मेरठ की इस बेटी ने हिमाचल में CEO बनकर किया परिवार का नाम रोशन

संक्षेप:

  • कैंटोमेंट बोर्ड सीईओ तनु जैन से खास बातचीत
  • चौथे अटेंप्ट में एग्जाम में तनु जैन ने पाई सफलता
  • कम उम्र में ही तनु जैन ने रचा अपना सफलता गान

मेरठ- मेरठ की एक ऐसी होनहार बेटी, जिन्होंने शहर से निकलकर अथक मेहनत और प्रयासों के बूते कम उम्र में ही सफलता की इबारत लिख दी है। मेरठ में जाने-माने स्टील कारोबारी परिवार से ताल्लुक रखने वाली तनु जैन हिमाचल प्रदेश में शिमला के छावनी क्षेत्र जतोग कैंटोंमेण्ट बोर्ड की मुख्य अधिशासी अधिकारी यानि चीफ एक्ज़िक्यूटिव ऑफिसर हैं। जैन समाज से ताल्लुक रखने वालीं तनु जैन पहली हैं, जो मेरठ से बाहर जाकर समाज में अपने परिवार का नाम चमका रही हैं। NYOOOZ  ने उनसे बातचीत की..  

सवाल- तनु अपने बारे में बताऐं ?

जवाब- मेरा जन्म मेरठ का है... मुझे अपना शहर बेहद प्यारा है। मेरे पापा अनिल जैन और मां मंजू जैन आज मेरी इस कामयाबी से बेहद खुश हैं। हमारी ज्वांइट फैमिली है और फैमिली बिजनेस है... जैन स्टील मेरठ में एक जाना-पहचाना नाम है। हम तीन बहनें हैं जिनमें मैं सबसे छोटी हूं। भरी-पूरी फैमिली में जब सारे कज़िन्स इकट्ठा होते हैं तो हमारी धमा-चौकड़ी देखते ही बनती है।

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हांलाकि अब सब अपने काम में बिज़ी हैं लेकिन फिर भी कैसे न कैसे मैनेज कर ही लेते हैं। मेरे ताया जी भी बहुत सर्पोटिव हैं। सोफिया से 2005 में मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से साल 2008 में हिस्ट्री ऑनर्स किया, इस दौराना सेकेण्ड ईयर में मुझे बेस्ट डिज़र्विंग स्टूडेंट ऑफ द ईयर का खिताब मिला। मैं पढ़ाकू टाइप की थी, सोशियोलॉली में मास्टर्स किया स्किल डवलपमेंट एंड वीमेन एम्पॉवर्ड में पीएचडी कर रही हूं।

सवाल- आई.ए.एस करने की प्रेरणा कहां से मिली?

जवाब- बिज़नेस फैमिली से होने के चलते मुझे लगा एमबीए कर लिया जाए तो मैंने शिकागो से जी-मैट करने की सोची लेकिन किसी कारण से मैं वहां जा नहीं पाई। दरअसल स्कूल टाइम में हमारा ग्रुप हुआ करता था जिसमें सबकी सोच बस यही थी कि यार कुछ अलग करना है.. बस कुछ अलग करना है..सबसे बड़ा करना है। अपनी इसी चाहत के चलते मैं सिविल सर्विसेज़ की तैयारी में जी-जान से जुट गई। अपनी ज़िंदगी में अनुशासन को जगह दी।

दरअसल मैं हर काम को जल्दी से जल्दी पूरा करने की कोशिश में रहती हूं जिसके चलते शुरूआत में मेरी पढ़ाई बहुत डिस्टर्ब होती थी, लेकिन धीरे-धीरे अपनी इस आदत पर मैंने कंट्रोल किया और संयम के साथ पढ़ाई पर ध्यान दिया। अपने तीसरे अटेंप्ट में मैं सिर्फ 10 नंबरो से पीछे रह गई थी लेकिन अपने चैथे अटेंप्ट में मैंने सफलता पाई और मेरी 648 रैंक आई। जिसके बाद मुझे डिफेंस की स्टेट सर्विसेज़ में जाने का मौका मिला। दिल्ली में साढ़े चार महीने की ट्रेनिंग हुई।  

ध्यान और सात्विकता ने भी दिया पूरा साथ- जिंदगी जैसे-जैसे आगे बढ़ी भागदौड़ और कामकाज भी उसी रफ्तार से बढ़ता गया और अब तो ज़िम्मेदारियां भी दोगुनी हों चुकीं थीं लेकिन इस बीच ध्यान और जैनियों की खासियत कहें या कुछ सात्विकता ने मेरा भरपूर साथ दिया। जब भी खुद को तनावग्रस्त महसूस करती मेडिटेशन का सहारा लेकर खुद को तरोताज़ा कर लिया और कभी कॉर्मशियल पायलट की हसरत रखने वाली लड़की एक आईएएस ऑफिसर बन गई।

दरअसल जैसे कि मैंने पहले भी आपको बताया कि मैं जो डिफिकल्ट हो वो करने की ख्वाहिशमंद थी और मुझे एक लेडी पायलट बनना उस वक्त बेहद चुनौतीभरा लगता था। इसलिए मैंने यूपीएससी किया। इस बीच मैंने एक साल ‘बिलीव इंडिया‘ एनजीओ के साथ काम भी किया। छावनी के विकास के प्रयास- जो क्वालिटी ऑफ लाइफ यूपीएससी देता है वो शायद ही और कोई दे। लेकिन इसके बावजूद अगर आपने काम नहीं किया तो आपका नाम नहीं होगा।

शिमला के जतोग मेरी पहली पोस्टिंग थी। जब मैं यहां आई तो माने देखा कि लोगों को पानी की बेहद समस्या थी जिसके चलते मैंने छावनी में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की व्यवस्था पर ज़ोर दिया। जतोग की शान बढ़ाता 100 फीट ऊंचा तिरंगा लगवाने के प्रयास भी रंग लाए। छावनी के सभी पार्कों में 1500 पौधे लगाए जाने का लक्ष्य तय किया। मेरी कोशिश है कि यहंा बेहतरीन स्कूल और अस्पतालों की व्यवस्था कर सकूं।

सवाल - सुना है आप अपने स्टाफ का भी बेहद ध्यान रखतीं हैं?

जवाब- जी हां, देखिए अगर स्टाफ खुश रहेगा तो वो बेहतरीन काम कर सकेगा। इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि उनकी सुविधाओं का भी ख्याल सकूं। मैं अपने स्टाफ के हर सदस्य का बर्थडे सेलीब्रेट करतीं हूं ताकि उनका मनोबल बढ़ सके। पांच साल से कर्मचारियों का इंक्रीमेंट रूका हुआ था जिसे मैंने सुचारू कराया।

सवाल- आईएएस की तैयारी कर रहे स्टूडेंटस को क्या कहना चाहेगीं ? 

जवाब- देखिए अगर आप आईएएस या फिर आईपीएस की तैयारी कर रहे हैं तो फिर आपको संयम रखना होगा... क्योकि अगर आप अपना संयम खो देगें तो आपको सफलता नहीं मिल पाएगी। सिविल सर्विसेज में जितना मान मिलता है तो उतनी ही हमें मेहनत भी करनी होती है। मेहनत से पीछे मत हटिए। अगर आपका बेस मजबूत है तो सफलता ज्यादा मिलती है इसके साथ ही अगर आप गहनता से विषय को पढ़ते हैं तो भी आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।

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