NYOOOZ एक्सक्लूसिव: 17 बच्चों की कत्लगाह निठारी, 2006 से अब तक की दास्तान

संक्षेप:

  • कोर्ट ने सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर दोषी करार दिया
  • इनकी सजा पर फैसला 24 जुलाई को होगा
  • दिसंबर 2006 में हुए इस कांड के खुलासे ने लोगों को ‌हिला कर रख दिया था

नोएडा के बहुचर्चित निठारी कांड मामले में आठवें केस पिंकी सरकार मामले में शनिवार को कोर्ट ने सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर दोषी करार दिया। इनकी सजा पर फैसला 24 जुलाई को होगा। देश का दहला देने वाला सबसे सनसनीखेज निठारी हत्याकांड अब भी आपके दिलो दिमाग में याद होगा। दिसंबर 2006 में हुए इस कांड के खुलासे ने लोगों को ‌हिला कर रख दिया था। यह एक ऐसा कांड था, जिसके खुलते ही देश भर में हलचल मच गई थी। आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा की मांग देश के कोने-कोने से उठी। मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी जांच सीबीआई ने शुरू की थी।

 कहां है निठारी

नोएडा के सेक्टर-31 के पास निठारी एक छोटा सा गांव है। निठारी शब्द जेहन में आते ही खुद-ब-खुद मासूम बच्चों की चीख-पुकार उमड़ आती है। आंखों में एक खौफनाक दृश्य उभरता है। जिसमें एक कोठी के मालिक व नौकर मासूम बच्चों को किसी न किसी बहाने अपने पास बुला लेते हैं। इसके बाद उनके साथ हैवानियत की हदें पार कर देते हैं। बच्चों की हत्या करने के बाद लाश के टुकड़े-टुकड़े कर नाले में बहा देते हैं। 

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 निठारी कांड की खूनी कोठी 

खूनी कोठी नंबर डी-5। भला इसे कौन भूल सकता है। भुलाया भी नहीं जा सकता है। यहां एक या दो नहीं बल्कि 17 बच्चों की दर्दनाक मौत हुई। उनके साथ दुष्कर्म किया गया। इसके बाद गला घोंटकर हत्या कर दी गई। शव के कई टुकड़े किए गए। कुछ हिस्से को कोठी के पीछे तो कुछ को सामने के नाले में बहा दिया गया। यह सिलसिला डेढ़ साल से ज्यादा समय तक चला। लेकिन किसी की नजर इस कोठी पर नहीं पड़ी। इतना जरूर हुआ कि कोठी के पास स्थित पानी की एक टंकी के आसपास से बच्चों को गायब होने का शक जरूर हुआ। गांव वालों ने यहां तक मान लिया कि पानी टंकी के पास कोई भूत रहता है जो बच्चों को निगल जाता है। या फिर पानी टंकी के पास से ही कोई बच्चों को गायब करने वाला गिरोह सक्रिय है। 

 इस कोठी में मोनिंदर सिंह पंधेर रहता था। यह शख्स आईएएस की तैयारी भी कर चुका है। रिटेन एग्जाम निकाल इंटरव्यू देने की बात अब तक सामने आ पाई है। लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। इस शख्स की करोड़ों की प्रॉपर्टी है। वह जेसीबी मशीनों की सप्लाई करने वाली कंपनी में बतौर सीनियर अधिकारी था। इसकी गिनती शहर के रईसजादों में होती रही है। इसने वर्ष 2005 में सेक्टर-31 डी-5 नंबर की कोठी खरीद ली थी। वजह थी, घर परिवार चंडीगढ़ में होने की वजह से नोएडा में रहने का ठिकाना। क्योंकि नोएडा में ही उसकी कंपनी थी। 

अब नोएडा में परिवार नहीं होने की वजह से मोनिंदर सिंह पंधेर को एक नौकर की तलाश थी। इसलिए चंडीगढ़ में नौकरी कर चुके सुरेंद्र कोली को नोएडा बुला लिया। दरअसल, सुरेंद्र खाना बनाने में एक्सपर्ट था। खासतौर पर नॉनवेज बनाने में। इसलिए मोनिंदर सिंह ने उसे नोएडा अपने साथ रख लिया। वह कोठी में ही छत पर बने एक कमरे में रहने लगा। लेकिन महीने में अधिकतर दिन मोनिंदर सिंह पंधेर कहीं न कहीं टूर पर ही रहता था। लिहाजा, कोठी के मालिक की तरह सुरेंद्र ही रहता था।

