देश आर्थिक आपातकाल की तरफ, इसकी सुगबुगाहट बीजेपी के अंदर भी उठ रही

संक्षेप:

  • गोदी मीडिया को साँप सूंघ गया है
  • एन एच ए आई को चिट्टी लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
  • आर बी आई की ऑटोनोमी पर आज सवालिया निशान है

By: मदन मोहन शुक्ला

गोदी मीडिया को साँप सूंघ गया है वह प्रोपगंडा के तहत अनुच्छेद 370,राहुल गांधी इमरान, हिन्दू मुस्लिम में ही उलझ के रह गया है।आर्थिक हालात देश के बेपटरी हो गए लेकिन मीडिया के एक धड़े को सब हरा हरा ही दिख रहा है ,हिम्मत नहीं की पी एम मोदी से पूछे ऐसे हालात पर सवाल,  सरकार क्या कदम उठा रही है? एक ख़ामोशी गोदी मीडिया पर छाई है।जबकि बीजेपी के अंदर ऐसा नहीं है ।चिंता बीजेपी के अंदर से छनकर आ रही है।सुब्रमण्यम स्वामी ने हाल ही में ट्वीट कर के कहा "अगर कोई आर्थिक नीति नहीं आ रही है तो 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थ व्यवस्था को गुड-बाई कहना होगा बहादुरी और स्थिर ज्ञान बर्बाद होने से नहीं रोक सकते ।अर्थ व्यवस्था के लिए दोनों की ज़रुरत होती है जो आज हमारे पास नहीं है।"

बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी  ने कहा आज ऐसे नेतृत्व की ज़रूरत है जो प्रधान मंत्री से निडर होकर सवाल कर सके?भारत को ऐसे नेतृत्व की ज़रुरत है जो खुल कर प्रधानमंत्री से बहस कर सके सवाल कर सके बिना किसी चिंता, नफ़ा-नुकसान के।"पर ऐसा नहीं है।बीजेपी सांसद जिन्होंने 2014 एवं 2019 का चुनाव मोदी जी के करिश्माई व्यक्तित्व के बदौलत जीता कुछ तो ऐसे है जो ग्राम प्रधानी का चुनाव भी नहीं जीत सकते ,यह मोदी भी भली-भांति जानते हैं  इसीलिये इनको कोई तवज्जो नहीं दी जाती वह केवल संख्या बल हैं।जो कुछ थोड़े बहुत है उनसे मोदी ने दूरी बना के रखी है।मोदी ने बस कुछ अधिकारी जो गुजरात की पृष्ठभूमि से आते है और इसके अलावा गृह मंत्री अमित शाह यही जिन पर मोदी विश्वास करते हैं लेकिन निर्णय मोदी स्वयं खुद लेते है लागू करने की ज़िम्मेदारी पी एम ओ की होती है।जैसे नोट बंधी स्वयं मोदी का निर्णय था इसमें तो कहा जाता है वित्त मंत्री को भी जानकारी नहीं थी और तो और आर बी आई को भी विश्वास में नहीं लिया गया था। जब प्रधानमंत्री देश के सामने नोटबन्धी की घोषणा कर रहे थे तब उस समय के तत्कालीन आर बी आई गवर्नर उर्जित पटेल फ्रेम में कहीं  नहीं थे। जबकि इस तरह के संवेदनशील निर्णय जो नीतिगत होते हैं और वित्त से सम्बंधित होते हैं उसकी घोषणा आर बी आई गवर्नर ही करता है।वित्त मंत्री भी उपस्थित रहता है, जैसा की इसमें नहीं हुआ हश्र आपके सामने है और रही सही कसर जी एस टी ने पूरी कर दी।

