रोचक किस्से: सवाल पर जब अटल ने कहा- ‘इंदिरा गांधी प्यार से देखती है’

संक्षेप:

  • पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन
  • भारतरत्न अटल की कई रोचक किस्से
  • अटल की ये बात सुनकर पंडित नेहरू सदन में ठहाका मारकर हंसने लगे

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दिल्ली के एम्स में गुरुवार शाम पांच बजकर पांच मिनट पर निधन हो गया। इसके बाद देश भर में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन से एक युग का अंत हो गया। भारतरत्न अटल की कई रोचक किस्से आज याद आते है।

  1. अटल जी के भाषणों से पंडित जवाहरलाल नेहरू इतने अभिभूत होते थे कि वे उनके सवालों के जवाब हिंदी में ही देते थे। एक बार सदन में पंडित जी की जनसंघ पर आलोचनात्मक टिप्पणी सुनते ही अटल जी ने कहा कि `मैं जानता हूं कि पंडित जी रोजाना शीर्षासन करते हैं। वे शीर्षासन करें। मुझे कोई आपत्ति नहीं, लेकिन मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें।‘ ये सुनते ही पंडित नेहरू सदन में ठहाका मारकर हंसने लगे।
  2. साल 1971 में लोकसभा के चुनाव हुए। जनसंघ सांसदों की संख्या 35 से घटकर 22 रह गई। उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता रहे डा. नारायण माधव घटाटे ने अटल जी से पूछा कि इंदिरा जी की क्या प्रतिक्रिया है? वह हंसकर बोले, `अभी तो हमारी तरफ बहुत प्यार से देखती हैं।
  3. साल 1975-76 के आपात काल के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी जेल भेज दिए गए। उनके करीबी रहे डा. नारायण माधव घटाटे उनसे मिलने गए। उस समय जेल में लालकृष्ण आडवाणी, श्यामानंद मिश्र और मधु दंडवते भी नजरबंद थे। डा. घटाटे को वाजपेयी जी को जेल की कपड़ों में देखकर अजीब लगा। हठात उनके मुंह से निकला-यह क्या है? अटल जी के चेहरे पर चिर परिचित मृदु मुस्कान तैर आई। बोले- बस इंदिरा गांधी कपड़े पहनाएगी, इंदिरा गांधी खाना खिलाएगी। हम अपनी जेब से कानी कौड़ी भी खर्च नहीं करेंगे।
  4. साल 1998  में शिवराज सिंह चौहान एक दुर्घटना में घायल हो गए थे। वह चलने-फिरने की हालत में नहीं थे। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा कि वह इस बार चुनाव नहीं लड़ सकते। किसी दूसरे को उम्मीदवार बना दीजिए। इसपर पर अटल जी ने कहा कि `दूध में इकट्ठे और महरी में न्यारे नहीं चल सकता। अर्थात जब सब अच्छा हो, तब साथ-साथ और परेशानी में अलग छोड़ दें, यह ठीक नहीं है। उन्होंने चौहान से कहा कि आप पर्चा भर दीजिए, पार्टी कार्यकर्ता और नेता मिल जुलकर देख लेंगे। चौहान चुनाव जीत गए।
  5. अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में दूसरे दलों के नेताओ को अपना दुश्मन नहीं, सिर्फ राजनीतिक विरोधी मानते थे। उन्होंने कभी किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की। एक बार तत्कालीन कोयला मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिहार जाकर लालू यादव के खिलाफ सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया जो वाजपेयी जी को अच्छा नहीं लगा। अटल जी ने रविशंकर प्रसाद को चाय पर बुलाया और पूरी मुलाकात के दौरान कुछ नहीं कहा। परेशान रविशंकर जब जाने लगे तो वाजपेयी जी बोले, रवि बाबू, अब आप भारत गणराज्य के मंत्री हैं, सिर्फ बिहार के नहीं, इस बात का आपको ध्यान रखना चाहिए।
  6. अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने मंत्रिमंडल के प्रति विश्वास प्रस्ताव पर हुई बहस के बाद प्रधानमंत्री के रूप में चर्चा का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि पार्टी तोड़कर सत्ता के लिए नया गठबंधन करके अगर सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना नहीं पसंद करूंगा । भगवान राम ने कहा था कि मैं मृत्यु से नहीं डरता। अगर डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं। 40 साल का मेरा राजनीतिक जीवन खुली किताब है। कमर के नीचे वार नहीं होना चाहिए। नीयत पर शक नहीं होना चाहिए। मैंने यह खेल नहीं किया है। मैं आगे भी नहीं करूंगा। (28 मई 1996)

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