 17 बच्चों को बनाया था अपना शिकार

गाजियाबाद की सीबीआई विशेष कोर्ट द्वारा आरोपी सुरेंद्र कोली का डेथ वारंट जारी किए जाने के साथ ही उसकी फांसी के लिए जेल और जल्लाद की तलाश शुरू कर दी गई है। इस कांड के आरोपी मोनिंदर सिंह पंधेर और सुरेंद्र कोली फिलहाल गाजियाबाद की डासना जेल में बंद हैं।

 

नोएडा के सेक्टर-31 के पास स्थित उस छोटे से गांव निठारी में, जहां मासूम बच्चों की चीख-पुकार और आंखों में एक खौफनाक दृश्य अब भी उभरता हुआ दिख रहा है। करोड़पति मोनिंदर सिंह पंधेर के उस खूनी कोठी नंबर डी-5 को भला कौन भूल सकता है। कौन भूल सकता है कि इसी कोठी में इंसान के रूप में मौजूद भेड़ियों ने एक दो नहीं बल्कि 17 बच्चों को अपना शिकार बनाकर इसी कोठी में उन्हें दफन कर दिया था।

 इस कोठी में रहने वाले नरपिशाचों ने बड़ें ही शातिर ढ़ग से गांव के भोले-भाले मासूम बच्चों को किसी न किसी बहाने अपने पास बुलाते थे। इसके बाद उनके साथ हैवानियत की हदें पार कर उनकी हत्या करने के बाद लाश के टुकड़े-टुकड़े कर नाले में बहा देते हैं।

 शव के टुकड़े कर पकाया, खाया

क्या-क्या नहीं किया इस कोठी को मालिक और उसके नौकर सुरेंद्र कोली ने। मासूम बच्चों को अपनी कोठी में ले जाकर उसके साथ कुकर्म उसके बाद उनका गला घोंटकर हत्या। इतने से भी मन नहीं भरा तो उसके शव के छोटे-छोटे टुकड़े कर कुछ पकाकर खाए तो कुछ हिस्से को कोठी के पीछे नाले में बहा दिया।

 यह खौफनाक सिलसिला करीब डेढ़ साल से ज्यादा समय तक चला। लेकिन किसी की नजर इस कोठी पर नहीं पड़ी। हां, इतना जरूर हुआ कि कोठी के पास स्थित पानी की एक टंकी के आसपास से बच्चों को गायब होने का शक जरूर हुआ।

 हालांकि गांव वालों ने तो यहां तक मान लिया कि जरूर पानी टंकी के पास कोई भूत रहता है जो बच्चों को निगल जाता है। लेकिन दिसंबर 2006 में एक लापता लड़की के बारे में जांच के दौरान जब यह पता चला कि उसकी हत्या कोली ने की है तो पुलिस ने मामले को गहराई से जांचना शुरू किया।

 फिर क्या था...एक के बाद मामले खुलते गए और जांच दल को बड़े पैमाने पर बच्चों की नृशंस हत्याओं के बारे में पता चला। कोली जिस मकान में घरेलू नौकर की तरह काम करता था, उसके समीप के एक नाले से बच्चों के कंकाल बरामद हुए थे।

 सीबीआई ने की केस की जांच

निठारी कांड के 11 जनवरी 2007 को सीबीआई ने पूरा केस अपने हाथ में ले लिया। 28 फरवरी और 01 मार्च 2007 को निठारी के नरपिशाच सुरेंद्र कोली ने दिल्ली में एसीएमएम के यहां अपने इकबालिया बयान दर्ज कराए थे। 

 16 मामलों में से पांच में मिली है मृत्युदंड

कोली को रिम्पा हलदर नामक एक लड़की की 2005 में हत्या के जुर्म में निचली अदालत ने मृत्यु दंड सुनाया था जिसकी पुष्टि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कर दी थी। बाद में उच्चतम न्यायालय ने 15 फरवरी 2011 को इस फैसले पर अपनी मुहर लगाई।

