मेरठ के पांच वीर सपूतों ने बलिदान देकर चुकाया मातृभूमि का कर्ज, पूरे प्रदेश को नाज

संक्षेप:

  • कारगिल विजय दिवस आज
  • मेरठ के पांच सपूतों ने दिया बलिदान
  • पूरे देश व प्रदेश को है फक्र

मेरठ- मेरठ के पांच सपूतों की बहादुरी के किस्से आज भी कारगिल में सुनाई देते हैं। हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस पर मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हुए इन जाबांजों को नमन किया जाता है। 21 साल पहले कारगिल की लड़ाई में इन जांबाजों को खोने वाले परिवारों के सदस्यों का सीना अब भी गर्व से चौड़ा हो जाता है। इन वीरों सहित अन्य जवानों की शहादत से ही कारगिल में फतह मिली और वहां फिर से तिरंगा लहराया। इन शहीदों के परिवारों का ऋण ये देश कभी नहीं चुका पाएगा। आइए कारगिल दिवस पर इन शहीदों को नमन करें।

कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सेना ने सबसे ज्यादा नुकसान किया। दुश्मन 18 हजार फीट की ऊंचाई पर और हमारे जवान नीचे। वे पत्थर भी फेंकते तो गोली की तरह लगता। उधर से मशीनगन चल रही थी। कितने ही अफसर-जवान शहीद हो गए थे। योगेंद्र यादव की बटालियन को टास्क दिया गया। ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने अपने सात साथियों के साथ प्वाइंट पर पहुंचकर पाकिस्तानी बंकरों को ध्वस्त किया।

उन्होंने दुश्मन के 17 जवानों को मौत के घाट उतार दिया। पांच जुलाई 1999 की शाम को दुश्मन की जवाबी गोलीबारी में वो शहीद हो गए। उनकी वीरता के लिए वीर चक्र मेडल दिया गया। उनकी पत्नी वीर नारी उर्मिला देवी बताती हैं, उनकी शहादत के समय बड़ी बेटी ज्योति महज आठ साल की थी। बेटा संदीप सात और दीपक चार साल का था। बेटे संदीप और दीपक बताते हैं कि पिता की बहादुरी पर उन्हें फख्र होता है। 

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मवाना रोड स्थित डिफेंस कालोनी ए-34 निवासी मेजर मनोज तलवार की फरवरी 1999 में फिरोजपुर पंजाब में तैनाती हुई। लेकिन वे देश के लिए कुछ करना चाहते थे, उन्होंने सियाचिन में नियुक्ति की मांग कर दी। कारगिल में युद्ध हुआ तो उनकी बटालियन को टुरटुक में भेजा गया।

13 जून को उन्होंने कारगिल सेक्टर टुरटुक में तिरंगा फहरा दिया। इसी बीच दुश्मन की तोप के गोले के वार से वह शहीद हो गए। उनके पिता रिटायर्ड कैप्टन पीएस तलवार का कुछ दिन पहले ही निधन हो चुका है। मां ऊषा तलवार का निधन कई वर्ष पहले हो गया था। परिवार में छोटे भाई और बहनें हैं। 

मूलरूप से बागपत के सिरसली और अब रोहटा बाईपास पर रहने वाली वीर नारी मुनेश देवी बताती हैं कि उनके पति हवलदार यशवीर सिंह की बटालियन को तोलोलिंग का टास्क दिया गया था। 12 जून को टू-राजपूताना राइफल ने मेजर विवेक गुप्ता के नेतृत्व में 90 जवानों ने इस प्वाइंट पर हमला बोल दिया।

प्वाइंट 4950 पर कब्जे को भीषण युद्ध हुआ। हवलदार यशवीर सिंह ने सीने पर गोलियां लगने के बावजूद ग्रेनेड के साथ पाकिस्तानी सेेेना के बंकरों पर हमला कर दिया। 40-50 दुश्मनों को मारकर वे शहीद हो गए। 13 जून 1999 को तोलोलिंग पर भारतीय सेना ने तिरंगा फहरा दिया। जब वे शहीद हुए थे तो छोटा बेटा आठ साल और बड़ा 12 साल का था। 

मूलरूप से गढ़मुक्तेश्वर के लुहारी गांव निवासी लांसनायक सत्यपाल सिंह का जनवरी 1999 में जम्मू तबादला हुआ था। इसी बीच कारगिल की जंग शुरू हो गई। उनकी बटालियन सेकेंड राजपूताना राइफल्स को कारगिल पहुंचने का आदेश मिला।
तोलोलिंग जीतने के बाद 28 जून को दुश्मनों से लड़ते हुए वो द्रास सेक्टर में शहीद हो गए। बड़ा बेटा पुलकित साढ़े तीन साल और बेटी दिव्या ढाई साल की थी। 

मूलरूप से ललियाना एवं वर्तमान में जैदी फार्म निवासी वीर नारी इमराना बताती हैं कि जुबैर अहमद की 22 ग्रेनेडियर हैदराबाद से जम्मू में तैनाती हुई थी। इसी बीच लड़ाई शुरू हो गई। वह पत्नी इमराना और परिवार को दिलासा देकर चले गए।

तीन जुलाई 1999 को हिंद पहाड़ी पर लड़ते-लड़ते वह शहीद हो गए। आज उनकी बड़ी बेटी सना परवीन पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी हैं। छोटी बेटी निशा परवीन ग्रेजुएट हैं। बेटा खालिद जुबैर अपना काम कर रहा है।  

कारगिल विजय दिवस के अवसर पर स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय में सोमवार सुबह 11.15 बजे से शहीद जवानों के परिजनों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित तीन एकड़ भूमि में बना कारगिल शहीद स्मृति उपवन रहा।

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