जंगल के जंगल साफ हो रहें, सरकार कह रही पेड़ तो लग रहे हैं

संक्षेप:

  • आम जन पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति से चिंतित
  • प्रकृति के विकराल कोप से होनेवाली तबाही के लिए रहें तैयार
  • आरे के जंगल पर शिवसेना और अन्य विपक्षी चुनावी रोटी सेक रहे हैं

By: मदन मोहन शुक्ला

कटे पेड़ के ठूठ से,तने से लिपट कर रोना दर्शाता है कि कटते पेड़ सिमटते जंगलों से आज आम जन पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति से चिंतित है लेकिन सरकार को विकास चाहिए ।हमारे पर्यावरण मंत्री आरे कॉलोनी के जंगलों के पेड़ों की कटाई को सही ठहराते हैं उनका कहना दिल्ली में मेट्रो बनी तो हमने अगर एक पेड़ काटा तो पांच लगाए ।लेकिन इन पांच का क्या हश्र हुआ इसका कोई आंकड़ा है मंत्री महोदय।

पर्यावरण मंत्री महोदय जो विकास के नाम पर भू-माफिया अवैध तरीके से जंगलो को काट रहे है, अफ़सोस सरकार के पास कोई आंकड़ा  नहीं।जंगल काट कर यहां की सोने सी भी महंगी जमीन को नेता-भू माफिया मिलकर प्रदेश सरकार की मौन सहमति से वारे-न्यारे कर रहें इसका खामियाजा हम अक्सर मुम्बई में पिछले कई सालों से देख रहें हैं ।क्या हालत होती है जब मुम्बई में बरसात होती है,यही हमने केरला, चेन्नई में देखा बाढ़ का कहर और पीने के पानी के  लिए तड़पन।लेकिन हम सुधरने को तैयार नहीं।अब आगे तैयार रहें प्रकृति के विकराल कोप से होनेवाली तबाही के लिए।तब मंत्री महोदय कोई जबाब नहीं होगा सिवाय अफ़सोस करने के।

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आरे कॉलोनी का जंगल जो मुम्बई में गोरे गांव से पवई के रास्ते मे 4लाख से अधिक पेडों से आच्छादित इलाका है। मुम्बई हाइकोर्ट के जस्टिस एम सी धर्माधिकार की पीठ ने इसे जंगल मानने से इंकार कर दिया इसके बाद से पेड़ काटने की तत्परता ऐसी थी कि आदेश आने के तुरंत बाद 24 घंटे के भीतर 2100 से अधिक पेड़ काट दिए गए क्योकि यहाँ मेट्रो का कार शेड बनना है।

हाई कोर्ट ने आरे के पेड़ों को जंगल नही माना क्या इसका मतलब यह है कि यहाँ के जीवों का भी कोई अस्तित्व नही है।यहां के आदिवासियों को यह डर सता रहा कि कल कोर्ट हमे इंसान मानने से इंकार कर दें ।फिलहाल पर्यावरण संरक्षक और स्थानीय निवासियों के भारी विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ो की कटाई पर रोक लगा दी है ,कोर्ट ने यथा स्थिति बनाए रखने को कहा है अगली सुनवाई 21अक्टूबर को होनी है।सरकार और मुंबई नगर निगम ने कोर्ट को बताया अब आगे कोई पेड़ नही काटा जाएगा जितना कटना था कट गया।कोर्ट ने सरकार से पूछा है यह क्षेत्र  इको-सेंसिटिव जोन है या नो डेवलपमेंट जोन।यानी सरकार की मुश्किलें बढ़ने वाली है।यहाँ 2100 पेड़ो में से करीब 700 पेड़ 150 से 200 साल पुराने थे।

महाराष्ट्र  में 21अक्टूबर को 288 सीटों के लिए विधानसभा के चुनाव का मतदान होना है ,शिवसेना सियासी राजनीति कर रही है।शिवसेना के मुखिया उद्धव ठाकरे कह रहे है अगर सरकार बनी तो आरे में पेड़ का खून करने वालों को सबक सिखाएंगे।ठाकरे साहब किसको सबक सिखाएंगे सरकार तो आप ही कि है।बता दे महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटों पर होने वाले चुनाव में शिवसेना और भाजपा के बीच गठबंधन है।

आरे के जंगल पर शिवसेना और अन्य विपक्षी चुनावी रोटी सेक रहे हैं लेकिन पिछले पांच सालों में देवेंद्र फडणवीस सरकार ने जो विकास के नाम पर 2लाख से अधिक पेड़ो की बलि दे दी इस पर विपक्षी और शिवसेना मौन क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में 2013 के मुम्बई हाइकोर्ट के एक आदेश जिसमें कोर्ट ने भिमागढ़ वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी कर्नाटक से राधनागरी वाइल्ड सैंक्चुअरी महाराष्ट्र तक पेड़ काटने पर रोक लगाई थी ।इसका जिक्र करते हुए निरंतर कटते जंगल पर चिंता ज़ाहिर की थी।इसी दौरान 2014-2018 के बीच सामंतबाड़ी-डोडाबाड़ी वन्य जीव कॉरिडोर के 16हज़ार एकड़ घने जंगल को नष्ट कर दिया और ओपन वन्य क्षेत्र को विकसित कर खुद अपनी पीठ थप-थपा कर ऐलान कर दिया कि जंगल बढ़ गए। इसमें भी सरकार कैसे बेवखूफ बनाती है।सरकार ने जंगल को तीन श्रेणी में बांटा है:1-बहुत घने जंगल जिसमे प्रति हेक्टेयर 1000 पेड़,2-कम घने प्रति हेक्टेयर 400 पेड़,3-ओपन फारेस्ट प्रति हेक्टेयर केवल 100 पेड़।

