बिगड़ते पर्यावरण पर संसद मौन क्यों?

संक्षेप:

  • आजादी के बाद भी सूखे और बाढ़ जैसी समस्याओं से नहीं पा सके स्थायी निजात
  • राजनेताओं की संकुचित सोच भी है एक बड़ा कारण
  • बिगड़ते पर्यावरण पर आखिर संसद मौन क्यों ?

By: मदन मोहन शुक्ला

आजादी मिले 71 वर्ष होने के बाद भी हम सूखे और बाढ़ जैसी समस्याओं से स्थायी निजात नहीं पा सके । इसके पीछे बड़ा कारण हमारे राजनेताओं की संकुचित सोच और अक्षमता तथा नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार  है। राजनेताओं की संकुचित सोच वर्तमान केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती के बयान से प्रकट होती है कि सूखे से निपटने की योजना नहीं बनायी जा सकती है और नौकरशाही को सूखे से निपटने में कोई रूचि नहीं होती।

अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 1953 से 2017 तक बाढ़ से 107487 लोग मर चुके हैं। 2015 में 1080 इमारते बारिश में गिर गई 409 लोगों की जानें गई। इस प्रकार हर साल बाढ़ से 1600 मौतें हो जाती हैं, मुम्बई में पानी की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है, जबकि बीएमसी जल प्रबंधन पर रू 585.55 करोड़ और सीवेज की सफाई पर रू 42.45 करोड़ खर्च कर चुका है लेकिन फिर भी मुम्बई बरसात में बेहाल हो जाती है। इनके कारणों पर सांसद और संसद खामोश क्यों ?

ये भी पढ़े : सारे विश्व में शुद्धता के संस्कार, सकारात्मक सोच और धर्म के रास्ते पर चलने की आवश्यकता: भैय्याजी जोशी


मुम्बई ही नहीं पूरा देश पर्यावर्णीय असंतुलन की भयावह तस्वीर से रूबरू हो रहा है लेकिन हमारे सांसदों को संसद में बैठकर वोट बैंक की सियासी बिसात पर हिन्दू-मुस्लिम की राजनीति पर बहस कर ध्रुवीकरण का गन्दा खेल खेलते हैं। नागरिकता कानून को लेकर संसद चलने नहीं देते लेकिन देश पर गहराता पानी का संकट पर संसद मौन क्यों? जल ही जीवन है जब यह ही नहीं रहेगा तब जीवन नहीं रहेगा तो सांसदों संसद में होने वाली बहसों का कोई मतलब नहीं रहेगा।

05 जून को होने वाला विश्व पर्यावरण दिवस का आयोजन महज एक रस्म अदायगी है इस अवसर पर बड़े-बड़े व्याख्यान दिये जाते हैं हजारों पौधा रोपण होता है इसी एक दिन को छोड़ कर 364 दिन प्रकृति के प्रति हमारा अमानवीय व्यवहार ही देखा जाता है। यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हम पर्यावरण के प्रति कितने उदासीन और संवेदनशील है। हैं ? आज हमारे पास स्वच्छ पेयजल का अभाव है, जल के स्रोत नष्ट हो रहे है, वनों के लिये आवश्यक वन्य प्राणी भी विलीन होते जा रहे हैं।

इसके लिये सरकार को वन संरक्षण और वनों के विस्तार की योजना पर गंभीरता से कार्य करना होगा । वनो से लगे ग्राम वासियों को वनीकरण के लाभ समझकर उनकी सहायता लेनी होगी तभी हमारे जंगल नये सिरे से विकसित हो पायेंगे जिसकी नितांत आवश्यकता है।

महात्मा गांधी का एक प्रसिद्ध उदाहरण है ‘‘धरती के पास लोगों की आवश्यकता की पूर्ति के लायक संसाधन तो हैं लेकिन उनकी लालच की पूर्ति के लायक संसाधन कभी भी न हो सकेंगे’’। इंसान जब प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करता है तो उसके खत्म होने तक रूकता नहीं। प्रकृति पर उसकी लालच भारी पड़ती जा रही है जंगल खत्म होते जा रहे हैं और कंक्रीट के बडे-बड़े भवन बनते जा रहे हैं। अब इसी कड़ी में जुड़ा है भूजल का नाम जिस तेजी से जमीन के नीचे का पानी का इस्तमाल बेतरतीब ढ़ंग से हो रहा है उससे आशंका है कि महज 02 साल के भीतर देश के 21 शहरों में जमीन के नीचे पानी की एक बूंद भी नहीं बचेगी ।