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नाना पटोले महाराष्ट्र से बीजेपी सांसद थे  अब कांग्रेस में है।2014 में मोदी सत्ता में आये तो मोदी सरकार ने जो किसानों से वायदा किया था उससे अलग जाते हुए उच्चतम न्यायलय में एफिडेविट देकर कहा स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट लागू नहीं करेंगे  जिसका इन्होंने विरोध किया और मोदी से जब कहा यह किसानों से वायदा खिलाफ़ी है तो उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जबकि नाना पटोले का मानना था खेती की भागी दारी 85 फीसदी होनी चाहिए जिसको अनसुना किया गया।इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सांसदों के लिए अपनी बात रखना कितना मुश्किल है।बीजेपी सांसद मोदी फोबिया के शिकार हैं ।अटल जी जब प्रधानमंत्री थे, जैसा की मुरली मनोहर जोशी कहते है पार्टी के अंदर एक फोरम था जिसमे सबको अपनी बात कहने की आज़ादी थी अगर कोई बात सरकार की नीतियों को लेकर थी तो यह बात सरकार तक पहुचाई जाती थी लेकिन आज ऐसा कुछ नहीं, मोदी जो उचित समझते है वही लागू होता है इसमें कोई इफ एंड बट नहीं है।

आज पार्टी ,मोदी और देश के हित में ज़रूरी है अहम् मुद्दों पर पार्टी के अंदर विचार विमर्श के बाद विपक्षी पार्टियों को भी विश्वास में लेकर प्रतिशोध की राजनीती से हट कर  इन जटिल परिस्थीतियों से निपटने के उपाय ढूंढना चाहिए।डॉ मनमोहन सिंह ने भी मोदी से कहा था देश की अर्थ व्यवस्था डूब रही इसका कारण मंदी नहीं आप है ।सपनो की दुनिया से बाहर आकर ठोस कदम उठाए।सरकार अगर यह मान रही सब कुछ सामान्य है और भारत की अर्थ व्यस्था इतनी वृहद ,बहुआयामी एवं डाइवर्सिफाइड है खुद व्यवस्था को ठीक कर लेगी तो यह सरकार के लिए आत्महत्या करने के समान होगी जिससे सरकार को बचना होगा।

अभी हाल में सरकार के कामकाज पर नितिन गडकरी ने सवाल उठाते हुए कहा न मैं सरकार के पास जाता हूं न सरकारी मदद लेता हूं,मेरा निजी अनुभव है जहाँ सरकार का हाथ वहां सत्यानाश।

इससे कुछ दिन पहले नितिन गडकरी ने कहा था सड़कों के निर्माण में हमारा लक्ष्य 15 ट्रिलियन तक निवेश का है उसके ठीक कुछ दिन बाद पी एम ओ के यहां से प्रधान मंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा  का पत्र जिसमें एन एच ए आई को निर्देश दिया गया की वह सड़के बनाना छोड़ दे और उसे ट्रेडिशनल मॉडल पर लौटने कि सलाह दी गई।हाइब्रिड एन्युटी मॉडल पत्र के अनुसार औचित्य हीन हो चुका है तथा टोल ट्रांसपोर्ट मॉडल पर कार्य करने के अलावा और कई सलाह दी गयी थी यह चिट्टी 17 अगस्त की थी इस संदर्भ में जबाब एक हफ़्ते में माँगा गया था, उसके बाद गडकरी का स्टेटमेंट और 30 अगस्त को नृपेंद्र मिश्रा पद छोड़ने की मंशा ज़ाहिर करतें हैं जो स्वीकार कर लिया जाता है।

यहां सवाल उठता है एन एच ए आई को चिट्टी लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ी?इसका सीधा साधा कारण है एन एच ए आई का दिवालिया होना।आंकड़े बतातें हैं कि 2017-18 में 17655 किलोमीटर सड़क बनी,2018-19 में 5693 किलोमीटर 68% कमी आई वही 2019-20 में केवल 500 किलोमीटर 98% सड़क निर्माण में कमी और घाटा बढ़ कर 1.78लाख करोड़ हो गया।दिवालिया होने का सबसे बढ़ा कारण लैंड रिफार्म में लैंड कॉस्ट बढ़ गई जो एन एच ए आई दे नहीं पाई डिफाल्टर हो गई।2015 में जो कंपनसेशन 92 लाख रु0 प्रति हेक्टेयर था वह 2016 में 135 ,2017 में 236 , 2018 में 238 और 2019 में बढ़ कर 308 लाख रु प्रतिहेक्टेयर हो गया।एन एच ए आई को सरकार की गलत नीतियों ने बर्बाद कर दिया।अब सरकार एन एच ए आइ को सलाह दे रही है रोड एसेट मैनेजमेंट कंपनी बनाने की जिसमें प्राइवेट प्लेयर को कई सुविधाएं देकर पार्टनर बनाने की कवायद चल रही है। एन एच ए आई को दिवालियेपन से निकालने और ऑपरेशनल परफॉरमेंस सुधारने  के लिए स्टेट बैंक ने 25000 करोड़  रु का सॉफ्ट लोन दिया है और एल आई सी करीब 1.25 लाख करोड़ रु  देगी अपनें खर्चो के संचालन के लिए।

किस तरह सरकारें एक एक करके सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को बर्बाद कर रहीं है इसका जीता जागता उदाहरण बी एस एन एल जिसका गठन 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में हुआ था।2004 आते आते करीब 20,000 करोड़ के फायदे में आ गई थी 2008 में इसके पास करीब 45,000 करोड़ और खाते में जमा हो गए थे।लेकिन 2008 इसके लिए बहुत बुरा साल रहा जब 2जी स्पेक्ट्रम में मन मोहन सरकार के संचार मंत्री ए राजा ने 2जी स्पेक्ट्रम के आबंटन से बी एस एन एल को बाहर रखा और एयरटैल, आईडिया ,वोडाफ़ोन एवं रिलायंस कम्युनिकेशन को वरीयता दी।यू पी ए  सरकार के काल में 2008 में करीब 1.76 लाख करोड़  2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला होता है ,उस समय स्पेक्ट्रम आवंटन से सरकार को सिर्फ 9,407 करोड़ की आमदनी हुई थी जो की सरकार के अनुसार (30,984 करोड़ रु )का एक तिहाई था।कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा था कि यू पी ए सरकार ने स्पेक्ट्रम आवंटन के बजाय यदि नीलामी की नीति को अपनाया होता तो सरकारी खजाने को 1.76 लाख करोड़ रु की आय होती।जो मन मोहन सरकार के पतन का कारण बना। मोदी सरकार ने जाँच कराई अंतत्वोगत्वा जाँच एजेंसीज के लचर रवैये से सारे अभियुक्त साक्ष्य के अभाव में छूट गए।इस केस के जज ने अपने जजमेंट में जाँच एजेंसीज पर सख्त टिप्पड़ी की कि जाँच एजेंसीज ने जाँच में लापरवाही एक पक्ष का फ़ेवर और तर्क हीन दलील जो कारण बना अभियुक्तों के छूटने का।

यही बी एस एन एल , जब 2014 में मोदी सरकार में आए तो तारीफ़ करते नहीं थकते थे यह सरकारी क्षेत्र की नवरत्न कंपनी में एक थी 20,000करोड़ के फायदे में थी इसके पास जो सम्पति थी :जमीन 1लाख करोड़,टावर 20000 करोड़,ऑप्टिकल फाइबर 20,000 करोड़,करीब 1.76लाख कर्मचारियों की फौज।लेकिन 2016 में फिर बी एस एन एल का दुर्भाग्य ने पीछा किया मोदी सरकार ने सोची समझी नीति के तहत मुकेश अंबानी की कंपनी जियो जिसका जन्म 2016 में होता है और मोदी कुछ समय तक ब्रांड अम्बेसडर भी रहे उसको 4जी स्पेक्ट्रम बिड में वरीयता देते हुए एक बार फिर बी एस एन एल को बिड से बाहर रखा।आज बी एस एन एल 90,000 करोड़ के घाटे में आ गयी और इसके पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं वहीं मोदी की मेहरबानी से जियो जीओ  और बी एस एन एल बर्बाद हो गयी।कमोबेश यही हाल एच ए एल का हुआ उसे भी मोदी सरकार ने राफेल सौदे से बाहर रखा और अनिल अंबानी की कंपनी को सौदे में भागीदार बनाया जबकि यह कंपनी खुद 45,000 करोड़ के घाटे में थी।आज एच ए एल जो कभी फायदे में थी आज घाटे में है।सरकारी क्षेत्र की कंपनियों की एक लंबी चौड़ी लिस्ट है जो मोदी काल में बर्बादी को परवान चढ़ी इसमें ओ एन जी सी ,आईं एल एफ एस(इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंसियल सर्विसेज)।

मोदी सरकार की अदूरदर्शी नीति के कारण आई एल एफ एस पर आज 91,000 करोड़ का क़र्ज़ है।2014 में इसके शेयर जो 240 पर ट्रेड कर रहे थे आज 23-24 रु पर ट्रेड हो रहा है।यह कंपनी बड़े बड़े ठेके लेती थी और दूसरों से काम करवाती थी।कुछ सरकारी प्रोजेक्ट में पैसा लगाया जो डूब गया।लिक्विडिटी की कमी हो गयी,आई डी बी आई जिससे क़र्ज़ लिया था कर्ज न चुका पाई।क्रेडिट एजेंसी ने रेटिंग घटा दी तब शेयर धारकों ने पैसा माँगा ।यहीं से बर्बादी शुरू हो गयी।आज देश आर्थिक मंदी के मुहाने पर खड़ा है।अभी हाल ही में आर बी आई ने सरकार को 1.76लाख करोड़ रु अपने इमरजेंसी फंड से दिया है जिसमे कुल जमा राशि करीब 2.32 लाख करोड़ थी।तथा गोल्ड 6.50लाख करोड़ ,बांड 22800 करोड़,फॉरेन  करेंसी करीब 13825 करोड़ आदि को लेकर आर बी आई के पास 9.60लाख करोड़ से ऊपर की धनराशि जमा है। जिसमे 1.76 लाख करोड़ निकल चुकें हैं।इस राशि के लिए सरकार 2016 से दबाब आर बी आई पर बना रही थी जिसका परिणाम हुआ कि पहले उर्जित पटेल गवर्नर आर बी आई ने निजी कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया फिर विरल आचार्य डिप्टी गवर्नर जिन्होंने इस संस्था की स्वतात्या तथा सरकार की बेवजह दखल पर गंभीर परिणाम के संकेत दिए थे। बाद में  2018 में उन्होंने भी आर बी आई को अलविदा कह दिया।आर बी आई गवर्नर शक्ति कान्त दास बनते हैं और सरकार यह रकम लेने में सफल होती है।कांग्रेस ने कहा अर्जेंटीना से सबक लेना चाहिए जो आज दिवालिया होने की तरफ बढ़ रहा है एक तिहाई जनता घोर गरीबी और भुखमरी में जी रही है।

आर बी आई की ऑटोनोमी पर आज सवालिया निशान है ,सरकार की बेवजह दखल दूसरा सवालिया  निशान है सरकारों को इस संस्था को ऑटोनोमी देनी होगी कि वे निर्णय, वितीय मौद्रिक स्थिरता को बरकार कैसे करें ,उसके लिए प्रयत्नशील हों।

