राम मंदिर, बाबरी मस्जिद सुनवाईः क्या मस्जिद में नमाज अदा जरुरी हैं, जानिए मौलानाओं की राय

संक्षेप:

  • मुस्लिम धर्मगुरुओं ने कहा नमाज मस्जिद में अदा होनी चाहिए
  • मौलाना यासूब अब्बास ने कहा सुप्रीम कोर्ट हमारी भवनाओं का रखें ख्याल
  • हिंदुस्तान में सभी धर्मों का है विशेष स्थान

लखनऊः सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या में राम मंदिर बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा की जरूरत पड़ी तो हम 1994 के संवैधानिक बेंच के फैसले को दोबारा विचार के लिए संवैधानिक बेंच को भेज सकते हैं इस मुद्दे पर NYOOOZ ने राजधानी लखनऊ के बड़े मुस्लिम धर्मगुरुओं और आम जनता की राय जानी

जिसमें मौलाना यासूब अब्बास ने NYOOOZ से बातचीत में कहा कि अच्छा तो यही होगा कि नमाज मस्जिद के अंदर पढ़ी जाए लेकिन सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला ले जिससे मुस्लिम भावनाओं को ठेस न पहुंचे। वहीं धर्मगुरु मौलाना सैफ अब्बास नकवी ने कहा कि अक्सर हिंदू धर्म में भी भजन कीर्तन के लिए मंदिर के बाहर की जगह का प्रयोग किया जाता है।

उन्होंने कहा कि मस्जिद में भी जगह कम पड़ने के चलते बाहरी जगह का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि जो भी फैसला कोर्ट ने लिया था। वह बहुत ही उम्दा फैसला था और अब इस पर दोबारा कहासुनी का मतलब है कि केवल सियासत करना। उनका कहना है कि हमारे देश के अंदर कुछ लोग ऐसे हैं जो जनता को जोड़ने की सियासत नहीं तोड़ने की सियासत करते हैं।

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वहीं लखनऊ के रहने वाली मिर्जा वाहिद हुसैन ने कहा कि वैसे तो आमतौर पर देखा जाए तो मस्जिद में ही नमाज अदा करना ज्यादा सही रहता है लेकिन यह जरूरी नहीं कि केवल मस्जिद में ही नमाज अदा हो अगर आप पाक साफ है तो कहीं भी नमाज अदा कर सकते हैं। वह आगे कहते हैं की पक्षकारों का कहना है मस्जिद के मुद्दे पर दोबारा सुनवाई हो वह इसलिए है कि खुदा की इबादत में मस्जिद को अच्छा स्थान माना जाता है।

वहीं राजधानी के निवासी गुलरेज नकी ने कहा कि अगर हम मस्जिद को धर्म से जोड़े तो मस्जिद एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है उन्होंने इस मुद्दे को धर्म से जोड़ते हुए बताया कि अगर आप घर पर नमाज पढ़ेंगे तो उसका फल आपको उतना अच्छा नहीं मिलेगा जितना कि आपको मस्जिद में नमाज अदा करने के बाद मिलेगा। साथ ही कहा कि मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं ऐसा हमारे पवित्र ग्रंथों में लिखा हुआ है।

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