12 करोड़ से अधिक के घोटाले में ड्रग इंस्पेक्टर बर्खास्त, मुख्यमंत्री का भी आदेश प्राप्त

संक्षेप:

  • ड्रग इंस्पेक्टर पर 12 करोड़ से अधिक के घोटाले का आरोप।
  • दवा खरीद में अनियमितता का आरोप।
  • बर्खास्तगी के निर्णय पर लोक सेवा आयोग सहित सीएम का भी आदेश प्राप्त।

मुजफ्फरपुर। स्वास्थ्य मुख्यालय में एक बहुत बड़ी रकम के घोटाले को लेकर राज्य सरकार के संयुक्त सचिव राम ईश्वर ने इसको लेकर मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन को पत्र भेजा है। हुआ यूं कि 12 करोड़ से अधिक के घोटाले के आरोप में मुजफ्फरपुर शहरी क्षेत्र के ड्रग इंस्पेक्टर विकास शिरोमणि को स्वास्थ्य मुख्यालय से तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है। विकास शिरोमणि के खिलाफ पीएमसीएच में दवा खरीद में अनियमितता का आरोप लगा था। इसकी जांच 2013 से हो रही थी। जांच पूरी होने के बाद उन्हें बर्खास्त करने का निर्णय लिया गया है। 

बर्खास्तगी के निर्णय पर लोक सेवा आयोग सहित सीएम का भी आदेश प्राप्त 
आदेश मिलने के बाद बुधवार को मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ. एसके चौधरी ने आगे की कार्रवाई शुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि संबंधित विभाग को ड्रग इंस्पेक्टर से संबंधित फाइलों को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। विभाग की ओर जारी आदेश में कहा गया है कि पीएमसीएच में कार्यालय अधीक्षक, लेखापाल व सबंधित क्रय लिपिक ने आपूर्तिकर्ताओं से मिलकर एमआरपी से अधिक मूल्य पर दवा क्रय की। उपकरणों को काफी अधिक मूल्य पर क्रय किया गया। बिना आकलन किए जान बूझकर खपत से कई गुना अधिक मात्रा में दवा खरीद की गई। इससे सरकारी राशि 12,63,52,970 रुपये की गड़बड़ी सामने आई। जांच के क्रम में पाया गया कि तत्कालीन औषधि निरीक्षक विकास शिरोमणि ने मिलीभगत कर सरकारी राशि की गड़बड़ी की। इसका स्पष्ट साक्ष्य पाया गया है। उनकी बर्खास्तगी के निर्णय पर बिहार लोक सेवा आयोग ने सहमति प्रदान की है। मुख्यमंत्री का भी आदेश प्राप्त हुआ है।

2014 से मुजफ्फरपुर में कार्यरत 

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मुजफ्फरपुर में चार जुलाई 2016 को विकास शिरोमणि ने ड्रग इंस्पेक्टर के तौर पर योगदान दिया था। इसके बाद से जिले में लगातार कार्यरत रहे। जांच पूरी होने के बाद 26 मार्च 2021 को बर्खास्तगी का आदेश जारी किया गया। वह पटना के स्वास्थ्य महकमे में जुलाई 2008 से 2011 तक कार्यरत थे।
 
कोर्ट की शरण में जाएंगे - विकास शिरोमणि 

सेवा से बर्खास्त होने के बाद ड्रग इंस्पेक्टर विकास शिरोमणि ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2009-10 में केवल चार दिन ही उन्होंने पीएमसीएच का निरीक्षण किया था। वह पीएमसीएच में स्थायी कर्मचारी नहीं थे। चार दिनों की प्रतिनियुक्ति पर वहां गए थे, तब उनपर कार्रवाई हुई है, जबकि वहां के अधिकारी और कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट से कार्रवाई करने पर रोक लगी है, बावजूद विभाग ने कार्रवाई की है। उन्होंने कहा कि वह फिर कोर्ट की शरण में जाएंगे। 

 

 

 


 

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