सकट चौथ 2018: ऐसे करें व्रत और पूजा, तिल का है बड़ा महत्व

संक्षेप:

  • साल 2018 का पहला पर्व सकट चौथ
  • भगवान गणेश की होती है पूजा
  • नीचे पढ़े- सकट चौथ की कथा

साल 2018 का पहला पर्व सकट चौथ हर साल माघ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट का व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है ताकि सारे संकट दूर हो जाएं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आए। यह व्रत संतान की लंबी आयु के लिए भी किया जाता है। इसे अलग-अलग हिस्सों में अलग नामों से जाना जाता है, जैसे वक्रतुण्डी चतुर्थी, माघी चौथ और तिलकूट चौथ। सभी देवताओं की पूजा से पहले भगवान गणेश का पूजन करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि परिवार में सुख-शांति आए।

व्रत की विधि

सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करके गणेश जी की पूजा आरंभ करें। उत्तर दिशा की ओर मुंह करके भगवान गणेश को अर्घ्य देना चाहिए। नदी घर के आसपास हो तो 21 बार जल चढ़ाएं, घर पर ही पूजा कर रहे हों तो एक बार जल चढ़ा सकते हैं। पूजा में भगवान को गुड़, तिल, गन्ने, शकरकंद, अमरूद और मूली का भोग चढ़ाना चाहिए। गणेश जी को दूब, बेलपत्र और शमी के पत्ते में रखकर तिल के लड्डू चढ़ाएं तो व्रत का पूरा फल मिलेगा। पूजा स्थल पर कलश में जल भरकर धूप-दूप अर्पित करें। चौथ के दिन चढ़ी हुई मूली या मूली की सब्जी खाना वर्जित है, इससे आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। बहुत से लोग इस दिन शाम की पूजा तक निर्जला व्रत करते हैं। व्रत का पारण तिल का प्रसाद खाकर किया जाता है।

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तिल चढ़ाने से होगा लाभ

सकट चौथ पर भगवान गणेश को तिल चढ़ाने को काफी अच्छा माना जाता है। इस दिन अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग तरह के लड्डू बनाए जाते हैं। तिल के साथ गुड़ मिलाकर काफी सारे पकवान बनाए जाते हैं। भुने हुए तिल को भूनकर गुड़ की चाशनी पकाकर उसमें मिलाते और लड्डू बनाते हैं। पिसे हुए तिल का पहाड़ बनाते हैं। फिर विधिवत पूजा करते हुए ये श्लोक पढ़ते हैं-

गजाननं भूत गणादि सेवितं,कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।

उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।

व्रत की कथा

सतयुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार था। एक बार उसने बर्तन बनाकर उसे पकाने की कोशिश की लेकिन बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार ऐसा होने पर उसने एक पुजारी से पूछा तो उसने बताया कि किसी छोटे बच्चे की बलि से ही सब ठीक होगा। ये सुनकर कुम्हार ने एक मृत तपस्वी के पुत्र को पकड़ सकट के दिन आंवा में डाल दिया। इधर बालक की मां उस दिन गणेश जी की पूजा कर रही थी, बाद में बहुत खोजने पर भी पुत्र के न मिलने पर मां ने गणेश जी से उसे वापस लौटाने की प्रार्थना की। सुबह उठकर कुम्हार ने देखा कि आंवा तो पक गया था लेकिन बालक सुरक्षित था। कुम्हार घबरा गया और राजा के पास जाकर अपनी गलती मान ली। राजा ने बच्चे की मां को बुलवाया तो उसने गणेश जी के सामने की गई अपनी प्रार्थना के बारे में बताया। ये सुनकर राजा ने भी सकट चौथ की महिमा मानते हुए सभी नगरवासियों को गणेश जी की पूजा करने को कहा। तभी से हर कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ मनाया जाता है।

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