कोली को सिलसिलेवार हत्यारा करार देते हुए अदालत ने कहा था कि उसके प्रति कोई दया नहीं दिखाई जानी चाहिए। कोली के खिलाफ कुल 16 मामले दर्ज किए गए। उसके नियोक्ता मोनिन्दर सिंह पंढेर को भी रिम्पा हलदर मामले में मृत्युदंड सुनाया गया था, लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसे बरी कर दिया।

 कोली के खिलाफ दर्ज 16 मामलों में से पांच में उसे मृत्युदंड सुनाया गया है जबकि शेष अभी विचाराधीन हैं। इसमें 13 फरवरी 2009 को सीबीआई विशेष न्यायाधीश रमा जैन ने सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंधेर को फांसी की सजा सुनाई थी। कालांतर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पंधेर को बरी कर दिया। जबकि सुरेंद्र की सजा बरकरार रखी। सुप्रीम कोर्ट ने भी सुरेंद्र कोली की सजा को बरकरार रखते हुए उसकी अपील को खारिज कर दिया।

 जब तक इसकी मौत ना हो जाए तब तक लटकाओ। वहीं, आरती मर्डर केस में 12 मई 2010 को इस मामले में सीर्बीआई विशेष न्यायाधीश डा. एके सिंह ने आरोपी सुरेंद्र कोली को दोषी मानते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई। यह सजा कनफर्मेशन के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में पेंडिंग है।

 जबकि दीपाली मर्डर केस में 12 दिसंबर 2010 को सीबीआई कोर्ट ने दीपाली मर्डर के लिए सुरेंद्र कोली को दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई। वहीं 28 सितंबर 2010 को रचना लाल मर्डर केस में सीबीआई विशेष न्यायाधीश डा. एके सिंह ने सुरेंद्र कोली को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई।

 24 दिसंबर 2012 को सीबीआई विशेष न्यायाधीश एस. लाल ने आरोपी सुरेंद्र कोली को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। फैसले में न्यायाधीश ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि ‘अभियुक्त के मन में हमेशा यही भावना बनी रहती है कि किसको मारूं, काटूं व खाऊं। अभियुक्त इन परिस्थितियों में समाज के लिए खतरा बन चुका है।

 उसके सुधार और पुनर्वास की संभावनाएं भी नहीं हैं। मृतका की आत्मा को तभी शांति मिल सकती है, जब अभियुक्त को मृत्यु दंड से ही दंडित किया जाए। अभियुक्त को गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जाए, जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए।बेरहमी की सारी हदें लांघ कर की गई इस वारदात के खुलासे ने लोगों का दिल दहला कर रख दिया था।

 खाने तक का मोहताज रहता था कोली

सुरेंद्र कोली मुलरूप से अल्‍मोड़ा के एक गांव का रहने वाला है। वह भेड़ बकरियां चराकर अपना गुजारा करता था। साल 2000 में अल्‍मोड़ा घुमने एक ब्रिगेडियर से सुरेंद्र कोली की मुलाकात हुई। इसके बाद वह ब्रिगेडियर के साथ ही दिल्‍ली आ गया और उन्‍हीं के यहां खाना बनाने की नौकरी करने लगा।

 स्‍वादिष्‍ट खाना बनाने में थी महारत

बताया जाता है कि सुरेंद्र कोली काफी स्‍वादिष्‍ट खाना बनाता है। उसने अल्‍मोड़ा में अपने अपने हाथों का बना खाना खिलाकर ही ब्रिगेडियर को खुश किया था और उन्‍हें नौकरी पर रखने को राजी किया था। साथ ही सुरेंद्र के हाथों का खाना खाकर ही मोनिंदर पंढेर उसे ब्रिगेडियर के यहां से अपने नोएडा वाले कोठी में लेकर आया था।

 सिर्फ छठी पास है सुरेंद्र कोली

सुरेंद्र कोली के गांववालों कि मानें तो उसने छठी क्‍लास तक पढ़ाई की है। मामला खुलने के बाद जब पुलिस ने कोली के गांववालों से पूछताछ की थी तो उन्‍होंने बताया कि उसका पढ़ने-लिखने में ज्‍यादा मन नहीं लगता था। साथ ही उसके घर की आर्थिक स्‍थिति भी काफी खराब थी, इसलिए उसने पढ़ाई छोड़ दी और चरवाहा बन गया।