हाल ही में नीति आयोग ने भारत में पानी की कमी पर एक रिपोर्ट दी थी । यह रिपोर्ट बताती है कि यू.पी., बिहार, हरियाणा, उत्तराखण्ड और उड़ीसा में भूजल के सबसे पहले खत्म होने का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। खास बात यह है कि इन सारे राज्यों में धान, गेहूं और कई तरह के अन्य अनाज काफी मात्रा में उगाये जाते हैं।

उत्तर प्रदेश में भूजल की स्थिति काफी दयनीय है। तालाब पाटकर मकान बनाये जा रहे हैं, नदियों में पानी कम हो रहा है उस पर से भूजल लगातार निकाले जाने से हालात दिन पर दिन खराब होते जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के 660 ब्लाक में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है इनमें से 45 जिलो के 180 ब्लाक में भूजल की स्थिति काफी गंभीर है। लखनऊ, कानपुर, मेरठ, गाजियाबाद, आगरा, नोएडा और वाराणसी में शायद दो साल से कम में भूजल पूरी तरह खत्म हो जायेगा इसके अलावा जहां पानी बचाना है वहां इसका स्तर कम होने से इसमें फ्लोराइड, आयरन, आर्सेनिक, क्रोमियम, मैगनीज और अन्य साल्ट मिल रहा है इससे लोगो मे गंभीर बीमारियों का खतरा है । किस तरह हम पानी बचाने में पीछे हैं यह इसी से पता चलता है कि साल 1912 में लखनऊ में 320 तालाब थे लेकिन इनमें से ज्यादातर तालाब पाट दिये गये ।

बिहार के 38 जिलों में से 13 में भूजल में आर्सेनिक, और 11 जिलो में फलोराइड पाया गया है। गया, औरंगाबाद, कैमूर, नवादा, जमुअई, भागलपुर और रोहतास जिलों में हर साल गर्मियों में पानी का जबरदस्त संकट पैदा हो जाता है। बिहार सरकार की रिपोर्ट कहती है कि अकेले पटना में जो निर्माण कार्य होता है उसमें से 97 प्रतिशत पानी से जुड़े नियमों का पालन नहीं होता । पटना में बीते साल एक सर्वे हुआ था पता चला कि कई इलाकों में भूजल का स्तर 10 मीटर तक नीचे चला गया । बहस इस बात को लेकर हो रही है कि वोट बैंक बिगड़ जायेगा । देश में 50 फीसदी जिलो का पानी जहरीला हो चुका है, 212 जिलों का पानी खारा हो चुका है, 2030 तक देश की आधी आबादी को पानी मिलना बंद हो जायेगा । लेकिन संसद इस मुददे को लेकर गंभीर बिलकुल नहीं। आंकड़े बताते हैं कि पंजाब 76 प्रतिशत, दिल्ली 56 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 14 प्रतिशत भूजल दोहन हो रहा है।

लेकिन कोई सिस्टम नजर नहीं आता । पंजाब में जल संकट गहराता जा रहा है, गुड़गांव में निर्माण कार्यो के लिये रोज तीन करोड़ लीटर भूजल का दोहन हो रहा है। सिचाई तंत्र समुचित न होने के कारण 67 प्रतिशत खेती की सिचाई के लिये भूजल पर निर्भरता है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट बार बार भूजल दोहन पर सरकार को चेतावनी देता रहा है लेकिन सरकारें कान में तेल डालकर सोई हुई है।

हद तो तब हो गई कि पिछले बजट भाषण में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिग को लेकर सरकार का कोई नीतिगत रूख नहीं रखा। बजट आवंटन वृद्धि की बात तो दूर की है। यह दूसरा वित्त मंत्री का बजट भाषण था जिसमें वित्तमंत्री पर्यावरण पर मौन रहे जबकि अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट बताती है कि भारत पर्यावरणीय संरक्षण जलवायु परिवर्तन को लेकर नीचे से तीसरे पायदान पर है इससे नीचे केवल लीबिया व इराक हैं। सबसे ज्यादा चिन्ता यहां के लिये है वायु प्रदूषण और गहराता जल संकट। लेकिन वाह रे भारतीय राजनीति और हमारे राजनेता, वे तो उलझे हुए है कि 2019 के चुनाव को कैसे जीता जाये और वोट का ध्रुवीकरण कैसे हो ? हमारे नेता सत्ता विपक्ष दोनो नौकरशाही से गठजोड़कर सूखा एवं बाढ़ के बाद बटने वाली धनराशि का बन्दरबांट करते हैं।

