Shivratri 2018: नाग, त्रिशूल और बैल है शिव के प्रिय, ये है कारण...

संक्षेप:

  • सावन मास में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि आज
  • शिव की पूजा करने से सभी मनोकामना पूरी होती है
  • शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी

सावन मास में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि आज है। यह दिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने का सबसे अच्छा दिन माना जाता है। इस दिन सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामना पूरी होती है। यह ऐसा महोत्सव है जो यह बोध कराता है कि हम भी भगवान शिव के अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं। यह दिन जीवमात्र के लिए महान उपलब्धि प्राप्त करने का दिन है।

शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी। शिव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं। उनकी जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं। चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चंद्रमा की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है। शिव की तीन आंखें हैं, इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत्व, रज और तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान और भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु और पाताल (तीनों लोकों) के प्रतीक हैं।

सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है। त्रिशूल शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशूल भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है। शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। शिव के गले में मुंडमाला है, वह इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है। उन्होंने शरीर पर बाघ की खाल पहनी हुई है। बाघ हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे काबू कर लिया है।

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शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है। शिव का वाहन वृषभ यानी बैल हमेशा साथ रहता है, जो धर्म का प्रतीक है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं। इस तरह शिव-स्वरूप हमें बताता है कि उनका रूप विराट और अनंत है, उनकी महिमा अपरंपार है। शिव में ही सारी सृष्टि समाई हुई है।

शिवरात्रि पर उपवास का अर्थ है कि हम परमात्मा शिव से बुद्धि योग लगाकर उनके समीप रहें। जागरण का अर्थ है- काम, क्रोध आदि पांच विकारों के वशीभूत होकर अज्ञान रूपी कुंभकरण की निद्रा में सो जाने से स्वयं को बचाए रखना।

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