टोक्यो ओलंपिक 2021: पहलवान रवि दहिया की जीत की कहानी के पीछे इन कोचों की भूमिका रही सराहनीय

संक्षेप:

  • पहलान रवि कुमार दहिया ने वेट कैटेगरी के फाइनल में जीता सिल्वर मेडल 
  • दांवपेंच के साथ मानसिक रूप से भी किया मजबूत: दहिया
  • ओलंपिक में मेडल दिलाने के लिए पहलवानों को दांवपेंच सिखाने उतरे थे मैदान में

मुजफ्फरनगर। टोक्यो ओलंपिक में 5 अगस्त का दिन काफी ऐतिहासिक रहा। भारतीय हॉकी टीम ने 41 साल के इंतजार को खत्म कर ब्रॉन्ज मेडल जीता। इसके बाद भारतीय पहलान रवि कुमार दहिया ने 57 किग्रा वेट कैटेगरी के फाइनल में सिल्वर मेडल जीता।

दांवपेंच के साथ मानसिक रूप से भी किया मजबूत: दहिया

इस जीत में मुजफ्फरनगर के रहने वाले चीफ कोच जगमेंद्र सिंह व बागपत के रहने वाले कोच राजीव तोमर का योगदान भी कम नहीं है। पहलवानों के साथ गए ओलंपिक में दोनों कोच खुद भी ओलंपियन रह चुके हैं। अपने अनुभवों के साथ ही पहलवानों को पदक जीतने के लिए हर बेहतर दांवपेंच सिखाया है, क्योंकि ओलंपिक पदक जीतने का उनका जो सपना अधूरा रह गया था, वह पूरा हो सके। पहलवान रवि दहिया खुद भी मानते हैं कि ओलंपिक से ठीक पहले कोच ने जहां उसको दांवपेंच सिखाए हैं, वहीं उनको मानसिक रूप से मजबूत भी किया है, जो उनके फाइनल तक पहुंचने के सफल में मददगार रहे।  

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ओलंपिक में मेडल दिलाने के लिए पहलवानों को दांवपेंच सिखाने उतरे थे मैदान में

मुजफ्फरनगर के रहने वाले जगमेंद्र सिंह ने वर्ष 1984 के ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था तो बागपत के मलकपुर गांव के रहने वाले राजीव तोमर वर्ष 2008 में बीजिंग ओलंपिक में देश के लिए खेलने उतरे थे। यह दोनों ही देश के लिए मेडल जीतने का सपना लेकर खेलने गए थे, लेकिन उनका वह सपना अधूरा रह गया था। जिसके बाद दोनों ने देश को ओलंपिक में मेडल दिलाने का सपना पूरा करने के लिए कोच बनकर पहलवानों को दांवपेंच सिखाने शुरू किए। जगमेंद्र सिंह वर्ष 2004 से नेशनल कोच है तो राजीव तोमर भी करीब छह साल से नेशनल कोच है और यह दोनों देश के लिए मेडल जीतने को पहलवानों को दांवपेंच सिखा रहे हैं। इनका अधूरा सपना अब लंबे समय बाद पहलवान रवि दहिया ने 57 किलो के फाइनल में जगह बनाकर देश के लिए मेडल पक्का करके पूरा किया है।

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