 मोनिंदर पंढेर से 2003 में हुई मुलाकात

दिल्‍ली में ब्रिगेडियर के यहां सुरेंद्र कोली की नौकरी ठीक-ठाक चल रही थी। 2003 में ब्रिगेडियर को दिल्ली से बाहर जाना पड़ गया। इसके बाद कोली मोनिंदर सिंह पंढेर के संपर्क में आया। मोनिंदर पंढेर के कहने पर वह उसके नोएडा सेक्टर-31 डी-5 कोठी में काम करने को तैयार हो गया। पंढेर के कहने पर ही कोली अपनी पत्नी को भी नोएडा ले आया था।

 पत्‍नी से दूर होने पर बना नर पिशाच

2004 में मोनिंदर पंढेर का परिवार नोएडा से पंजाब चली गई। इसके बाद सुरेंद्र कोली ने भी पत्नी को गांव भेज दिया। इस तरह कोठी में पंढेर और कोली ही अब रहने लगे थे। कई महीनों तक अकेले रहने के दौरान ही सामान्य रहने वाले कोली की जिंदगी में हैवानियत की शुरुआत हुई थी।

 कॉलगर्ल से संबंध बनाना चाहता था

पुलिस अधिकारी बताते हैं कि पंढेर की कोठी में अक्सर कॉलगर्ल आया करती थीं। उनके लिए कोली ही खाने से लेकर अन्य व्यवस्था करता था। इसी दौरान वह उनसे भी नजदीकी बढ़ाना चाहता था, लेकिन नौकर होने की वजह से कामयाब नहीं हो पाता था। इसलिए वह धीरे-धीरे नेक्रोफीलिया नामक मानसिक बीमारी से ग्रसित होता गया। इसलिए वह बच्चों के प्रति आकर्षित होता गया क्योंकि उसे पता था कि बच्चे उसकी इच्छा के खिलाफ कुछ नहीं कर पाएंगे।

 शाम में करता था बच्‍चियों का शिकार

पंढेर के घर में जब कॉलगर्ल आती थीं तो कोली नौकर के रूप में कोठी के गेट पर नजर रखता था। शाम को जब इलाके में सन्नाटा छा जाता था तो वहां से गुजरने वाली लड़कियों को पकड़ लेता और उनका मुंह बांध कर उससे दुष्कर्म करता और फिर उसकी हत्या कर देता। कई बात तो वह शव के साथ भी दुष्‍कर्म करता था।

 बच्‍चियों के शव का खाता था मांस 

पुलिस की ओर से कराए गए नारको टेस्‍ट में सुरेंद्र कोली ने स्‍वीकार किया है कि वह बच्‍चियों की हत्‍या के बाद वह उन्‍हें छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देता था। कई बार बच्‍चे के शरीर के पसंदीदा हिस्‍से को भूनकर खाता भी था। बचे टुकड़े को दफन कर देता था।

 पंढेर की लड़कियों के साथ तस्‍वीर देखकर होता था कुंठित

नार्को टेस्‍ट में कोली बता चुका है कि कोठी में कई ऐसी तस्‍वीरें थीं, जिसमें उसका मालिक (मोनिंदर पंढेर) विदेशी लड़कियों और बच्‍चों के साथ आपत्‍तिजनक अवस्‍था में था। वह इन तस्‍वीरों को देखकर खुद भी ऐसी ही जिंदगी जीने के बारे में सोचता रहता था। पुलिस पंढेर के पास से बच्चों के साथ कुछ आपत्तिजनक तस्वीरें बरामद कर चुकी है।

 खाता था जानवरों का कच्‍चा मांस

पुलिस सूत्रों के अनुसार सुरेंद्र के गांव वालों ने बताया कि कभी-कभी वह जानवरों का कच्चा मांस खा लिया करता था और अपने में ही खोया रहता था। मतलब कि कच्चा मांस खाना कोली की मानसिक विकृति थी।

 

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