भारत भर में वर्षा का अमूल्य जल बहकर नदियों के रास्ते समुद्र में जाकर इस्तेमाल योग्य नहीं रह जाता इस अमूल्य वर्षा जल के संरक्षण के पर्याप्त उपाय करने में किसी राजनेता अथवा नौकरशाही की कोंई रूचि नहीं होती। राजनेता इतने अधिक पढ़े लिखे अथवा दूरगामी सोंच के नहीं होते और नौकरशाही अपने निजी स्वार्थ के चलते जल संरक्षण के उपाय नहीं करना चाहती ।

पर्यावरण जलवायु परिवर्तन को लेकर बाहर के देश तो चिंतित हैं लेकिन हमारी सरकारें बिलकुल विचार शून्य, संसद से विधान सभा तक हमारे राजनेता मौन धरे बैठे हैं यह अगली आने वाली पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहते हैं। भूजल खतरनाक स्थिति तक प्रदूषित हो चुका है लेकिन हम विकास की रौ में, भूल गये हैं आगे आने वाले जल संकट को ।

देश का पावर कैपिटल कहे जाने वाले सोनभद्र सिंगरौली में औद्यौगिक अवशिष्टों, वायु, मृदा व जल प्रदुषण खतरनाक स्तर तक पहंच चुका है साथ ही जिले की लाइफ लाइन सोन, रेणुका नदी अन्य नदियों में जीवन (जलीय जीव और आक्सीजन) भी खत्म होने के कगार पर है। कोयला, राख पटाव के साथ ही जगह जगह नदियों के बांधे जाने से स्थिति और भी गंभीर हो रही है। मामला अदालत में पहुंचने के बाद भी नदियों के बदलते स्वरूप और बिगड़ते जलीय पर्यावरण पर रोक नहीं लग पायी। प्रदुषण नियंत्रण महकमा इससे पल्ला झाड़ने में लगा हुआ है। दूसरी तरफ सोनभद्र के जिलाधिकारी अमित कुमार सिंह इस मामले में प्रमाणित वैज्ञानिक रिपोर्ट न होने से कार्यवाही करने में असमर्थता जता रहे हैं। साथ साथ पर्यावरण को लेकर चिंतित भी है।

मुख्यतः पर्यावरण के प्रदूषित होने के मुख्य कारण हैं निरंतर बढ़ती आबादी, औद्यौगीकरण , वाहनों द्वारा छोड़ा जाने वाला धुंआ, नदियों तालाबों में गिरता हुआ कचरा, वनों का कटान, खेतों में रसायनों का असंतुलित प्रयोग, पहाड़ों में चट्टानों का खिसकना मिटटी का कटान आदि । पर्यावरण की अवहेलना के गंभीर दुष्परिणाम समूचे विश्व में परिलक्षित हो रहे है और बाहर के देश इस दिशा में प्रयासरत भी हैं लेकिन यहां केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के स्पष्ट निर्देश और एन.जी.टी. की सख्त हिदायत के बावजूद भी सोनभद्र जिले में नदियों के जीवन से जो खिलवाड़ हो रहा है उसके घिनौने खेल पर लगाम नहीं लग पा रहा है। मौजूदा स्थिति यह है कि बालू खनन के लिये मीतापुर, खेबंदा, महलपुर, बरहमोरी आदि जगहों पर नदी की धारा को पूरी तरह बांध दिया गया है लेकिन स्थानीय प्रशासन इस पर मौन है।

इन सबके बावजूद भी एक आदि स्थान पर कुछ संस्थायें एवं लोगों ने सूखे और पानी की कमी से निजात पाई है वह भी स्वयं के प्रयास से न कि किसी नेता अथवा अधिकारी के प्रयासों से । बल्कि नेताओं व अधिकारियों ने उनके प्रयासों में अड़ंगे ही लगाये हैं । इस गंभीर मुददे पर नेता व किसी अधिकारी से कोई आशा करना व्यर्थ प्रतीत होता है जन साधारण को स्वयं ही पानी का अपव्यय रोकना होगा और वर्षा जल संरक्षण के उपाय करने होगे।

(लेखक, उ0प्र0 प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड के भूतपूर्व सदस्य रह चुके हैं)

If You Like This Story, Support NYOOOZ

NYOOOZ SUPPORTER

NYOOOZ FRIEND

Your support to NYOOOZ will help us to continue create and publish news for and from smaller cities, which also need equal voice as much as citizens living in bigger cities have through mainstream media organizations.

Read more Lucknow की अन्य ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें और अन्य राज्यों या अपने शहरों की सभी ख़बरें हिन्दी में पढ़ने के लिए NYOOOZ Hindi को सब्सक्राइब करें।

Related Articles