सरकार कैसे कागज़ी घोड़े दौड़ाती है माना 1हेक्टेयर घने जंगल के 1000 पेड़ को काट कर सरकार करती क्या है कि ओपन फारेस्ट के 4 एकड़ में केवल 400 पेड़ लगाकर कहती है कि जंगल बढ़ गए।

सरकार कहती है कि 1987 में 19.4% क्षेत्र में जंगल था आज करीब 22%क्षेत्र में जंगल है यानि कुल क्षेत्र 6लाख40हज़ार 819 स्क्वायर किलोमीटर में जंगल है।तब भी वातावरण में कार्बनडाई-ऑक्साइड 101%से बढ़ कर 250%हो गया।पानी जमीन से कम हो रहा है।सरकार के आंकड़े कहतें हैं कि 2005-2013 के बीच जब मनमोहनसिंह की सरकार थी 13लाख पेड़ कटे,2014-2019 के बीच 13.5 लाख पेड़ काटे गए।लेकिन इन आंकड़ो से इतर लोकसभा में 26जुलाई 2019 में एक सवाल जो भाजपा के राजीव प्रताप रूडी और रवि किशन  ने पूछा था उसके उत्तर में सरकार ने जानकारी दी कि 2014 से 2019 के बीच देश मे 1करोड़ 9लाख 75 हज़ार 844 पेड़ काट दिए गए।यानी हर घंटे 250 पेड़, हर मिनट 4 पेड़ काट दिए गए।फिर भी सरकार कहती है चिंता की कोई बात नहीं जंगल बढ़ रहें है।

यह कितना कपोल कल्पित है।देवेंद्र फडणवीस सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट मुंबई से नागपुर के बीच 701 किलोमीटर रोड का निर्माण जिसमे अमरावती,वासिम और बुलढाना के करीब 149 गांव आ रहें है जिसमें फडणवीस सरकार के काल मे ही 2लाख से ज्यादा पेड़ काट दिए गए यहां तक कि 10 किलोमीटर के ईको सेंसटिव जोन को भी नष्ट कर दिया गया।तथा दो वन्य जीव विहार कंटेकोर्न और करंजा सुहेल ब्लैक बक वन्य विहार को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया।इस प्रोजेक्ट में 90%कृषि भूमि जिस पर घने पेड़ थे पूरी तरह काट दिया गया।इस प्रोजेक्ट का नाम दिया गया समृद्धि एक्सप्रेस जिसमे 2016-2017 में 2लाख76हज़ार50 पेड़ काटने का लक्ष्य रखा गया जिसमें 153744 पेड़ जून तक काट दिए गए। पिछली रिपोर्ट सिंतबर तक कि जिसमें बताया गया करीब 190,744 पेड़ो की बलि दी गई।यह प्रोजेक्ट महाराष्ट्र स्टेट रोड डेवलपमेंट कारपोरेशन के तहत विकसित हो रहा है।इतने पेड़ो के काटने पर इंडिया रोड कांग्रेस ने कहा हम हर 1किलोमीटर में 543पेड़ यानि 701 किलोमीटर में करीब 3.75 लाख पेड़ 2.75 लाख कटे पेड़ो के एवज़ में लगाएंगे।

सरकार के आंकड़े कहते हैं कि जहाँ पेड़ लगें है वहां अगर मूवमेंट है तो केवल 30%पेड़ ही बच पाते है और इसका 15%पेड़ बन पाता है बाकी नष्ट हो जाता है यानी 3.75 लाख में केवल 10000 ही वटवृक्ष बन पाता है।सरकार खुश है कि जंगल कागज़ पर दौड़ रहा है लेकिन वास्तव में जंगल अस्तित्व की लड़ाई में पस्त है।

इसी तरह दिल्ली भी जंगल के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।दिल्ली में पिछले पांच सालों में करीब 1 लाख12 हज़ार159 पेड़ काट दिए गए यानी हर घंटे एक पेड़ कट रहा  है।दिल्ली से लगा हुआ इलाका गुड़गांव जहां अंधा-धुंध पेड़ विकास के नाम पर काट दिए गए जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि पूरे अरावली पर्वतमाला को बर्बाद कर दिया गया जिसका असर दिल्ली में यह हुआ कि यह विश्व का सबसे प्रदूषित शहर बन गया लेकिन सरकार कहती है हम विकास कर रहे ।सरकार पर जितनी भी पर्यावरण से संबंधित टिप्पढ़ी कोर्ट की आती है सरकार के कान पर जूं नही रेंगती।इसका असर यह हो रहा कि पेड़ कटने से जंगल मे आग की घटनाएं बढ़ रही है जो चिंता का विषय है।

राजस्थान और हरियाणा हाइकोर्ट ने भी चिंता जताई कि प्रदूषण अपने उच्चतम स्तर पर है।पिछले 10 वर्षों में दिल्ली,गुड़गांव और इससे जुड़े इलाको में करीब 13 लाख पेड़ काटे गए।इसका असर यह हुआ कि जमीन पोली होने से साथ के13 लाख पेड़ भी कमजोर होकर गिर गये। विकास का जुनून इस कदर सर चढ़ कर बोल रहा कि हमनें यमुना रिवर बेड पर भी विकास का खम्बा गाड़ दिया।इसी रिवर बेड पर अक्षरधाम मंदिर और बस टर्मिनस बना डाला सुप्रीम कोर्ट और एन जी टी की गाइडलाइन्स की अनदेखी करते हुए।

हर राज्य कहता है कि पेड़ हम बाहुल्य मात्रा में लगा रहें है लेकिन नतीजा वही सिफर।जंगल साफ होने से जमीन के नीचे का संतुलन भी बिगड़ गया है आगे आने वाले 5 सालों में देश के 200 शहरों से भू जल गायब हो  जायेगा।दूषित पानी पीने से 25 लाख हर साल मरते हैं।पर्यावरणीय असंतुलन से 28 लाख मरते है।लेकिन कोई फर्क नही ,पेड़ तो लग रहे हैं बकौल जावेडकर साहेब।लेकिन जो पेड़ नष्ट हो रहें उसके आंकड़े चौकानें वाले है ।जंगल मे आग से पिछले पांच सालों में 216 मिलियन टन लकड़ी जल गई।इसी तरह मकान निर्माण में 340 मिलियन टन ,फर्नीचर निर्माण में 98 मिलियन टन,कृषि से जुड़े कार्यो में 21 मिलियन टन लकड़ी की खपत  हुई।

अंदाज़ा लगाए की कितना जंगल साफ हुआ इसमें कितना अवैध कटान हुआ।इसकी इंडस्ट्री जो भू माफिया और नेताओं का गठजोड़ और सरकार की मौन सहमति है इसका आंकड़ा करीब 326 बिलियन डॉलर का है।कमोबेश यह हालत मुम्बई ,दिल्ली ही की नही पूरे देश की है लूटमार मची है लूट सको तो लूट लो।

उत्तराखंड को ही ले अभी टेहरी बांध का दंश कम नही हुआ कि पंचेश्वर बांध का प्रस्ताव उत्तराखंड के संवेदनशील पर्यावरण को लीलने के लिए तैयार है।इससे प्रारंभिक अवस्था मे 134 गांव एवं 1583 हेक्टेयर वन भूमि वनस्पति सहित अपनी बलि देंगी।यह बांध पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा जिले की महाकाली नदी पर बनना है इसमें भारत का 120 वर्ग किलोमीटर और नेपाल का 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आ रहा है।भू वैज्ञानिकों द्वारा उत्तराखंड को भूकंप की दृष्टि से बहुत संवेदनशील जोन 5 में रखा गया है।

वनों और वृक्ष का विनाश मौजूदा दौर में राजस्थान में निरंतर पड़ रहे अकाल की अहम वजह है।आज इस प्रदेश में 33 में से 27 जिलें भीषण जल संकट से जूझ रहें है।लेकिन फिर भी सरकार और मंत्रीगण कह रहें हैं सब ठीक है।भगवान जाने सत्ताधीशो के पास कौन सा चश्मा है जिसमे उन्हें हर चीज हरी ही दिखती है।

अब फिलहाल समय बहस का नही ना ही टी वी चैनलो पर डिबेट का और ना ही छोटी छोटी उपलब्धियों पर जश्न मनाने का क्योंकि पानी सर तक आ चुका है।सोचना है कश्ती कैसे पार लगेगी।

पर्यावरण असंतुलन और कटते जंगल पर रोक तुरंत लगनी चाहिए।  कड़े कानून, कड़ी सज़ा इस तरह के अपराधों के लिए फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन ।जनजागरूकता का स्तर इतना ऊपर हो जाये कि वन रोपण ज़िंदगी का हिस्सा बन जाये।परिवार नियोजन की तरह ही वन नियोजन लागू किया जाए।राजस्थान के बिश्नोई समाज मे पशु पक्षी एवं वनों से जो लगाव है तथा कटते जंगल पर इस समाज की जो चिंता तथा वन रोपण की जो ललक यह जन-जन तक पहुंचे इस पर भागीरथी प्रयास करने होंगे ।यह हम आपको ही करने होंगे।तभी हम आने वाली पीढ़ी को स्वर्णिम भविष्य दे पाएंगे अन्यथा आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।

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