तीन तलाक: जानिए अब तक क्या कुछ हुआ ?

संक्षेप:

  • सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक पर छह महीने तक रोक लगाई
  • सरकार से कानून बनाने को कहा
  •  पांच जजों की बेंच सुनाया फैसला

तीन तलाक के मुद्दे पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायधीश जे.एस खेहर के नेतृत्व में 5 जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए तीन तलाक पर 6 महीने के लिए रोक लगा दी है। कोर्ट ने अपने फैसले में केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह इस मुद्दे पर संसद में नया कानून बनाए।

आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने कोर्ट में कहा था कि वह तीन तलाक को जायज नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने माना था कि वह सभी काजियों को एडवायजरी जारी करेगा कि वे तीन तलाक पर न सिर्फ महिलाओं की राय लें, बल्कि उसे निकाहनामे में शामिल भी करें।

शायरा बानो ने की थी तीन तलाक पर पिटीशन दायर

ये भी पढ़े : राम दरबार: 350 मुस्लिमों की आंखों में गरिमयी आंसू और जुबां पर श्री राम का नाम


2016 में तीन तलाक पर पिटीशन दायर की गई थी। फरवरी 2016 में उत्तराखंड की रहने वाली शायरा बानो पहली महिला थी, जिसने ट्रिपल तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला पर बैन लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की। शायरा को भी उनके पति ने तीन तलाक दिया था।

तीन तलाक क्या है ?

ट्रिपल तलाक यानी पति तीन बार ‘तलाक’ शब्द बोलकर अपनी पत्नी को छोड़ सकता है। निकाह हलाला यानी पहले शौहर के पास लौटने के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रॉसेस। इसके तहत महिला को अपने पहले पति के पास लौटने से पहले किसी और से शादी करनी होती है और उसे तलाक देना होता है। सेपरेशन के वक्त को इद्दत कहते हैं। बहुविवाह यानी एक से ज्यादा पत्नियां रखना। कई मामले ऐसे भी आए, जिसमें पति ने वॉट्सऐप या मैसेज भेजकर पत्नी को तीन तलाक दे दिया।

तीन तलाक को लेकर कितनी पिटीशंस दायर हुई थीं ?

मुस्लिम महिलाओं की ओर से 7 पिटीशन्स दायर की गई थीं। इनमें अलग से दायर की गई 5 रिट-पिटीशन भी हैं। इनमें दावा किया गया है कि तीन तलाक अनकॉन्स्टिट्यूशनल है।

तीन तालाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं की हालत

`इंडियास्पेंड` एनजीओ के 2011 सेंसस के एनालिसिस के मुताबिक, भारत में अगर एक मुस्लिम तलाकशुदा पुरुष है तो 4 महिलाएं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अगर सिखों को छोड़ दें तो अन्य कम्युनिटीज में पुरुषों की बजाय तलाकशुदा महिलाओं की तादाद ज्यादा है।

मुस्लिमों में 79 महिलाएं और 21 पुरुष तलाकशुदा है तो  अन्य धर्मों में 72 महिलाएं 28 पुरूष और बौद्धों में 70 महिलाएं 30 पुरूष है। 2011 की सेंसस के मुताबिक, भारत में तलाकशुदा महिलाओं में 68% हिंदू और 23.3% मुस्लिम हैं। देश में मुस्लिमों की आबादी 17 करोड़ है। इनमें करीब आधी यानी 8.3 करोड़ महिलाएं हैं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा तलाकशुदा लोग (2.09 लाख) हैं। इनमें से तलाकशुदा महिलाओं की संख्या 1.5 लाख (73.5%) है।

तीन तलाक पर पहली सुनवाई

पहली सुनवाई पर बेंच ने कहा था कि अगर हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि तीन तलाक मजहब से जुड़ा बुनियादी हक है तो हम उसकी कॉन्स्टिट्यूशनल वैलिडिटी पर सवाल नहीं उठाएंगे। एक बार में तीन तलाक बोलने के मामले में सुनवाई होगी, लेकिन तीन महीने के अंतराल पर बोले गए तलाक पर विचार नहीं किया जाएगा।

शायरा बानो के वकील ने कहा कि तीन तलाक का रिवाज इस्लाम की बुनियाद से जुड़ा नहीं है। लिहाजा, इस रिवाज को खत्म किया जा सकता है। पाकिस्तान-बांग्लादेश में भी ऐसा नहीं होता। तीन तलाक गैर-इस्लामिक है। वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का मानना है कि कोई भी समझदार मुस्लिम किसी भी दिन उठकर सीधे तलाक-तलाक-तलाक नहीं कहता। यह कोई मुद्दा ही नहीं है।

