग सिख के नाम से पूरे दुनिया में मशहूर भारत के दमदार धावक मिल्खा सिंह का जीवन संघर्षों से भरा रहा। मिल्खा सिंह का जन्म पाकिस्तान के गोविंदपुरा में हुआ था। आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान बंटवारे और अपनों को खोने का गम उन्हें ता उम्र रहा। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद ट्रेन की महिला बोगी में सीट के नीचे छिपकर दिल्ली पहुंचे मिल्खा सिंह ने शुरूआत में शरणार्थी शिविर में रहें। इसके बाद अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए मिल्खा सिंह ने कई ढाबों पर बर्तन भी साफ करने का काम किया।

बाद में सेना में शामिल हुए मिल्खा सिंह ने धावक रूप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने अपने जीवन में कुल 80 अंतरराष्ट्रीय दौड़ों में हिस्सा लिया जिसमें से उन्होंने 77 दौड़ों में जीत हासिल की, पर रोम ओलंपिक में मेडल न जीत पाने का मलाल मिल्खा सिंह को हमेशा रहा। उन्होंने कई दफा कहा कि वह जीते जी भारतीय खिलाड़ी को ओलंपिक के दौड़ में मेडल जीतते देखना चाहते हैं। अफसोस इस बात का है कि मिल्खा सिंह का सपना उनके जीते जी पूरा नही हो सका है।

20 नवंबर 1929 को पाकिस्तान के गोविंदपुरा में जन्मे मिल्खा सिंह एक सिख राठौर परिवार से थे। मिल्खा अपने मां-बाप के कुल 15 संतानों में से एक थे। मिल्खा सिंह के कई भाई-बहनों की मौत छोटी उम्र में ही हो गई। इसके बाद बंटवारे की आग में उन्होंने अपने माता-पिता, एक भाई और दो बहनों को अपने आंखो के सामने जलता देखा। इतने भयावह मंजर को अपनी आंखो से देखने के बाद मिल्खा सिंह पाकिस्तान से ट्रेन से महिला बोगी के डिब्बे में बर्थ के नीचे छुपकर दिल्ली पहुंचे।

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कई दिनों तक अपना गुजारा करने के लिए मिल्खा सिंह पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास कई ढाबों में बर्तन साफ किए। अपने मलखान सिंह के कहने पर मिल्खा सिंह ने सेना में जाने की ठानी और चार कोशिशों के बाद आखिरकार 1951 में भारतीय सेना में शामिल हो गए। सेना में शामिल होने के बाद उन्होंने क्रास कंट्री रेस में छठे स्थान हासिल किया। सेना ने उनके इसी प्रतिभा को देखते हुए उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग देने के लिए चुना।

1958 कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में उन्होंने 200 और 400 मीटर दोनों दौड़ों में गोल्ड मेडल अपने नाम कर राष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया। उन्होंने इसी वर्ष ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर रेस की प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीत कर देश का नाम पूरी दुनिया में ऊंचा कर दिया। राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले वह स्वतंत्र भारत के पहल धावक बने।

मिल्खा सिंह को भारत सरकार ने 1958 में ही पद्मश्री दे दिया था। इसके बाद भारत सरकार ने उन्हे 2000 में अर्जुन पुरस्कार दिया, जिसे मिल्खा सिंह ने लेने से मना कर दिया था। इस फ्लाइंग सिख के ऊपर एक फिल्म भी बन चुकी है जिसमें मिल्खा सिंह का किरदार प्रसिद्ध निर्देशक, गायक, और एक्टर फरहान अख्तर ने निभाईं थी।

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