Lok Sabha Election 2019: बागपत में जिसके जाट, उसके ठाठ, जयंत और सतपाल में कड़ी टक्कर

संक्षेप:

  • जाट लैंड के नाम से मशहूर है पश्चिम यूपी का संसदीय सीट बागपत
  • जयंत के परिवार का यह गढ़ रहा है बागपत सीट
  • बागपत में रालोद की बादशाहत की सबसे अहम वजह यहां जाट वोटरों की अधिकता ही है

बागपत: पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट बहुल बागपत संसदीय क्षेत्र, जहां पर पहले चरण में ही 11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा वहां दो जाट नेताओं के बीच कड़ा मुकाबला है. एसपी-बीएसपी-आरएलडी का गठबंधन बीजेपी के ख़िलाफ़ सीधी लड़ाई में खड़ा है. कांग्रेस पार्टी ने चुनावी समझौते के तहत इस सीट से नहीं लड़ने का फैसला किया है. गठबंधन के उम्मीदवार, आरएलडी के उत्तराधिकारी जयंत चौधरी, जो अपने दिवंगत दादा, जाट प्रतिनिधि एवं पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की विरासत लेकर चल रहे हैं, बीजेपी सांसद और मंत्री सत्यपाल सिंह का सामना करेंगे. सत्यपाल सिंह जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं और मुंबई पुलिस प्रमुख की नौकरी छोड़कर राजनीति में आये हैं.

जाट लैंड के नाम से मशहूर पश्चिम यूपी के चुनावी माहौल में एक कहावत बड़ी चर्चा में रहती है, वो है `जिसका जाट, उसके ठाठ` यानी जिस पार्टी या प्रत्याशी को जाट वोटरों का समर्थन मिल जाए उसकी नैया पार लग ही जाती है. ऐसा ही समर्थन हासिल करने की चुनौती बागपत सीट से राष्ट्रीय लोकदल के प्रत्याशी जयंत चौधरी और बीजेपी के प्रत्याशी सत्यपाल सिंह के सामने है. दोनों जाट नेता हैं. जयंत के परिवार का यह गढ़ रहा है और सत्यपाल सिंह पुलिस कमिश्नर की जिम्मेदारी संभालने के बाद चुनावी वैतरणी में पहली बार 2014 में उतरे थे.

गठबंधन के समीकरण पर सवार जयंत चौधरी

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जयंत चौधरी की डगर थोड़ा ज्यादा मुश्किल भरी है, क्योंकि यह सीट यूं तो उनके दादा चौधरी चरण सिंह व पिता चौधरी अजित सिंह की विरासत रही है, लेकिन 2014 में जब मोदी लहर चली तो सत्यपाल सिंह ने जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजित सिंह को हराते हुए उनके परिवार की इस सीट पर अपना कब्जा जमा लिया. अब अजित सिंह मुजफ्फरनगर सीट से लड़ रहे हैं और जयंत चौधरी बागपत से पहले बार भाग्य आजमा रहे हैं. बागपत में रालोद की बादशाहत की सबसे अहम वजह यहां जाट वोटरों की अधिकता ही है. इस सीट पर चार लाख से ज्यादा जाट मतदाता है. इनके अलावा गुर्जर, यादव, दलित और त्यागी वोटर भी बागपत की लड़ाई में अहम भूमिका निभाता है, जबकि मुस्लिम वोटरों की भी यहां बड़ी तादाद है. दिलचस्प बात ये है कि यहां का अधिकतर मुस्लिम वोटर मूला जाट कहलाता है.

यही समीकरण अब तक यहां किसान नेता के रूप में मशहूर चरण सिंह व उनके बेटे अजित सिंह को संसद पहुंचाता रहा है. लेकिन 2014 में बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने मोदी लहर में चौधरी अजित सिंह से यह सीट छीन ली थी. इतना ही नहीं, 2017 के विधानसभा चुनाव में भी आरएलडी को यहां झटका लगा था और उसे महज एक विधानसभा सीट (छपरौली) पर जीत मिली थी. जबकि सिवालखास, बड़ौत, बागपत और मोदीनगर सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी.

बागपत में जीत के जातिगत समीकरण

जाट- 4,35,000
गुर्जर- 73,000
मुस्लिम- 3,00,000
एससी-2,15,000
सवर्ण-3,00,000
अन्य- 3,15,000

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