सावन में बाबा महाकाल के दर्शन से मिलता है महालाभ, जानें क्या है भस्मारती का महत्व

संक्षेप:

  • देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में `महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग` का अपना एक अलग महत्व है.
  • महाकाल मंदिर दक्षिण मुखी होने से भी इस मंदिर का अधिक महत्व है.
  • महाकाल मंदिर विश्व का एक मात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग प्रतिष्ठापित है

देशभर के बारह ज्योतिर्लिंगों में `महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग` का अपना एक अलग महत्व है. महाकाल मंदिर दक्षिण मुखी होने से भी इस मंदिर का अधिक महत्व है. महाकाल मंदिर विश्व का एक मात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां दक्षिणमुखी शिवलिंग प्रतिष्ठापित है. यह स्वयंभू शिवलिंग है. जो बहुत जाग्रत है. इसी कारण केवल यहां तड़के 4 बजे भस्म आरती करने का विधान है. यह प्रचलित मान्यता थी कि शमशान की ताजी चिता की भस्म से आरती की जाती थी, लेकिन वर्तमान में गाय के गोबर से बने कंडो की भस्म से आरती की जाती है. एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भस्म आरती केवल पुरुष ही देखते हैं. जिन पुरुषों ने बिना सिला हुआ कपड़ा पहना हो वही भस्म आरती से पहले भगवान शिव को को जल चढ़ाकर छू कर दर्शन कर सकते हैं.

महाकाल के बारे में कहा जाता है कि यह पृथ्वी का एक मात्र मान्य शिवलिंग है. महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है. महाकाल मंदिर की अनादी काल से उत्तपत्ति मानी गई है. मान्यता है कि महाकाल मंदिर में शिव लिंग स्वयंभू हैं. महाकाल को कालों का काल भी कहा जाता है. मान्यता है की भगवान महाकाल काल को हर लेते हैं. महाकाल मंदिर में सामान्यतह चार आरती होती है, जिसमें से अल सुबह होने वाली भस्म आरती के लिए श्रद्धालु दूर दूर से उज्जैन पंहुचते हैं.

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