पूर्व गवर्नर रघु राजन कहते है कि मुफ्त का खाना नहीं बट रहा इससे आर बी आई को कितना नुकसान हो रहा है ।आगे वह कहते है उर्जित पटेल ने क्यों इस्तीफा दिया यह सरकार जानती है।विरल आचार्य पूर्व डिप्टी गवर्नर ,कहतें है जो बैंको की स्वतात्या की इज्जत नहीं करते उन्हें वितीय बाज़ारो का खामियाजा भुगतना पड़ता है।सरकारें दूरगामी रिस्क नहीं देखती बस पैसा ले लिया खर्च करने के लिए।स्वतंत्रता कम करने के खतरनाक नतीज़े हो सकते हैं।पूंजी बाजार में विश्वास का संकट पैदा कर सकता है जहाँ सरकारें अपने खर्चे पूरा करने के लिए कर रही है।वितीय बाज़ारों का क्रोध झेलना होगा और उस दिन को कोसना होगा क्यों इनकी स्वतंत्रता में दखल दिया। "

यहाँ सवाल उठता है कि आखिर आर बी आई से पैसा लेने की ज़रूरत क्यों पड़ी।इस पर सरकार खामोश है।क्या खुद के कहीं खर्चे के लिए तो नहीं,अगर ऐसा है तो यह दूसरा अर्जेंटीना बन जायेगा।इस धन को सरकार को बहुत सोच समझ उन सेक्टर को देना होगा जहाँ से पैसा आये।जो सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित है जैसे ऑटो सेक्टर,टेलीकम्यूनिकेशन  इनको बूस्ट अप कैसे किया जाये इनको बैंको से सॉफ्ट लोन,स्टिमुलस फण्ड से मदद की जा सकती है।इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश भी एक अच्छा परिणाम रोजगार देने में हो सकता है।तथा सबसे बड़ी बात सरकार को अपने खर्चो में कटौती करनी होगी।

लिकुडीटी क्रंच से निकलना होगा।आज जो देश के आर्थिक हालात है वह चिंतनीय है जी एस टी संग्रह 2018-19 में 98,000 करोड़ जो 2017-18 में  1.20 लाख करोड़ था।आठ कॉर्पोरेट हाउसेस की ग्रोथ रेट 0.2%,कृषि विकास दर 20 सालो में सबसे कम लेकिन सरकार कह रही है सब कुछ ठीक है।सरकार जो आंकड़े दे रही है वह भ्रामक है।जी डी पी  दूसरे तिमाही में 5% पर है।कर संग्रह पहली तिमाही में 1.4%जबकि साल का टारगेट 18%का है।बेरोज़गारी 2011-12 में जो 2.1% थी वह आज 45 साल के सबसे उच्चतम स्तर 6.1% पर है।डॉलर के मुकाबले रु कमजोर,फिस्कल डेफिसिट 5%,महंगाई 8% है।डायरेक्ट टैक्स 21% से घट कर 4.2%पर आ गया है।

सार यही निकलता है मोदी सरकार के लिए आने वाले महीने कड़ी परीक्षा वाले है।इस दौरान कृषि,ऑटोमोबाइल,टेलीकम्यूनिकेशन,इंफ्रास्ट्रक्चर को साधना तथा उत्पादन तथा उपभोक्ता की क्रय क्षमता में सामंजस्य बैठाना, पूंजी कैसे जेनेरेट हो उसके उपाय खोजना,रोज़गार को पैदा करना, प्राथिमकता पर लेना होगा।रुग्ण पड़ी इंडस्ट्रीज को पटरी पर लाने के उपाय करने होंगे जिससे इन पर आश्रित कर्मचारियों के परिवारों में भुखमरी की नौबत न आये।

जो उपाय सरकार को करने चाहिए वह है जी एस टी का और सरलीकरण ,रुग्ण पड़ी इंडस्ट्रीज को टैक्स में रियायतें। लैंड रिफार्म,टैक्स रिफार्म एवं कैपिटल रिफार्म पर कोई नीति लानी होगी। प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना और रेलवे पर ध्यान देना होगा जो बेरोज़गारी दूर करेगा।अब भी अगर मोदी सरकार सपनो की दुनिया से बाहर नहीं आई तो यही कहना पड़ेगा "सब कुछ लूटा के होश में आए तो क्या किया? दिल में अगर चिराग जलायें तो क्या किया?

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