बाबरी मस्जिद विवादः सुप्रीम कोर्ट में अब 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई

संक्षेप:

  • अब 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई
  • स्वामी की दलीलों पर वक्त बोर्ड की काट
  • शिया वक्फ बोर्ड ने मामले में डाला नया पेंच

लखनऊः अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ और गवाहियों के अनुवाद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 12 हफ्तों का वक्त दिया गया है. वहीं मामले के एक पक्षकार रामलला विराजमान की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चार हफ्तों का वक्त दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर तय करते हुए साफ किया कि किसी भी पार्टी को अब आगे और मोहलत नहीं दी जाएगी और ना ही केस स्थगित की जाएगी.

बता दें कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में दर्ज हैं, जिस पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेज़ों को अनुवाद कराने की मांग की थी.

बता दें कि अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को शुरू हुई सुनवाई में यूपी सरकार की तरफ से एसोसिएट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सबसे पहले पक्ष रखते हुए मामले की सुनवाई शीघ्र पूरी करने की मांग की, तो वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इस बात पर आपत्ति जताई कि उचित प्रक्रिया के बिना यह सुनवाई की जा रही है.

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वहीं मामले में एक वादी सुब्रमण्यम स्वामी ने विवादित स्थल पर लोगों को पूजा करने का अधिकार देने की मांग की. इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने तमाम वादियों को सबसे पहले यह स्पष्ट करने को कहा कि कौन किसकी तरफ से पक्षकार है. इस पर सुन्नी बोर्ड की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मामले के कई पक्षकारों का निधन हो चुका है, ऐसे में उन्हें बदलने की जरूरत है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज कई भाषाओं में हैं, ऐसे में पहले उनका अनुवाद कराया जाना चाहिए.

स्वामी की दलीलों पर वक्त बोर्ड की काट

अयोध्या विवाद पर सुनवाई के दौरान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह कोई दीवानी विवाद नहीं, बल्कि मौलिक अधिकारों का मामला है. इसके साथ ही स्वामी ने इसे दीवानी से बदलकर सार्वजनिक हित के मामले की तरह देखा जाए.

स्वामी की इस दलील पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध जताते हुए कहा, यह सवाल तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही हल कर चुका है. वक्फ बोर्ड के वकील सिब्बल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने 1994 में ही यह फैसला सुनाया था कि इस जमीन के मालिकाना हक से जुड़े दीवानी मामले की अलग से सुनवाई की जाएगी.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बेहद अहम मामले के निपटाने के लिए तीन जजों- जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की विशेष बेंच गठित की है. यह बेंच इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों को चुनौती देने वाली याचिकाओं और विवादित जमीन के मालिकाना हक पर फैसला के लिए रोजाना सुनवाई करेगी.

शिया वक्फ बोर्ड ने मामले में डाला नया पेंच

इस सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने अदालत में अर्जी लगाकर मामले में नया पेंच डाल दिया. शिया बोर्ड ने विवाद में पक्षकार होने का दावा किया था. शिया वक्फ बोर्ड ने 70 साल बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी करार दिया गया था. 

शिया वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल पर बताया अपना हक

अपनी अर्जी में शिया वक्फ बोर्ड ने माना है कि मीर बाक़ी ने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था. पहली बार किसी मुस्लिम संगठन ने आधिकारिक तौर पर माना कि विवादित स्थल पर राम मंदिर था. गौरतलब है कि मंगलवार को शिया वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था. शिया बोर्ड का सुझाव है कि विवादित जगह पर राम मंदिर बनाया जाना चाहिए. इस मामले में रामजन्म भूमि मंदिर ट्रस्ट और सुन्नी वक्फ बोर्ड पक्षकार हैं, क्योंकि विवादित स्थल पर अधिकार को लेकर शिया बोर्ड 1946 में सुन्नी बोर्ड से केस हार चुका है.

राम जन्मभूमि से दूर बने मस्जिद

हलफनामे में कहा गया है कि अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थल से एक उचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में मस्जिद बनाई जा सकती है. शिया वक्फ बोर्ड ने हलफनामे में कहा कि दोनों धर्मस्थलों के बीच की निकटता से बचा जाना चाहिए, क्योंकि दोनों ही के द्वारा लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल एक-दूसरे के धार्मिक कार्यों में बाधा की वजह बन सकता है. शिया वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि इस मामले से सुन्नी वक्फ बोर्ड का कोई संबंध नहीं है, क्योंकि मस्जिद एक शिया संपत्ति थी. इसलिए मामले के शांतिपूर्ण निपटारे के लिए इसके अन्य पक्षों से बातचीत का हक केवल शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश को है.

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