अयोध्या फैसला: इस दलील के साथ रिव्यू पिटिशन दाखिल करने जा रहा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

संक्षेप:

  • किसी दूसरे की संपत्ति में `अवैध रूप से रखी मूर्ति` क्या देवता हो सकती है?
  • अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यह दलील देने वाला है.
  • इस मसले पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने पुनर्विचार याचिका दायर करने से इनकार किया है.

अयोध्या: किसी दूसरे की संपत्ति में `अवैध रूप से रखी मूर्ति` क्या देवता हो सकती है? अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यह दलील देने वाला है। इस मसले पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने पुनर्विचार याचिका दायर करने से इनकार किया है, लेकिन पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले को गलत मानते हुए रिव्यू की बात कही है। बोर्ड की तरफ से दिसंबर के पहले सप्ताह में अर्जी दायर की जा सकती है।
पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव और बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा, `बाबरी मस्जिद से जुड़े राम चबूतरे के पास रखी राम लला की प्रतिमा की 1885 से ही पूजा की जाती रही है और उसे हिंदू देवता का दर्जा प्राप्त है। हमने इसे कभी चुनौती नहीं दी।` लेकिन, जब बाबरी मस्जिद की बीच वाली गुंबद के नीचे प्रतिमा को रखा गया तो यह गलत था। सुप्रीम कोर्ट ने खुद फैसला सुनाने के दौरान यह टिप्पणी की थी। जिलानी ने कहा कि किसी और की प्रॉपर्टी में प्रतिमा को जबरन रखा जाए तो वह देवता नहीं हो सकती।

राम लला की मूर्ति को 22-23 दिसंबर, 1949 की दरमियानी रात को बाबरी मस्जिद के गुंबद के ठीक नीचे रखा गया था। इस कार्रवाई को खुद सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर के अपने फैसले में अवैध करार दिया था। जिलानी ने कहा, `देवता के पास 1885 से 1949 तक अपनी प्रॉपर्टी के लिए न्यायिक अधिकार था, जब तक उनकी पूजा राम चबूतरे पर की जाती थी।`

जिलानी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद को स्वीकार किया है और यह कहा है कि 1857 से 1949 तक यहां मुस्लिम समाज के लोग नमाज पढ़ते थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि मस्जिद परिसर में 1949 में अवैध तरीके से मूर्तियों को रखा गया। जिलानी ने कहा कि यदि परिसर में मूर्तियां अवैध ढंग से रखी गई हैं तो फिर वह देवता कैसे हैं।

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