तीन तलाक पर दूसरी सुनवाई

सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद के मुताबिक, एक साथ तीन तलाक कहना खुदा की नजर में गुनाह है, लेकिन पर्सनल लॉ में जायज है। आपको बता दें इस केस में सलमान ने एक वकील तौर पर दलीलें दी थीं। वहीं राम जेठमलानी ने आरएसएस से जुड़ी संस्था फोरम फॉर अवेयरनेस ऑन नेशनल सिक्युरिटी की ओर से दलीलें रखीं कि तीन तलाक कुरान शरीफ के खिलाफ है, कोई भी दलील इस घिनौनी प्रथा का बचाव नहीं कर सकती। तीन तलाक महिलाओं को तलाक में बराबरी का हक नहीं देता।

बेंच ने माना कि जो काम खुदा की नजर में गुनाह है, क्या उसे कानूनी तौर पर जायज मान सकते हैं?"

तीन तलाक पर तीसरी सुनवाई

बेंच ने कहा कि अभी हमारे पास वक्त कम है। इसलिए ट्रिपल तलाक पर ही सुनवाई होगी। अभी हम यहां ट्रिपल तलाक के मामले में ही सुनवाई कर रहे हैं। बहुविवाह और हलाला पर बाद में सुनवाई होगी। हां, अगर तीन तलाक जैसी प्रथा को खत्म कर दिया जाता है तो किसी भी मुस्लिम पुरुष के लिए क्या तरीके मौजूद हैं?"

केंद्र सरकार ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को अमान्य या असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर देता है तो केंद्र सरकार नया कानून लाएगी। यह कानून मुस्लिमों में शादी और डिवोर्स को रेगुलेट करने के लिए होगा।

तीन तलाक पर चौथी सुनवाई

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक, अगर राम का अयोध्या में जन्म होना आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक भी आस्था का मामला है। इस पर सवाल नहीं उठाए जाने चाहिए।

बेंच ने कहा कि तो क्या आप कहना चाहते हैं कि हमें इस मामले में सुनवाई नहीं करनी चाहिए?

तीन तलाक पर पांचवीं सुनवाई

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक, मुस्लिमों की हालत एक चिड़िया जैसी है, जिसे गोल्डन ईगल यानी बहुसंख्यक दबोचना चाहते हैं। उम्मीद है कि चिड़िया को घोंसले तक पहुंचाने के लिए कोर्ट न्याय करेगा।

केंद्र ने कहा कि यहां तो टकराव मुस्लिम महिलाओं और पुरुषों के बीच ही है।"

बेंच ने माना कि केंद्र ने मुस्लिमों में शादी और तलाक के लिए कानून क्यों नहीं बनाया, इसे रेगुलेट क्यों नहीं किया?  केंद्र सरकार कहती है कि अगर कोर्ट ट्रिपल तलाक को अमान्य घोषित कर दे तो आप कानून बनाएंगे, लेकिन सरकारों ने पिछले 60 साल में कोई कानून क्यों नहीं बनाया?

तीन तलाक पर छठी सुनवाई

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड काजियों को एडवायजरी जारी करेगा कि तीन तलाक पर न सिर्फ महिलाओं का मशविरा लिया जाए, बल्कि उसे निकाहनामे में भी शामिल किया जाए।

शायरा बानो के वकील ने कहा कि इस्लाम ने कभी औरत और मर्द में भेदभाव नहीं किया। मेरी राय में तीन तलाक एक पाप है। यह मेरे और मुझे बनाने वाले ईश्वर के बीच में रुकावट है।

बेंच ने कहा कि कोई चीज मजहब के हिसाब से गुनाह है तो वह किसी कम्युनिटी की रिवाज का हिस्सा कैसे बन सकती है? 

तीन तलाक के खिलाफ ?

 केंद्र: इस मुद्दे को मुस्लिम महिलाओं के ह्यूमन राइट्स से जुड़ा मुद्दा बताता है। ट्रिपल तलाक का सख्त विरोध करता है। पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि इसे शरीयत के मुताबिक बताते हुए कहता है कि मजहबी मामलों से अदालतों को दूर रहना चाहिए। जमीयत-ए-इस्लामी हिंद के मुताबिक, ये भी मजहबी मामलों में सरकार और कोर्ट की दखलन्दाजी का विरोध करता है। यानी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ खड़ा है।

मुस्लिम स्कॉलर्स के मुताबिक, इनका कहना है कि कुरान में एक बार में तीन तलाक कहने का जिक्र नहीं है।

बेंच ने इन 3 सवालों के जवाबों पर विचार किया

  • क्या तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं?
  • तीन तलाक मुसलमानों के लिए प्रवर्तनीय मौलिक अधिकार है या नहीं?
  • क्या यह मुद्दे महिला के मौलिक अधिकार हैं? इस पर आदेश दे सकते हैं?

 

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Lucknow की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles