रमजान में खुल जाते है जन्नत के दरवाज़े, कबूल होती है हर दुआ

संक्षेप:

  • इस्लाम धर्म में रमजान का महीना सबसे पवित्र माना जाता है
  • रमजान के महीने में मुस्लिम लोग रोज़ा रखते हुए अल्लाह की इबादत करते है
  • रमजान की शुरुआत 7 मई यानी आज से है

इस्लाम धर्म में रमजान का महीना सबसे पवित्र माना जाता है। रमजान के महीने में मुस्लिम लोग रोज़ा रखते हुए अल्लाह की इबादत करते है। इस बार रमजान की शुरुआत 7 मई यानी आज से है। रोज़ा रखने का मतलब सिर्फ रोज़ा रखना नहीं होता, बल्कि ये खुदा हीं नहीं खुद की इबादत करना होता है। इस्लाम धर्म के लोगों का मानना है कि रमजान के महीने में जन्नत यानी स्वर्ग के दरवाजें खुल जाते हैं और इस पवित्र महीने में हर दुआ पूरी होती है. रजमान को लेकर ये भी कहा जाता है कि अगर मुसलमानों को रमजान के महीने की अहमियत का पता चला जाए तो हर मुसलमान यही ख्वाहिश करेगा कि रमजान 1 महीने नहीं बल्कि पूरे साल तक रहें.

आपको बता दें कि इस्लाम धर्म में रोजा छोड़ने को गुनाह-ए-कबीरा माना जाता है. गुनाह-ए-कबीरा का मतलब होता है वो बड़ा पाप जिसकी कोई माफी ही नहीं होती है. रोजे के बारे में इस्लामिक किताबों में कहा गया है कि अल्लाह अपने बंदों से फरमाते हैं, `रोजा सिर्फ मेरे लिए है और रोजे का इनाम मैं खुद अपने बंदों को दूंगा.`

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हर बार रमजान के महीने में कई लोगों के मन ये सवाल जरूर आता है कि आखिर रोजा किन चीजों से टूटता है और किन चीजों से नहीं. रोजा टूटने को लेकर कई मुसलमानों को कई तरह की गलतफहमियां रहती हैं. तो आइए इसी गलतफहमी को दूर करने के लिए आज हम आपको बता रहे हैं कि रोजा आखिर किन चीजों से टूटता है और किन चीजों नहीं.

सबसे पहली बात तो यह कि कई लोगों को लगता है कि रोजा रखने का मतलब सिर्फ भूखा प्यासा रहना ही होता है. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है. बता दें कि रोजे का मतलब सिर्फ खाने पीने की चीजों से दूरी बनाना नहीं होता है, बल्कि रोजा रखने के बाद इंसान को हर उस काम से दूर रहना पड़ता है, जो इस्लाम धर्म में मना की गई हैं.

खाने पीने की चीजों से दूरी बनाने के साथ आंख, नाक, कान, मुंह सभी चीजों का रोजा होता है. इसका मतलब ये है कि रोजा रखने के बाद इंसान ना तो किसी की बुराई कर सकता है और ना ही किसी का दिल दुखा सकता है. इस तरह मुसलमान रमजान के महीने में हर तरह की बुराइयों से पवित्र हो जाता है.

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