सरकारें बदलती रहीं मगर नहीं कम हुआ चड्ढा परिवार(पोंटी-मोंटी) का रूतबा, हमेशा चलता रहा सिक्का

संक्षेप:

  • चड्ढा परिवार के कारोबार को गुरदीप सिंह उर्फ पोंटी ने ही ऊंचाईयों तक पहुंचाया.
  • पोंटी चड्ढा की हत्या के बाद तीन संतानों में इकलौते बेटे मोंटी चड्ढा ने उनकी विरासत को संभाला.
  • वह रियल एस्टेट में विदेश में भी काम कर रहे हैं.

मुरादाबाद: उत्तराखंड का हल्द्वानी ही वह शहर था, जहां शराब कारोबारी पोंटी चड्ढा को बदरफुट का ठेका मिला था. यह चड्ढा परिवार का सबसे बड़ा जैकपॉट था. इसके बाद पोंटी ने नेताओं और अफसरों में मजबूत पकड़ का फायदा उठाकर उत्तर प्रदेश के ही ललितपुर में ग्रेनाइट की खान का ठेका ले लिया. प्रदेश की सरकारों में इस परिवार की काफी मजबूत पकड़ रही. आलम यह था कि सरकारें बदलती गईं लेकिन, इस चड्ढा परिवार के रुतबे में कोई कमी नहीं आई. हर सरकार में इनका कारोबार बढ़ता गया, जो विदेश तक फैल गया.

चड्ढा परिवार के कारोबार को गुरदीप सिंह उर्फ पोंटी ने ही ऊंचाईयों तक पहुंचाया. पोंटी चड्ढा की हत्या के बाद तीन संतानों में इकलौते बेटे मोंटी चड्ढा ने उनकी विरासत को संभाला. वह रियल एस्टेट में विदेश में भी काम कर रहे हैं. पोंटी के छोटे भाई राजिंदर सिंह उर्फ राजू शराब का कारोबार देख रहे हैं. पोंटी के दादा गुरुबचन सिंह चड्ढा के छह बेटे हुए- कुलवंत सिंह, हरभजन सिंह, सुरिंदर सिंह, गुरुबख्श सिंह, सुरजीत सिंह और हरिंदर सिंह. कुलवंत सिंह, हरभजन सिंह और सुरिंदर सिंह का परिवार मुरादाबाद में रहता है. बाकी भाई मुंबई चले गए थे. इनमें कुलवंत सिंह के तीन बेटे हुए गुरुदीप सिंह उर्फ पोंटी, राजिंदर सिंह उर्फ राजू और हरदीप सिंह उर्फ सतनाम. खूनी संघर्ष में पोंटी और सतनाम की जान चली गई. उनके पिता कुलवंत एक साल पहले ही बीमारी के कारण चल बसे थे. अब कुलवंत के परिवार में एक बेटा राजू और पोता (पोंटी के बेटे) मनप्रीत सिंह उर्फ मोंटी चड्ढा ही बचे हैं. सुरिंदर सिंह के परिवार के पास गिन्नी बार एंड रेस्टोरेंट है.

प्रदेश में ओवर रेट बिकती रही शराब

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प्रदेश की मायावती सरकार में शराब नीति बदली और पोंटी को शराब की दुकानों का ठेका मिला. इसी शराब नीति को अखिलेश सरकार ने भी रेगुलर रखा. प्रदेश में शराब ओवर रेट बिकती रही. लोगों ने शोर भी मचाया लेकिन, किसी ने एक नहीं सुनी. पुलिस सूत्रों का कहना है कि इन दिनों चड्ढा परिवार का कारोबार कई देशों में फैला है. मोंटी का समय तो कारोबार के सिलसिले में इन दिनों विदेश में ही गुजरता है. दिल्ली से दुबई तक उनका कारोबार फैला है.

पाकिस्तान से भारत आया था परिवार

भारत विभाजन के बाद पोंटी चड्ढा के दादा गुरुबचन सिंह अपने दो बेटों कुलवंत सिंह चड्ढा और हरभजन सिंह चड्ढा के साथ पाकिस्तान से पहले पीरूमदारा (रामनगर) फिर मुरादाबाद पहुंचे थे. इन दो बेटों ने दूध बेचने से कारोबारी शुरुआत की थी. सबसे पहले उन्हें ताड़ीखाना पर भांग की दुकान मिली. इसके बाद पोंटी के पिता ने गुरहट्टी पर देसी शराब का ठेका भी ले लिया. फिर धीरे-धीरे शराब की दुकानें बढ़ाईं और ट्रक-ट्रांसपोर्ट, फाइनेंस कंपनी, सिनेमा, होटल तक का काम बढ़ाया. रियल एस्टेट में भी कदम रखा.

पंजाब में अकाली नेता का आधिपत्य तोड़ा

चड्ढा परिवार का पंजाब से पुश्तैनी रिश्ता है और वहां उनके सगे संबंधी भी रहते हैं. वहां शराब के व्यवसाय पर एक अकाली नेता का कब्जा था. कांग्रेस जब सत्ता में आई तो चड्ढा परिवार ने अकाली आधिपत्य को तोडऩे की जुगत लगाई. इसमें पूरा बाजार चड्ढा परिवार को सौंप दिया गया. इसके चलते अमरिंदर सिंह को बदनामी भी मिली. लोग सुप्रीम कोर्ट तक गए. नीलामी की नई प्रक्रिया बनी. रातोंरात चड्ढा के हजारों कर्मचारियों के पैन कार्ड बन गए. अलग-अलग लोगों को ठेका मिला. फिर शुरू हुआ शराब की दुकानों पर निर्धारित मूल्य से ज्यादा वसूलने का धंधा.

सगी बहनें हैं चाचा-भतीजे की पत्नियां

चड्ढा परिवार के हरभजन सिंह शुरू से कुलवंत सिंह के साथ ही रहे. दोनों भाईयों में अच्छा तालमेल रहा. इसलिए उनका दखल शराब व रीयल एस्टेट कारोबार में तो था ही अन्य कारोबार भी साथ ही किया. पोंटी की हत्या के बाद कुछ कारोबार को बांट लिया गया. हरभजन पोंटी के चाचा ही नहीं, इनमें एक रिश्ता और भी है. इनकी पत्नियां आपस में बहनें हैं.

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